पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६५५

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यान्दधू-याप्य लिये यह स्थान मिराजके पटवर्द्धनके हाथ सौंप दिया। । यानपात्र ( स० क्लो०) यानसाधनं पात्रमा शाकपाथिव- १८४६ ई०में निःसन्तान परशुराम भाऊके मृत्युक वाद | वत् समासः । निष्पद यानविशेष, जहाज । पर्याय- यह स्थान अगरेज गवर्मेण्टके हाथ लगा। यहां कपास वहिक, बोहित, बहन, पोत, समुद्रयान । और रेशमी कपड़े वुननेका विस्तृत कारवार है। यानपात्रिका (स० स्त्री० ) छोटा जहाज । यादवू .( यन्दवू)-उत्तरब्रह्मक अन्तर्गत एक नगर । | यानभङ्ग (सं० पु० ) यांनश्च भङ्गः । यानका भङ्ग, जहाज .. यह · अक्षा० २१ ३८ उ० तथा देशा० ६५४ पू०के नष्ट होना। • इरावती नदीको दाहिने किनारे अवस्थित है। यहां यानमुख (स० क्लो०) यानस्य मुखं, पुरोभागः। रथादि- १८२६ ई० में अगरेज और ब्रह्मराजके साथ सन्धि हुई। | का पुरोभाग, धुर। इस सन्धिके अनुसार ब्रह्मराजने अंगरेजराजको तेना-यानवाह (सपु०) यानं वहति वह-अण। यानवाहक, सेरिम प्रदेश प्रदान किया तथा आसाम, कछाड़, जयन्ती | वह जो रथ आदि चलाता हो। और मणिपुर आदि भारतका अधिकार छोड़ दिया। यानशाला (सं० स्त्री०) यानत्य शाला ६-तत् । यानगृह, १८३० ३०में राजवंशधरके अभावसे कछाडराज्य, १८३५ | वह घर जिसमें रथ आदि रखा जाता है। " ई०में नरवलिके अपराधमें जयन्तीराज्य तथा अङ्गारेज | यानी ( अ० अध्य० ) तात्पर्य यह कि, अर्थात् । प्रतिनिधिकी हत्या करनेके अपराधमें १८६१ ई०को मणि | याने ( अ० अव्य० ) यानी देखो। पुर अगरेजोंक शासनाधीन हुभा। यान्त्रिक ( सं० नि० ) १ आयुर्वेदीय यन्त्रसम्बन्धीय । २ याद्राध्य (सं० त्रि०) यातां राध्यं । जानेवाले व्यक्तियोंका यन्त्र परिशोमित शर्करादि। . आराधनीय। | यापक (सं० वि० ) यापयतीति यापि ण्वुल् । प्रापक, प्राप्त याव (सं०नि०) १ यदुवंशोद्भव, यदुवंशी । २ यदुः | होनेवाला। सम्बन्धी। ३ मनुष्यों में प्रसिद्ध। यापन (सं० क्ली० ) यां-णिच् ल्युट् । १ वर्तन, चलाना । यान (सं० क्ली०) या ल्युट अर्द्धर्चादित्वात् पुलिङ्गमपि । १ २ कालक्षेपण, समय विताना। ३ निरसन, निरपना। राजाओंकी सन्धि आदि छः गुणों से एक गुण। हाथी, ४ अपसारण, छोड़ना । ५ मिटाना । ( त्रि०) घोड़े, रथ और दोलादि जिस पर चढ़ कर जाया जाता है यापयतीति या-णिच् ल्य ट्। ६ प्रापक, प्राप्त होनेवाला। उसीको यान कहते हैं । यह यान द्विपद और चतुष्पदादि | "अयातयामास्तस्यासन यामा: स्वान्तरयापनाः।" भेदसे बहुत प्रकारका है। . . (भाग० ३२२२२३३) "मानुपैः पक्षिभिर्वापि तथान्यैद्विपदैरपि। ___ यानं स्याद्विपदं नाम तस्य भेदो ह्यनेकधा। यापना (सं० स्त्री०) १ चलाना, हांफना। २ कालक्षेप, सामान्यश्च विशेषश्च तस्य भेदो द्विधा भवेत्॥" दिन काटना। ३ व्यवहार, वर्ताव । ४ वह धन जो (युक्तिकल्पतरु) किसीको जीविका निर्वाहके लिये दिया जाय । . . मनुष्य, पक्षी या अन्य किसी द्विपद जन्तु द्वारा जो | यापनोय (सं०. त्रि०) या णिच् अनीयर् । १ प्रापणीयं, गमनःकिया जाता है उसको द्विपदयान कहते हैं। यह पाने योग्य । २ यापन करनेके योग्य, याप्य । . द्विपद यान' वहुत प्रकारका है। उनमें सामान्य और / याप्ता (सं० स्त्री० ) जटा। विशेष इन्हीं दो भागोंमें विभक्त हैं । २ गति । (नि.) याप्य (सं० त्रि०) यापि-पत्। १ निन्दनीय, निन्दा करनेके ३ फलप्राप्तिहेतु। योग्य । २ यापनीय, यापन करनेके योग्य । ३ गोपनीय, यानक (स० क्लो०) यान-खाथै फन् । यान देखो। . छिपानेके योग्य। ४ रक्षणीय, रक्षा करनेके योग्य । (पु०) 'यानकर (सं० वि०) करोतीतिक-अच करः यानस्य करः। ५ वह रोग जो साध्य न हो, · पर चिकित्साले प्राण- घातक न होने पावे । साध्य, याप्य और असाध्यके भेद- ' याननिर्माणकारक, रथ आदि बनानेवाला। . .