पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६७९

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पत्ति आदि आठ अङ्गपात अपने अपने ज्येष्ठके अनुः । 'गरुड़ो मकरव्यूहश्चक्री श्यनस्तथव च। गत रहेंगे। ज्येष्ठानुसारो रह कर वे अपनी अपनी अर्द्धचन्द्रश्च वज्रश्च शकटब्यूह एव च ॥ सेनाओंकी देखभाल करेंगे। जो सर्वसेनापति हैं वे मण्डलः सर्वतोभद्रः सुचीव्यूहस्तथैव च । सर्वोको अनुगामो करके अच्छे नियमोसे अनुशासन | व्यूहाः प्रापयशरूपाश्च द्रव्यरूपाश्चनैफधा ।" और परिचालनादि करेंगे। पत्ति आदि प्रत्येक सैन्य- (अग्निपुरणदीक्षाप्रकरयाध्या) विभागमें फिर तीन तीन अधिपति नियुक्त करेंगे। यह ] ___ दश प्रकारके व्यूह ये हैं:- गण्ड़, मकर, चक्र, श्येन, अधिपति उत्तम, मध्यम और अधम इन तीन भागोंमें / अर्द्धचन्द्र, वज्र, शकट, मण्डल, सर्वतोमर और सची। विभक्त है। ये सभी अपने अपने प्रधानके अधीन रहेंगे। सेनापति युद्धस्थानका अवलम्वन कर शत्र के विना जाने सेनापतिगण अपनी अपनी सेनाके मध्य विभाग अपनी सैन्यकी रचना करे। नोतिसार और नीतिमयूख क्रमसे प्रति दिन एक एक करके सोतका प्रचार करेंगे। ग्रन्थमें लिखा है, कि सेनापति व्यूहको रचना करके सबसे सेनापति अपनी अपनी सेनाको एक जगह न रखें, प्रति आगे आप खड़े रहें। अन्यान्य वीरपुरुष उसे वेष्टन कर दिन उन्हें परिवर्तन कर कार्यमें नियुक्त करें। क्योंकि युद्ध करें। किन्तु इन सब सेनाको पहले सेनापतिको सेनाओं के एक जगह और अपरिवर्तित रहनेसे शङ्काका रक्षा करनी होगो । स्त्री, अर्थ, राजा, खाद्य द्रष्य और उसके कारण हो जाता है। रक्षक, इन सवको व्यूहके मध्यस्थलमें रखना होगा। गजारोही, अश्वारोही, रथारोहो और पदाति सेनापति युद्ध के समय सेनाओंको व्यूहाकारमें रच । यही चार प्रकारकी सेना व्यूहमें रहेगी। उन्हें निम्नोक्त कर युद्ध करें। व्यूहका विषय इस प्रकार कहा गया । प्रणालीके अनुसार सजाना होगा। जितने प्रकार के है। नीतिमयूखकारने छः प्रकारके व्यूहोका उल्लेख । ब्यूह हैं, सभीमें एक साधारण नियमानुसार हाथो घोड़े किया है, यद्यपि गरुडपुराण आदिमें अनेक प्रकारके रखने होंगे। न्यूहका उल्लेख है, तो भी उनके मतसे इन्हीं छः प्रकार- पहले न्यूहकी रचना कर उसके दोनों पार्श्व में अवा- में सभी व्यूह आये हैं। . रोही, अश्वारोहीके पार्श्व में रथारोही रथके पार्श्व में "यद्यप्यन्ये च गरुडादयो व्यूहभेदेनोक्तास्तथाप्येतेषाः | हस्त्पारोही और हस्तिके पाच में पदाति सैन्य मन्तर्भावात् पोव व्यूहमेशज्ञ याः। व्यूहस्तु मकर- रहेगी। श्येनसूचीशकटवज्रसर्वतोभद्रभेदात् पोढ़ा ।" ( नीतिम० ) ___ नीतिमयूखकारके मतले प्रत्येक व्यूहमें दो दो करके छः प्रकारके व्यूह ये हैं, १ मकर, २ श्येन, ३ सूची,-४ | सेनापतिका रहना उचित है। क्योंकि एक सम्मुख भाग- शफट, ५ वज्र और ६ सर्वतोभद्र। कहां पर कैसा व्यूह | · की और दूसरा पश्चाद्भागकी रक्षा करेगा। युद्धकुशल वनाना चाहिये, उसका विषय महाभारतमें इस प्रकार | सेनापति चतुरङ्गावलको अग्रगामी करके आप युद्धोप- लिखा है। जहां पर सामनेमें भय रहे, वहां मकरन्यूह, करणयुक्त सेनाओंके पश्चानुभागमें खड़े रहे और • अथवा श्येन वा सूचीव्यूह करना होता है। पश्चाद्- दुःखित, पलायमान तथा भङ्गोद्यत सेनाओंको आश्वास भागमें भय रहनेसे शकटवूाह, दोनों पाश्चमें भय रहनेसे | प्रदान करें। वज्रव्यूह तथा जहां सभी ओर भयकी सम्भावना हो, ____ अग्निपुराणके रणदीक्षा अध्यायमें लिखा है, कि वहां सर्वतोभद्रव्य ह बनाना होगा। अग्निपुराणमें दश। राजा एक ही बारमें सभी सेनाओंको व्यू हमें न रखें। प्रकारके व्यूहको प्रधान बताया है। इसके अलावा सभी सेनाओं को पांच भागोंमें विभाग करना होगा। इन युद्धकालमें ग्राणोके अङ्गका साहश्य ले कर तथा भिन्न | मेसे दो भाग पक्षमे और दो अनुपक्षमें तथा एक भाग भिन्न द्रध्यका गठन प्रकार देख कर तरह तरह व्यूह रचे छिप कर रहेगा। विवेचनानुसार एक या दो भाग द्वारा । युद्ध करें। बाकी तीन भागोंको इनको रक्षामें नियुक्त जाते हैं।