पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६७४

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६७१ युग्यवाइ-युद्ध पा ॥२२) इति यत्, युग महंतीति वा 'दण्डादित्वात् । युतक (सं० क्ली०) यु त-क। १ संशय, संदेह । २ युग, यत्, यद्वा युज्यत इति युज (युग्यञ्च पने। पा ३२१२१) जोड़ा। ३ अंचल, दामन । ४ प्राचीनकालका एक इति क्यवन्तो निपातितः। १ वाहन, वह गाड़ी जिसमें प्रकारका वस्त्र जो पहननेके काममें आता था। ५ शून, दो घोड़े या बैल जोते जाते हों। (पु०) युगं वहतीति सूपके दोनों ओरके किनारे जो ऊपर उठे हुए होते हैं युग ( तहति रथयु गपासङ्ग। पा ४१४१७६ ) इति यत् । २ और पीछेके उठे हुए भागसे जोड़ कर बांधे रहते हैं। युगवाही पशु, वे दो पशु जो एक साथ गाड़ीमें जोते जाते ६ मैत्रीकरण । ७ संश्रय । ८ यौतुक । हो। (लि.) ३ जो जोता जानेके योग्य हो। ४ जो युतद्वषस् (सं० वि०) पृथक्भूतशत्रु का जोता जानेवाला हो। (ऋक्, ११५३६३) युग्यवाह (सं० पु०) १ अश्वचालक, गाड़ीवान । २जोड़ी यतवेध (सं० पु०) एक योगका नाम। यह योग उस हांकनेवाला। समय होता है जब चन्द्रमा पापग्रहसे सातवें स्थानमें युगिन् (सं० पु०) एक वर्णसंकर जाति, गंगापुत्रकी कन्या होता है या पापग्रहके साथ होता है। ऐसे योगके समय और वेशधारीके औरससे इस जातिकी उत्पत्ति हुई हैं। विवाहादि शुभ कर्मोका फलितज्योतिषमें निषेध है। (ब्रह्मवैवर्त पु० ब्रह्मख० ) ___ यामित्र शब्द देखो। युज् (सं० वि०) युज-योगे क्विन् । १ योगकर्ता, मिलाने- युति (सं० स्त्री० ) यु-क्ति । योगमिलन । वाला ।२ युग्म, जोड़ो। ३ सम । (पु०) ४ दो अश्विनी- युत्कार (सं०नि०) युद्धकारी, लड़ाई करनेवाला । कुमार। । युद्ध (सं० क्ली० ) युध्यते इति युध भावे क्त। योधन, युज्य (सं० वि०) १ संयुक, मिला हुआ। २ मिलाने लड़ाई । पर्याय-आयोधन, जन्य, प्रधन, प्रविदारण, योग्य। ३(पु०) संयोग, मिलाप। ४ एक प्रकारका मृध, आस्कन्दन, संख्य, समीक, साम्परायिक, समर, सान। युक्षक (सं०नि०) युक्त, कार्यनिरत । अनीक, रण, कलह, विग्रह, संप्रहार, अभिसम्पात, कलि, युजन्द (सं० लो०) एक स्थानका नाम । संस्फोट, संयुग, अभ्यामई, समाघात, संग्राम, अभ्यागम, गुञ्जवत् (सं० पु०) पुराणानुसार एक पर्वतका नाम । आहव, समुदाय, संयत्, समिति, आजि, समित् युध, इसका दूसरा नाम मुअवान् भी है। संराव, आनाह, सम्परायक, विदार, दारण, संवित्, युञ्जातक (सं० पु०) एक वृक्षका नाम। इसका गुण- सम्पराय, तीक्ष्ण, अम्बरोप, वलज, आनतं, अभिमय, वलकर, शीतल, गुरु, स्निग्ध, तर्पण, वृहण, वातपित्त समुदय । (जटाधर ) नाशक, खाटु और वृष्य । ( चरकसू० २७ अ०) वैदिक पर्याय-रण, विवाक, विखाद, नदनु, भर- युझान (सं० पु०) युज-शानच् । १ सारथी। २ विप्र। आनन्द, आहव, आजि, पृतनाज्य, अभोक, समीक, मम- ३ योगिविशेष । भाषापरिच्छेदमें लिखा है, कि युक्त और सत्य, नेमधिता, सङ्क, समिति, समन, यीड़वाह, पृतना, युञ्जान मेइसे योगी दो प्रकारका है। ऐसा योगी समाधि स्मृध, मृध, पृत्सु, समत्सु, समय, समरण, समोह, लगा कर सब बातें जान लेता है। समिध, सङ्घ सङ्ग, संयुग, सङ्गथ, सङ्गम, गृचतूर्ण, वृक्ष, युद्धानक ( त्रि०) युजान नामक योगो। आणि, शूरसाति, समनीक; खल, खज, पौस्य, महाधन, युआन देखो। वाज, अज्म, सद्म, संयत्, संकत । (वे०नि० २११७) युत् (सं० क्लो० ) युत्-क्विप् । निन्दा, शिकायत। ___ कविकल्पलतामें लिखा है, कि युद्ध में निम्नोक्त विषय- युत (सं० पु०) यु-क । १ चार हाथको एक नाप । (वि०) का वर्णन करना होता है। जैसे-चर्म, वर्म, वल, चर, २ युक, सहित ३ मिलित, जो अलग न हो हाथीसे धूलि; ताल्वन, सिंहनाद, शवमण्डल, रक्तनदी, छिन्न- कुचलवाना। | छत्न, रथ, चामर, हस्तो, अश्व, केतु, विदीर्णकुम्भक-