पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६६९

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६६६ को बेच कर लोग धन जमा करेगा। कन्या, पुत्रवधू, भगिन "तपः परं कृतयुगे त्रेतायां शानमुत्तमम् । आदिके साथ अगम्यागमन करेगा। केवल मातृयोनि द्वापरे यज्ञमेवाहुर्दानमेकं कलौ युगे ॥" छोड़ कर सभी स्त्रियोंके साथ वह विहार करेगा तथा . (वृदत्पराशर १९०) पतिपत्नीका निर्णय नहीं रहेगा। वेश्या, रजस्वला, वृद्धा चार यु गोंका विषय संहितानिर्णयविषयमें इस प्रकार और कुट्टिनी स्त्री ब्राह्मणोंकी रन्धनशालामें पाचिका | लिखा है,- होगी। आहारादिका निर्णय और योनिविचार कुछ भी "कृते तु भानवो धर्मस्तायां गौतम स्मृतः । न रहेगा। सभी मनुष्य स्त्रीके वशीभूत होंगे तथा प्रत्येक | द्वापरे शङ्खलिखितौ कलौ पराशरः स्मृतः ॥" घरमें स्त्रियां वेश्यावृत्तिका अवलम्वन करेंगी। गृहिणी (पराशरस० १०) हो घरकी ईश्वरी होगी। स्त्रो कन्यादिको छोड़ कर और सत्ययु गमें मनुसंहिता धर्मशास्त्र, नेता गौतम- किसीके साथ सम्बन्ध न रहेगा। सहपाठियोंके साथ संहिता, द्वापरमें शङ्ख और लिखित संहिता तथा कलि- बोलचाल भा न होगी। परिचय मात्र ही लोगोंकी | युगमें पराशरसंहिता ही धर्म शास्त्र है। धन्धुता होगा, दूसरे किसी भी उपकारादिका' संस्रव __सत्ययुगमें पतित व्यक्तिके साथ बातचीत करनेसे, आपसमें न रहेगा। विना स्त्रोको अनुमतिके पुरुष कोई | त्रेतामें पतितका स्पर्श करनेसे, द्वापरमें पतितका अन्न भी कार्य न कर सकेगा। इस युगके प्रभावसे जव जन- | खानेसे तथा कलियु गमें कर्म द्वारा ही पतित होना पड़ता समाजमें किसी प्रकारका विभेद न रहनेके कारण सभी है। सत्ययु गमें जिसे दान करना होगा, उसके पास मनुष्य म्लेच्छ हो जायेंगे, तव भगवान् विष्णु कलिक | जा कर लेतामें बुला कर, द्वापरमें प्रार्थना करने पर और अवतार धारण कर इनका ध्वंस करके पुनः सत्ययुग कलिकालमें सेवा करने पर दान किया जाता है। इन प्रवत्तित करेंगे। सब दानों में जो दान किसोके यहां जा कर किया जाता यह सत्ययुग प्रवर्तित होनेसे धर्म पूर्णभावमें विराज है, वह उत्तम, आहूत दोन मध्यम, याच्यमान दान अधम मान रहेंगे । जगत्में ब्राह्मण तपस्वी और धार्मिक हो कर और सेवादान निष्फल है। सत्ययु गर्ने जीवका प्राण वेदाङ्ग आदि अच्छी तरह जानेंगे। प्रत्येक घरमें स्त्रियां अस्थिगत, नेतामें मांसगत, द्वापरमें रुधिरगत और पतिव्रता और धर्मिष्ठा होंगी। विप्रभक्त क्षत्रियगण राजा | कलिकालमें अन्नगत कहा गया है। सत्यय गमें शाप होंगे तथा वे अत्यन्त प्रतापशाली, धार्मिक और सर्वदा तत्क्षणात् फलवान्, त्रेतामें दश दिनमें, द्वापर में एक पुण्यकार्यमें रत रहेंगे। वैश्य और शूद्र अपने अपने | महीनेमें और कलिमें एक वर्षमें शाप फलवान होता है। धर्मका पालन करेंगे। सभी अपने अपने धर्ममें नियुक्त कलियु गमें धर्म सत्य और आयु ये सव चतुर्थाश कहे रहेंगे तथा सोंकी बुद्धि अति निर्मल होगी। अधर्मका | गये हैं । प्रतिवु गमें ही वर्नमान ब्राह्यण पूज्य और मान- लेशमात्र भी न रहेगा। धर्म त्रेता त्रिपाद होगा, नीय है। (वृहत्पराशरस० १०) . इसलिये लोग बहुत थोड़ा अधर्म करेंगे। द्वापर में धर्म , मनुमें लिखा है, कि सत्ययुगमें चार सौ वर्ष पर. विपाद होगा, इसलिये वहांके लोगोंका पापपुण्य मिला | मायु, श्रेतामें तीन सौ, द्वापर में दो सौ और कलिमें सौ रहेगा। वर्ण परमाय है। सत्ययुगमें सभी मनुष्य अरोगी तथा इस प्रकार सत्य, त्रेता, द्वापर और कलियुगका ३६० सभी विषय सिद्धिलाभ करते हैं। त्रेतादि युगमें इन युग बीत जाने पर देवताओंका एक युग होता है।। सबको पादपाद होन जानना होगा। श्रुतिमें 'पुरुष शतायु।' (देवोभागवत ८ अ०) ऐसा लिखा है, किन्तु सत्ययुगमें चार सौ और त्रेतामें वृहत्पराशरसंहितामें चारों युगका धर्म इस प्रकार तीन सौ वर्ष परमाय होगा। ऐसा होनेसे श्रुतिवाक्य- निरूपित हुआ है,- सत्ययु गमें तपस्या, नेतामें ज्ञान, के साथ विरोध होता है। परन्तु सौ, शब्दका अर्थ है द्वापरमें यज्ञ और कलियु गमें दान ही एकमात्र परमधर्म | कलि पर अर्थात् कलियु गरें : जीवकी परमायुः सौ वर्ग