पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६५८

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६५५ यामिन-याम्यज्वर नहीं रहनेसे इसका परित्याग करना ही उचित है। संग्रह और आत्ममन्दिरस्तोल बादि ग्रन्थ अद तक मिलते प्रतिप्रसव इस प्रकार स्थिर करना होता है-- हैं। कुछ लोग इन्हें रामानुजाचार्यको गुरु वतलाते हैं। "मूलत्रिकोणनिजमन्दिरगोऽथ पूर्णो (वि०) ६ यमुनासम्बन्धी, यमुनाका। ७ यमुनाके मित्रक्षसौम्यगृहगोऽथतदीक्षीतो वा। किनारेसनेवाला। यामित्रवेधविहितासपहृत्य दोषान् यामुनेष्टक ( सं० क्लो० ) यामुनमिवे-एकम् । सीसक, दोषाकरः सुखमनेकविध विधत्ते।" (न्योतिस्तत्त्व) सोसा। चन्द्र यदि मूलत्रिकोणमें अर्थात् वृपराशिमे हों | यामुन्दायनि (सं० पु०) यमुन्दस्य गोत्रापत्यं यमुन्द अथवा निजगृहमें कर्कटमें रहे अथवा चन्द्र पूर्ण हों, । (तिकादिभ्यः फिन् । पा ४।१।१५४ ) इति फि । यामुन्द अथवा मिन वा शुभग्रहके गृहसें अवस्थित वा उससे देखे | ऋपिके गोत्रमे उत्पन्न अपत्य । जाते हों, तो यामितवेधजनित दोष नहीं होता, वरन् यामुन्दायनिक (स० पु०) यमुन्दस्य गोत्रापत्यं युवा शुभ होता है। (केश्छ च । पा ४१२१४१३ ) इति उक् । यमुन्दका युवा यागिन् (सनि०) गति। गोलापत्य । यामिनो (सं० स्त्री० ) यामाः सन्त्यस्यां याम-इनि डोप । यामेय ( स० पु० ) यामिः खस्कुलस्त्रियोरित्यनुशासनात् । १ राति, रात । २ हरिद्रा, हलदो। ३ कश्यपको एक स्त्री- यामेरपत्यमित्यर्थे ठक । १भागिनेय, वहनका लड़का । का नाम । ४ प्रहादकी दूसरी लड़की। २ धर्मकी पत्नी यामोके पुत्र का नाम । (भागवत० ६।६।६) (कथासरित्सा० ४६।२२) यामोत्तर (स क्लो०) सामभेद । यामिनीचर (स. त्रि०) यामिन्यां चरतीति चर-ट । १ यास्य ( स० पु० ) यामो निवासोऽस्य, यामो-यत्। १ निशाचर, राक्षस । (पु०)२ गुग्गुलु, गुन्गुल । ३ पेचक, अगस्त्यमुनि । २ चन्दन वृक्ष । ३ यमदूत । ४ शिव । उल्लू पक्षी। ५ विष्णु । (वि०) ६ यमसम्बन्धोय, यमका । ७ दक्षि- यामिनीपति (सं० पु०) यामिन्याः पतिः। १ चन्द्र, | गाय, दक्षिणका! चन्द्रमा ।२ कपूर, कपूर। याम्यज्वर (सं० पु० ) प्रवृद्धहीन मध्यवातादि जनित यामी (सं० स्रो०) यमस्येयं यमो देवतास्या इति वा यम- सन्निपात ज्वरभेद । भावप्रकाशके मतसे इसका लक्षण- यण डीप् । १ दक्षिणदिक, दक्षिण दिशा। २ कुलस्त्री, होन वायु, पित्ताधिक्य तथा मध्य कफ द्वारा जो सन्नि- कुलवधू । ३ धर्मको पत्नी । (विष्णुपु० १३१५॥१०५) पात ज्वर उत्पन्न होता है वह वायु, पित्त और कफके यामीर (सपु०) चन्द्र, चन्द्रमा । लिये सभी रोगोंका वलावल और दोषका आधिक्य तथा यामीरा (स स्त्री०) राति, रात। न्यूनताके अनुसार होता है। इसका तात्पर्य यह है, कि यामुन (स० क्ली० ) यमुनायां भव यमुना-अण, यमुनाया | इस रागमे वायु बहुत थोड़ी रहतो है इसलिये वेदना और इदमित्यण वा । १श्रोतोऽञ्जन, सुरमा । (पु०) २ वृहत् कम्प आदि वायुजात सभी लक्षण थोड़े परिमाणमें प्रकाश संहिताके अनुसार एक जनपदका नाम। यह जनपद होते हैं । दाह, उष्णता और पिपासा आदि होना पित्तका कृत्तिका, रोहिणी और मृगशीर्णके अधिकारमें माना काम है इसलिये पित्ताधिक्य रहनेसे ये सवलक्षण अधिक जाता है। ३ एक पर्वतका नाम । (रामायण ४१४०१२१) होते हैं। गुरुत्व, अग्निमान्द्य और प्रसेकादि कफसे होता ४ महाभारतके अनुसार एक तोर्शका नाम । ५एक है। अतएव ये सब लक्षण मध्यमरूपसे होते हैं। इस वैष्णव आचार्यका नाम, यामुन मुनि । ये दक्षिणके रंग- ज्वरके होनेसे हृदयमें दाह, यकृत, लोहा, अन्न और फुस- क्षेत्रके रहनेवाले थे और रामानुजाचार्यके पूर्व हुए थे। फुस पक जाता, अत्यन्त मूर्छा, मलद्वारसे पूय और रक ये संस्कृतके अच्छे विद्वान थे। इनके रचे हुए भागम. निकलता, सभी दांत शीर्ण तथा अन्तमें मृत्यु तक हो प्रामाण्य, सिद्धितय, भगवनीताको टोका, भगवद्गीता- जाती है। न्चर देखो।