पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६७१

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पाते हैं। युग-युगन्धर नामक वर्ण सुभिक्षप्रद होने पर भी इस वर्ष में रोग और | का नाम रोधकृत् है। इनमेंसे कोलक और सौम्य वर्ष भयादि होते हैं। अत्यन्त शुभप्रद है। प्लवङ्गं वर्षमें प्रजाओंको बहुत क्लेश चतुर्थ हताश नामक युगके प्रथम वर्षका नाम चित्र होता । साधारण वर्णमें सामान्य वृष्टि होती तथा इतिका भानु है। यह वर्ण उत्कृष्ट फल देनेवाला है। द्वितीय | भय होता है। रोधकृत् वपमें सुवृष्टि और पृथिवी शस्य- वर्णका नाम सुभानु है, यह मध्यम फलविशिष्ट है। तृतीय | शालिनी होती है। वर्णका नाम तारण है । इसमें वृष्टि बहुत होतो है। चतुर्थ | दशम शक्राग्नि दैवतयुगके प्रथम वर्णका नाम परि- वर्णका नाम पार्थिव हैं । इस वर्णमें पृथिवी शस्यशालिनी | | धारी, २य प्रमादी, ३य सानन्द, चतुर्थ राक्षस और पम होती है। पञ्चम वर्ष का नाम व्यय है। इस वर्णमें | वर्णका नाम अनल है। इनमेंसे परिधारी नामक वर्णमें प्राणिगण कामोद्दीप्त और उत्सवाकुल हो कर शोभा | मध्यदेश नाश, राजाको हानि, सामान्य वृष्टि और अग्नि- मय होता है। प्रमादी वर्णमें मनुष्य आलसी तथा नाना त्वाष्ट्र नामक पञ्चम युगके प्रथम वर्णका नाम सर्वा- प्रकारके विप्लव होते हैं। आनन्दवर्ण आनन्ददायक तथा जित्, द्वितीयका सर्वधारी, तृतीयका विरोधो, चतुर्थका राक्षस और अनलवर्ण क्षयजनक होता है। . विकृत और पञ्चम वर्णका नाम खर है। इन पांचों में एकादश अश्वि नामक युगके प्रथम वर्णका नाम द्वितीय वर्ण मङ्गलकारक तथा वाकी चार भयका | पिङ्गल, २य कालयुक्त, ३य सिद्धार्थ, ४ा और ५म वर्षका कारण है। नाम दुर्मति है। इनमेंसे प्रथम वर्णमें अत्यन्त वृष्टि, प्रोष्ठपद नामक छठे युगके प्रथम वर्णका नाम नन्दन, । चोरका भय, श्वास और कास होता है। कालयुक्त वर्ण द्वितीयका विजय, तृतीयका जय, चतुर्थका मन्मथ और | अत्यन्त दोषकारी, सिद्धार्थ वर्ष शुभफलप्रद, रौद्रवर्ण पञ्चम वर्णका नाम दुर्मुख है। इन पांच युगोंमेंसे प्रथम | अशुभफलप्रद और दुर्मति वर्ष मध्यफली होता है। तीन उत्कृष्ट, मन्मथ वर्ण समकाली और पञ्चम अत्यन्त | ____ द्वादश भगाधिदैवत-युगके प्रथम वर्णका नाम दुन्दुभि, हेय है। २य उद्दारी, ३य रक्षाक्ष, क्रोध और ५म वर्णका नाम सप्तम पितृयु गके प्रथम वर्णका नाम हेमलम्ब, | क्षय है। इनमें से प्रथम वर्ण शुभफलप्रद, द्वितीय वर्ष में द्वितीयका विलम्वी, तृतीयका विकारो,चतुर्थका शर्यरो और राजाका क्षय और असमान वृष्टि, तृतीय वर्णमे दष्ट्रि- पञ्चम वर्णका नाम प्लव है। इसके प्रथम वर्णमें ईतिभय | जन्य भय और रोग, चतुर्थ वर्षमें युद्धादि द्वारा राज्य- और झंझाविशिष्ट वारिवर्णण, द्वितीय वर्षमें शस्यवृष्टि | नाश, पञ्चम क्षय नामक वर्षमें क्षय होता है। यह वर्ष अल्प, तृतीय वर्ष में अतिशय उद्वेग और अत्यन्त उत्पात, | ब्राह्मणोंका भीतिप्रद और कृषोवलका वर्द्धनकारी है। चतुर्थ वर्ष में दुर्भिक्ष और भय तथा पञ्चम वर्णमें सुवृष्टि | इस वर्णमे परधन अपहारी वैश्य और शूद्रको वृद्धि होती और शुभ होता है। है। (वृहत्संहिता ८ अ.) ___ अष्टम वैश्वयु गके प्रथम वर्णका नाम शोभकृत् , युगकीलक (सं० पु०) युगस्य कीलकः। युगकाष्ठका द्वितीय शुभकृत् , तृतीव क्रोधी, चतुर्थ विश्वावसु और कोलक, वह लकड़ी या खूटा जो वम और जुएके पञ्चम पराभव है। इसका प्रथम और द्वितीय वर्ष मिले छेदोंमें डाला जाता है। घजाओंका प्रीतिकारक, तृतीव वहुदोषप्रद तथा | युगक्षय (सं० पु० ) युगस्य क्षयः। युगका क्षय, युगका वाकी दो वर्ष समफली हैं। किन्तु पराभव वर्ष में | नाश । अग्नि, शस्त्र, रोग, पीड़ा तथा ब्राह्मण और गौको भय | युगच्छद (स.पु.) वृक्षविशेष । होता है। युगन्धर ( स० पु.) युगं धारयतीति धारि (संज्ञायां नवम सौम्ययु गके प्रथम वर्णका नाम प्लवङ्ग, द्वितीय | भृत्वृजिधारिसहितपिदमः। पा ३१२४६) इति खच् कीलक, तृतीय सौम्य, चतुर्थ साधारण और पञ्चम वर्ष | ततो मुम्। १ कूवर, हरस। २ गाड़ीका वम । ३