पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६६४

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यावास-युक्त यावास (स० वि०) यवासस्य विकारः अवयवो वा यास्कायनि (सं० पु० ) यास्कके गोत्रमें उत्पन्न पुरुष । (पलाशादिभ्यो वा । पा ४१३१४१) इति अण् । यवाससे यास्कायनीय (सं० पु०) यास्कायनिका शिष्यसम्प्रदाय । वनाया हुआ मद्य, जवासेको शराव। यास्कीय (सं० पु०) यास्कका मतावलम्बी, यास्कका यावि (सस्त्री०) यावी देखो। शिष्यसम्प्रदाय । याविक ( स० पु. ) यवनाल, मक्का नामक अन्न। यियश्च (सं०नि०) यष्टुमिच्छु, यज-सन, सनन्तात् । यावी (स० स्त्री०) १ शशिनो । २ यवतिक्ता नामको | यज्ञ करने में इच्छुक, यज्ञाभिलाषी । लता। यियविषु (सं० वि०) यु-सन्-उ । मिश्रित करने में याव्य (सं० वि०) यूयते इति ( आसुयुवपिरपिलपिनपिच । मश्च । पा ३१६११२६ ) इति ण्यत् । १ मिश्रणीय, मिलानेके थियासु (सं० वि०) यातुमिच्छुः, या-सन, सनन्तात् । योग्य । (पु०)२ यवक्षार, जवाखार। गमनेच्छु, जानेकी इच्छा करनेवाला। याशु (सक्ली०) सम्भोग। यीशुखुट-ईसा देखो। याशोधरेय (सपु०) यशोधराया अपत्यं पुमान्, यशो- युक् (सं० अध्य०) युज विप् प्रत्ययेन निपातनात् साधुः। धरा वा यशोधर-उक् । शाक्यमुनिका पुत्र राहुल निल्दा शिकायत (हेम) युक्त (सं० त्रि० ) युज्यते स्म इति युज-त । १ न्याय्य, याशोभद्र (स.पु.) कर्ममासका चौथा दिन। उचित, ठोक । २ मिलित, सम्मिलित। ३ एक साध याटीक ( स० पु० ) यष्टिः प्रहरणमस्य यष्टि (शक्तियष्टया- किया हुभा, जुड़ा हुआ। ४ नियुक्त, मुकरर।५ आसक। . रीका । पा ४४५६) इति ईकक् । यष्टिधारो योद्धा, लाठो वांधनेवाला योद्धा, लठवध। ६ संयुक्त, सहित । ७ सम्पन्न, पूर्ण। ८ अवशिष्ट, पास (सं० पु.) यस-धम्। दुरालभा, लाल धमासा। वाको । ध्यापृत, फैला हुआ। गुण-मधुर, तिक्त, शीतल, पित्तदाहहर, वलकर, तृष्णा, (पु०) युज्यते स्म योगेनेति क । १० अभ्यस्तयोग, कफ और छर्दिन । ( राजनि०) वह योगो जिसने योगका अभ्यास कर लिया हो। पासशकरा ( स० स्रो०) यवासशर्करा, जवासेकी युक्त और युजानके भेदसे योगो दो प्रकारका है। शकर। जिन सब योगियोंने योगाभ्यास द्वारा चित्तको वशीभूत यासा (स' स्रो०) मदनशालाका पक्षी, कोयल।। कर लिया है तथा समाधि द्वारा सभी प्रकारकी सिद्धियां यास्क (सं० पु०) यस्कस्य गावापत्यं यस्क (शिवादिभ्योऽया। प्राप्त की हैं, उन्हें युक्त कहते हैं । जो युक्त योगी हैं उन्हें पा ४।१।११२) इति भण् । १ यस्क ऋषिके गोत्रमे उत्पन्न विना चिन्ताके सभी विषय प्रत्यक्ष होते हैं। यह युक पुरुष। २ वैदिक निरुक्तके रचयिता एक प्रसिद्ध ऋषि योगो भूत, भविष्य और वर्तमान सभी विषयको प्रत्यक्ष- का नाम। वत् देखते हैं, उन्हें किसी विषयको चिन्ता नहीं करनो महामुनि यारक निरुक्तके कती हैं। इनका होती। युञ्जान योगी चिन्ता अर्थात् समाधिका अव. बनाया निरुक इस समय भी प्रचलित है। इस समय लम्बन कर सभी विषय जानते हैं। इन्हींका बनाया निरुक्त हो वेदोंके अर्थ करनेका विद्वानों गीता में भी इसका लक्षण इस प्रकार लिखा है,- के लिये प्रधान साधन है। पाश्चात्य पण्डितोंका अनु "ज्ञानविज्ञानतृप्तात्मा कूटस्यो विजितेन्द्रियः। मान है, कि खुष्ट जन्मकें पूर्ण पांचवीं शताब्दीमें महामुनि युक्त इत्युत्त्यते योगी समलोष्टाश्मकाञ्चनः ॥" यास्क विद्यमान थे। निरुक्तके देखनेसे पता चलता है कि महामुनि यास्कके पहले भी अनेक निरुककार हो, ( गीता ६) जो ज्ञान और विज्ञान द्वारा परितृप्त, जितेन्द्रिय और . चुके थे। उनमें शाकपूणि, उर्णनाभ, स्थूलोष्ठियो आदि कूटस्थ अर्थात् निर्विकार है, तथा जिनके निकट मट्टी, कतिपय निरककारोंका उल्लेख महामुनि यास्कने किया है। पत्थर और सोना सभी समान है, तथा जो पोगारूढ़ हैं Vol. XVIII, 166