पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६५३

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६५० यादवराजवाश-यादवव'शी रामचन्द्रकी मृत्युके बाद उनके लड़को शङ्कर राजा यादववंशी-राजपूतजातिकी एक शाखा । ये लोग ययाति हुए। उन्होंने दिल्ली दरवारमें कर भेजना बंद कर दिया। के पुत्र यदुसे अपनी उत्पत्ति वतलाते हैं। इन योदवाने १२३४ शक (१३१२ ई० ) में मालिक काफुर फिरसे चढ़ | एक समय अपने बाहुवलसे भारतवर्ष विशेष वीरताका आया। इस बार भी हिन्दू-मुसलमानोंमें युद्ध हुआ। परिचय दिया था। चम्बल नदोके पश्चिम कंरौलो- शङ्कर शत्रुके हाथ मारे गये, उसके साथ साथ यादव- राज्यमें तथा उसके पूर्वतीरस्थ ग्वालियरके अन्तर्गत राज्य तहस नहस और अच्छी तरह लूटा गया। काफुर- सवलगढ़ नामक स्थानमें अभो यदुवंश हिन्दूराजपूतोंका ने देवगिरिमें हो अड्डा जमाया। वास देखा जाता है। मुसलमानी अमल में राजपूतानेके मालिक काफुरके ऊपर दिल्लीश्वरका विशेष अनु- पूर्वीशवासी अधिकाश यादध इसलामधर्ममें दीक्षित यह देख अलाउद्दीनके सभी अमीर उमराव जलने लगे। | हुए। वे लोग अभी खामजादा और मेत्त कहलाते हैं। कहीं वे लोग बागी न हो जाय, इस भयसे मालिक | ऐतिहासिक प्रमाणमे धर्मपाल नामक एक यदुवंशी काफुरको फौरन दिल्ली जाना पड़ा। जो कुछ हो, इस राजाका नाम पाया जाता है। वे प्रायः ८०० ईमें समय अलाउद्दीनका देहान्त हो गया। उसका लड़का , विद्यमान थे। उन्हींसे करौलो राजवंशमें 'पाल' को मुवारक उत्तराधिकारी वना। जिस समय दिल्ली में यह | उपाधि प्रचलित हुई । राजा धर्मपाल यादवपति श्रीकृष्ण- सव घटना घटी उस समय मौका देख कर रामचन्द्रके से ७७ पीढ़ी नीचे थे । ये लोग श्रीकृष्णको ही आदिपुरुप जमाई हरपालने अस्त्रधारण किया । वे मुसलमान शासन- मानते हैं। कर्ताओंको भगा कर कुछ दिनके लिये यादवसिंहासन वयाना नगरमें इस शके राजाओंकी राजधानी थी। पर बैठे। १२४० शक ( १३९८ ई० )में दिल्लीश्वर | ११९६ ई०में महम्मद घोरी और कुतुबउद्दीन आइवक द्वारा मुवारक विद्रोह दमन करनेके लिये दलवलके साथ , तहानगढ़ अधिकृत होने पर राजवंशधरगण वयाना छोड़ दाक्षिणात्यमें चढ़ आया। हरपाल वन्दी हुआ और बड़ी करौली में भाग आये तथा वहाँसे यमुना पार कर सवल- बुरी तरहसे मारा गया। इस प्रकार दाक्षिणात्यके हिन्दू- | गढ़ गले गये। पीछे उन्होंने फिरसे करौलीमें आ कर खाधीनता सूर्य हव गये। राजपाट बसाया था। नीचे देवगिरिके यादववंशकी तालिका दी जाती | इटावा जिलेके आया-राजवश तथा वहांके अन्यान्य यादवगण किस वंशके हैं, सो मालूम नहीं । बुलन्दशहर. के छोकरजादागण दासीकन्याके वंशोभूत हैं। इस मल्लूगि स्थानके निम्न श्रेणीके यादव वागड़ी कहलाते हैं। मिलम ( शक ११०६-१११३) आप्रावासी वीरेश्वर यादवगण वयानाराज तिन्दपालसे जैत्रपाल वा जैतुगि (शक अपने वंशवीजकी कल्पना करते हैं। उनका कहना है, १११-११३२) कि सेना वन फर जब वे लोग चित्तोरमें घेरा डाल युद्ध सिंघण (शक ११३२-१९६६) करते थे, तव मुगल-सम्राट अकवरशाहने उन्हें सम्मोन- जैत्रपाल सूचक वीरेश्वरकी उपाधि दी थी। माग में यशावत् नामक एक और यादवशाखाका वास देखा जाता है। धे कृष्ण (शक ११६६-११८२) महादेव ( शक . लोग जयशलमीर और जयपुरसे यहां आ कर बस गये | १९८२-११३२) हैं। मथुरामें यादवोंके मध्य विधवा-विवाह प्रचलित रामचंद्र (शक १९६३-१२३१) आमण देखा जाता है। इस कारण उनका सामाजिक-सम्मान शडर ( शक १२३१-१२३४) घट गया है। हरपाल.( १२४० शकमें निहत) . बांदा और भरतपुरके वागड़ी तथा नारायादवगण