पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६६७

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उनकी भूल दिखलाते हुए 'युग' शब्दका अर्थ कालवाचक वर्ण होता है। मानुषमानके सौ वर्षका उनका तीन ही लगाया है.। १०११४०६ कमें भी "मानुषयुगे" शब्द, वर्ष चार मास होता है। लौकिकमानके जो अब्द निधि कालवाचकके सिवा और कुछ भी नहीं हो सकता है, शास्त्रमें उसे दिव्यहोरान कहा है। इस दिव्य -: अभी "मानुषयुग" यदि कालवाचक किया जाय, तो रात्रिदिनका विभाग इस प्रकार है, उत्तरायण दिवा एक युगको परिमाण कितना है, यह जान लेना आवश्यक और दक्षिणायन राति। है। अथर्ववेदके ( २१) एक स्तोत्रमें इस भावकी) मानवीय तीस वर्षका एक मास और एक सौ वर्ण- प्रार्थना है-"हम लोग तुम्हारे १०००००० वर्ष, २२३ का दिध्य तीन मास दश दिन होता हैं। दैव वत्सरादि अथवा ४ यग परिमित जीवनकी कामना करते हैं।" | गणनाका नियम इसी प्रकार जानना होगा। यहां यग शब्दका अर्थ कमसे कम दश हजार वर्ग मानना 'मानवीय तीन सौ साठ वर्षका दिय एक वर्ष और होगा। किन्तु ऋग्वेदमें युग शब्दका अर्थ अति अल्प- तीन हजार तीस वर्षाका सप्तर्षियोंका एक वर्ष होता है। • कालव्याक था, उसके अनेक प्रमाण भी मिलते है। मानवीय नौ हजार नब्बे वर्षका क्रौञ्च एक वर्ष और महामति बालगडाधरतिलकने खकृत "The Arctic Home• छत्तीस हजार वर्षका दिध्य एक सौ वर्ष होता है। in the Vedas" नामक पुस्तकमें ऋग्वेदके १२११३८ । ____ मनुष्यमानका नियुक्त साठ हजार वर्णका दिष्य एक ११२३३२, ८७६६, १०।३५४, ऋक् उद त कर यह प्रति- 'हजार वर्ष होता है। दिव्य प्रमाण द्वारा इसी प्रकार युग- पन्न किया है, कि ऋग्वेदके व्यवहृत युग शब्दका अर्थ | की संख्या निरूपित हुई है। युगसंख्याको कल्पना सभी एक वर्षसे भी कम समय था । कहाँ कहीं "युग" शब्द- 'जगह दिध्य प्रमाणसे स्थिर होती है। .. से एक मासका आधा अर्थात् पंद्रह दिन समझा जाता ___भिन्न भिन्न युग और युगसमष्टिका मान । था। धीरे धीरे यह शब्द दीर्घकालवाचक हो गया है। पुराणवक्ता सौतिसे जब ऋषियोंने स्वायम्भुव मन्धः । ब्रह्माण्डपुराणके मतसे इस भारतवर्षमें चार युग निक- पित हुए है, पहला कृत वा सत्य, दूसरा त्रेता, तीसरा न्तरीय चार युगोंका हाल पूछा, तब उन्होंने युग, युगभेद, द्वापर और चौथा कलि । इन चार य गोमेंसे सत्ययुग युगधर्म, युगसन्धि, युगांश और युगसन्धान, युग- का परिमाण चार हजार वर्ष है। इसकी संध्या और सम्बन्धोय ये छः प्रकारके विवरण ब्रह्माण्डपुराणमें सन्ध्यांश दोनों हो चार सौ वर्णके होते हैं। त्रेता. युगका परिमाण तोन हजार वर्ण, सन्ध्या तीन सौ और .. . . यगनिरूपण। सन्ध्यांश तीन सौ वर्ष है। द्वापरय गका परिमाण दो . ब्रह्माण्डपुराणके अनुषङ्गपाद ६१वें अध्यायमें लिखा हजार तथा संध्या दो सौ और संन्ध्यांश दो सौ वर्ष है। है,--निमेष, काष्ठा, कला और मुहूर्त आदि समयवाचक कलियुगका परिमाण दो हजार वर्ण तथा संध्या शब्दोंके मध्य एक लघु अक्षर उच्चारण, करनेमें जितना और संध्यांश दो सौ वर्ण है। सत्य, त्रेता, द्वापर और समय लगता है उसका नाम निमेष है। पन्द्रह निमेषकी कलिं, इन चारों युगोंका कुल दिव्य परिमाण बारह एक काष्ठा, वीस कायाको एक कला, तीस कलाका एक हजार वर्ष है। मुहूर्त और तीस. मुहर्शका.. एक अहोरात्र .. होता है। मानवीय अहोरात्रके वनानेवाले सूर्ण हैं। इनमेंसे दिवा मनुष्यमानमें सत्ययुगका परिमाण. १४४०००० वर्ष कर्मचेष्टाके लिये और रात्रि निद्राके लिये कल्पित है। है। अन्यान्य युगोंका भी मानुषमान उसी अनुपातसे. स्थिर करना होगा। . मनुष्यमानके चार युगोंका कुल मानवीय परिमाणमें एक मासका.पितरोंका एक.अहो. | परिमाण .४३२०००० वर्ण है। रात्र होता है। उनमेंसे कृष्णपक्ष उनका दिवा और शुक्ल- विष्णुपुराणमें लिखा है, कि पन्द्रह निमेषकी एक पक्ष उनको राति है। मानुषमानके तीस मासका पितरों- . .का एक मास और उनके. ३६० मासका पितरोंका पक, काष्ठा, तीस काष्ठाको एक कला, तीस कलाको एक