पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६५६

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याप्ययान-यामहू से सभी व्याधि तीन भागों में विभक्त हैं। उनमेसे साध्य ) यामकोश (सं०नि०) मागप्रतिबन्धक राक्षस, पथरोधक 'ध्याधिके फिर दो भेद हैं, सुखसाध्य और कष्टसाध्य। | राक्षस। जो रोग चिकित्सा द्वारा स्थगित रहे तथा विधिके यामघोष (सं० पु०) यामे प्रतियामे घोषः रवोऽस्य । अनुसार चिकित्सा नहीं करनेसे प्राण-नाश करे उसे | कुक्कुट, मुर्गा। . याप्यरोग कहते हैं। यनके साथ गाढ़ा हुआ खंभा यामघोषा (सं० स्त्री०) यामे यामे घोषोऽस्या, यामान् जिस प्रकार गिरते हुए घरकी रक्षा करता है, उसी प्रकार | प्रहरान् घोपति शब्दायते इति वा घुष-अच टाम् । यन्त्र उपयुक औषधादि द्वारा चिकित्सा करनेसे याप्यरोगी विशेष, वह घण्टा जो वोच वीचमें समयकी सूचना देनेके भी आरोग्य हो जाता है। विना चिकित्साके मनुष्यका लिये बजता हो, घटिकायन्त्र । पर्याय-नालो, घटो, योम- साध्यरोग याण्य और याप्यरोग असाध्य हो जाता है। नाली, यमेरुका, दण्डउक्का। बुद्धिमान व्यक्ति कभी भी रोगको याप्य समझ कर उस-यामतूर्य (स० क्ली०) यामज्ञापक तूयं मध्यपदलोपि की उपेक्षा न करें, वरन् विधिके अनुसार उसको कर्मधा० । थामज्ञापकतूर्यध्वनि, वह तुरहीको ध्यान जो चिकित्सा करे, यही वैद्यकशास्त्रका उपदेश है। समय जताती है। "याप्याः केचित् प्रकृत्यैव केचिद् याप्या उपेक्षया ॥" | यामदुन्दुभि (सं० पु० ) वाद्ययन्सविशेष, नगारा। कोई कोई रोग स्वभावतः हो याप्य हैं और कोई कोई यामदूत (सं० पु०) वश या कुलभेद । • उपेक्षा द्वारा याप्य होता है अर्थात् अच्छी तरह चिकित्सा यामन् ( स० क्लो०) गमन, गति। नहीं करनेसे याप्य होता है। | यामन (स'० लि. ) गति, गमन । यामनाली ( स० स्त्री०) यामस्य नालीव । यामघोषा, याप्यवान (सं. क्ली०) याप्यं अधर्म यानं। शिविका, समय बतानेवाली घड़ो। . . " पालकी। | यामनेमि (संपु०) इन्द्र। . . . .. यावू (फा० पु०) वह घोड़ा जो डील डौल में बहुत बड़ा यामयम (सं० पु० ) उस समयके खेलका नियम } .. न हो, टटू। याम (सं० पु०) यम्पते इति यम-धम् । मैथुन, जम्मण । | यामरथ (स० क्लो०) यमवत। . . . .. | यामल (स'० क्ली०) १ युगल, वे दो लड़के जो एक साथ 'याभवत् (सं० वि०) याभ-मतुप मस्य व । मैथुन- उत्पन्न हुए हों। २ एक प्रकारका तन्त्रमन्थ ।। इसमें विशिष्ट रतियुक्त। सृष्टि, ज्योतिपाख्यान, नित्यकर्मकथन, क्रमसूत्र, वर्णभेद, 'याम (सं० पु०) याति यायते वा या ( अतिस्तुसुहुमृति जातिमेद, युगधर्म और संख्या ये आठ विषय हैं। तुभा या वापदि यक्षिणीभ्यो मन् । उय् १११४० ) इति मन् । (बाराहीतन्त्र०) यह यामल छ: प्रकारका है, यथा-आदि- • यञ्च था। १ तीन घंटेका समय, प्रहर । २ संयम ।। यामल, ब्रह्मयामल, विष्णुयामल, रुद्रयामल, गणेशयामल ३ गमन, जाना। ४ गमनसाधन, यानादि। ५ एक और आदित्ययामल । • प्रकारके देवगण। इनका जन्म माकण्डेयपुराणके अनुः | यामलायन (सं० पु०) यमल-(चतुर्वर्थेषु पक्षादिभ्यः फक् । “सार खयम्भुव मनुके समय यज्ञ और दक्षिणासे हुमा पाश० ) इति फक् । यमलके गोलमें उत्पन्न पुरुष । था। ये संख्या वारह है। ६ काल, समय। (नि०)६ | यामवती (सं० स्त्रो०) यामः प्रहरः प्रस्त्यस्यामिति -याम- यमसम्बन्धीय। याम (हिं. स्त्रो०) रात। ‘मतुप मस्य च व. डीप । रात्रि, निशा .... यामक (सं० पु० ).पुनर्वसु नक्षत्र । | यामवृत्ति (स स्त्री० ) प्रहरी। यामकिनी (सं० स्रो०) १ कुलस्त्रो, कुलवधू । २ पुत्रवधू, यामश्रुत ( स० लि. ) जो जल्दी सुना गया हो। यामहू (स.नि.) १ जानेके लिये जिससे कहा जाय। लड़केको स्रो। ३ भगिनो, 'वहन । । २ जिसे नियत समय पर बुलाया गया हो। Vol. XVIII, 164