पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६७

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• मुद्रातत्त्व (भारतीय) हिन्दू आदर्शकी ही रक्षा की गई थी। प्राचीन मुद्रा- , फलके बदले में एक रौप्यटङ्ग ( रुपया ) मिलता था शिल्पकी विगतम्मृति सुलतान अलतमसकी अश्वारोही इसके सिवाय उन्होंने २६० कानी मूल्यको निशफि' मुद्रामें मानो एक बार उहोत हो कर विलीन हो गई है। वा चवन्नी और ५० कानी मूल्यको अठन्नी भी चलाई शाहबुद्दीन महम्मद घोरोसे ले कर गयासुद्दीन तक ६० थी। उनके समयको मोहर 'अशरफी' कहलातो थी। राजाओंकी मोहरमें तुमा वा पारसी लिपिके साथ इस अशरफीके अनुकरण पर राजपूतानेके राजाओंने भारतवासीके मनोरञ्जन वा सुविधाके लिये नागरी 'अशाचरी' नामको मुद्राका प्रचार किया। अक्षरमें भी नामाङ्कित हुआ है। यहां तक कि, अपनी अपनी ___ भारतके नाना स्थानोंसे उक्त प्रकारको अनेक 'मुद्रा पर कुतुवउद्दीनने "भूपाल", फिरोजशाहने “वभूव मुसलमानो मुद्रा मिलने पर भी उनमें शिल्पनैपुण्यका भूमिपतिः", मैजउदोन और अलाउद्दीनने "नृपः" वा कोई विशेषत्व नहीं है। चित्तोरके राणा कुम्मने गुज- "नृपति”, नासिरुद्दीनने "पृथ्वीन्दु” तथा गयासुद्दोनने । रात और मालवके मुसलमान राजाओंको परास्त कर 'श्रीहम्मीर"की उपाधिका व्यवहार किया था। फिरसे प्राचीन हिन्दू आदर्श पर मुद्रा ढलवाना आरंभ इसके बाद मुदा पर मूर्ति छपना बिलकुल बंद हो कर दिया था। उन. चलाए पैसेके एक ओर स्वस्तिक- जाने पर भी लिपिविन्यासकी अपूर्व परिपाटी और चिह्नसम्वलित 'कुम्भक' नाम और दूसरी ओर एकलिङ्ग- निपुणता देखो जाती है। परवत्तीं मुसलमान राजाओं- | के मन्दिर-चित्रके साथ 'यकलिङ्ग' नाम खोदा हुआ है। की मोहरों पर कई जगह प्रत्येक राजाके नाम, सन् और राणा सङ्गकी मुद्रा पर त्रिशूल और स्वस्तिक चिह्न अङ्कित कुरानसे उपदेशमूलक वाक्य उद्धत हुए हैं। भारतीय रहता था। मुद्रातत्त्वविदोंका कहना है, कि दिल्लीश्वर महम्मद-विन- विजयनगरमें हिन्दू-राजाओंके अभ्युदय होनेसे तगलकके पहले तक भारतवर्ष में पूर्व मुद्रामान ही वरावर प्राचीन दाक्षिणात्यकी मदाका फिर यथे प्रचार हो चला आता था। इस समय भारतवर्ष में भिन्न भिन्न | गया । कृष्णानदीके उत्तर तमाम मुसलमानी तङ्के तौलकी भिन्न भिन्न मुद्रा प्रचलित थी। इससे जन ( रुपये ) का प्रचार रहने पर भी कृष्णाके दक्षिण राम साधारण, विशेषतः व्यापारियों के पक्षमें विशेष असुविधा राजाओंका टङ्क भादि ही प्रचलित था। दाक्षिणात्य. समझ कर दिल्लीश्वरने निम्नलिखित मुद्रामान स्थिर कर का मुद्रामान इस प्रकार है:- दिया:- २ गुञ्जा-१ दुगल ( =% पणम् वा फणम् ) १ कानी-१ जीतल। २ दुगल%१चवल (-१ पणम् ) २ , =दोकानो वा सुलतानी । २चवल%१ धारण। ६ , षषकानी, % हस्तकानी । २ धारण-१ होण ( =१ प्रताप, माद वा आधा ८, -हस्तकानी। १२ , दुवाजदह कानी। २ होण-१ वराह ( = १ हण वा पगोडा) १६ , खानजदह कानी। अकबर बादशाहके समय मुसलमानी मुद्राशिल्पको ६४, = ६ तङ्का ( चांदीके रुपयेका) बहुत कुछ उन्नति देखी जाती है। उन्होंने अपने अपने ____-१७५ प्रेन। अधिकारमुक्त सभी प्रधान शहरों में कुल मिला कर ४२ इसके अतिरिक्त १ कानीके बदले में ४ तांबेका 'फल' | टकसाल खोल कर अनेक प्रकारके सोने, चाँदी और फेल ), दोकानीका मूल्य ८ और हस्तकानोका मूल्य | ताम्रखण्डका प्रचार किया था। नीचे अकवरी मुद्राको तांबेका फल निश्वित हुआ। अतएव २५६ तांबेके तालिका और उसका मूल्य दिया गया है। - पागोडा।