पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६८५

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६२ युधान-युधिष्ठिर नाम । ३ कृष्णके एक पुत्रका नाम । ४ उज्जयिनीराजभेद । | भीष्म पितामहकी देख रेखमें रह कर धृतराष्ट्र-पुत्रोंके युधान (सं० पु० ) युध्यतेऽसौ युध ( युझि बुझि दृशः |: साथ लालित पालित और शिक्षित होने लगे। वे किच्च । उण २६०) इति आनच, स च कित्। १ पाचों भाई 'वचपनसे ही कृत्रिम यु धादि किया करते क्षत्रिय । २ रिपु, शनु । थे। पितामह भीष्मदेवने पौलोंको विशिष्ठरूप विद्या और युधामन्यु ( स० पु०) महाभारतके अनुसार एक राजाका | विनयशिक्षाके लिये वाणप्रयोगनिपुण, अस्त्रविद्याविशा- नाम जो महाभारत युद्ध में पाण्डवोंकी ओरसे लड़ा था। रद, वीर्याशालो द्रोणाचार्यको नियुक्त किया। महाभाग इनका ठीक नाम क्या था इसका पता नहीं है। ये द्रोणाचार्याने युधिष्ठिरको धनुर्वेद' सिखाया। थोडे युद्धक्षेत्रमें शत्रुओंके प्रति क्रोधातुर हो कर युद्ध करते थे, ही दिनोंमें पाण्डव और कौरवगण अस्त्रविद्याविशारद इस कारण युधामन्यु नामसे इनकी प्रसिद्धि हो गई थी। हो गये । युधिष्ठिर महासारथी हुए । व• चलानेमें वे इनके दूसरे भाईका नाम उत्तमौजा था। ये दोनों भाई | बड़े सिद्धहस्त थे । परन्तु शासन आदि कार्योंमें बड़े वीर और साहसी थे। उनकी जैसी अभिज्ञता थी, वैसी युद्धविद्यामें नहीं। युधासुर ( स० पु०) नन्द राजाका एक नाम । महाभारतके आदिपर्व १३४वे' अध्यायमें श्येननिग्रह युधिक (सं० लि०) युध-ष्णिक् । योद्धा, लड़ाई | प्रसङ्गमें अर्जुनको छोड़ कर पाण्डव कौरवोंकी तीक्ष्ण करनेवाला। दृष्टि, लक्षा ज्ञान और युद्धशास्त्रमें अभिज्ञताका यथेष्ट यधिगम (संपु०) युद्ध में जाना। परिचय दिया गया है। द्रोणाचार्य देखो । युधिष्ठिर ( स० पु०) युधि संग्रामे स्थिरः ( गवियुधिभ्यां शिक्षा समाप्त होने पर धृतराष्ट्रने युधिष्ठिरको युवराज स्थिरः। पा ८।३६५ ) इति षत्वं । ( हलदण्डात् सप्तभ्यां वनाया। पिताके इस व्यवहारसे असन्तुष्ट हो कर संज्ञायां। पा ६।३।६) इति अलुक् चन्द्रवंशी सुप्रसिद्ध रोजा दुर्योधन पाण्डवोंका सौभाग्य नष्ट करनेको पाण्डुके ज्येष्ठ पुत्र। पर्याय-अजातशत्रु, शल्यादि, चेष्टा करने लगा। दुःशासन कर्ण और शकुनिके धर्मपुत्र, अजमीढ़ । ( हेम ) साथ सलाह कर उसने कुन्तीके सोथ पाण्डवों __पाण्डवोंमे ये सबसे बड़े थे। महाभारतमें लिखा | को वारणावत नगरमें भस्म करा देनेका प्रयत्न किया है. कि दुर्वासाप्रदत्त मन्त्रका यथाविधान जप करके था। वहां पहले हीसे एक लाहका घर बनाया गया कुन्तीने धर्मराजके औरससे युधिष्ठिरको उत्पन्न किया था। परन्तु इसका समाचार पा कर पाण्डव सजग हो था। कार्तिक मासकी पूर्णातिथि अर्थात् शुक्लापञ्चमी | गये और विदुरकी सलाहसे नाव पर चढ़ वहांसे भागे। . चन्द्रयुक्त ज्येष्ठा नक्षत्रमें, अभिजित् नामक अष्टम मुहूर्त | एक निषादी जो अपने पांच पुत्रोंके साथ उस रातको . में दो पहरके समय इनका जन्म हुआ था। महाराज | वहीं ठहरी थी, जल कर खाक हो गई। । पाण्डकी ज्येष्ठ महारानी कुन्तीके गर्भसे युधिष्ठिर, भीम ___इसके बाद पाण्डवोंको मरा जान कर दुर्योधनादि और अर्जुन तथा दूसरी स्त्री माद्रीके गर्भसे सहदेव और | फूले न समाये और बड़े चैनसे दिन विताने लगे। उधर । नकुल उत्पन्न हुए। अनन्तर मैथुनधर्म के अनुगामी | पाण्डव माता कुन्तीके साथ ऐक सघन बनमें गये। वहां हो राजा पाण्डु हतचेतन हो गये। पाण्डु देखो। । रहते समय भीमने हिडिम्ब नामक राक्षसको मार कर याधिष्ठिरके जन्मके समय दैववाणी हुई थी कि यह | उसको बहन हिडिम्बाको वाहा था। हिडिम्बाके पाण्डुका प्रधम पुत्र धार्मिकोंमे सर्वश्रेष्ठ, विक्रमी, सत्य गर्भसे घटोत्कच नामक एक बड़ा पराक्रमी पुत्र उत्पन्न वादी, पृथ्वीका चक्रवत्ती, दिलोकविश्रुत, यशस्वी, तेजस्वी हुआ था। और व्रतपरायण तथा युधिष्ठिर नामका होगा ।" अनन्तर 'द्रुपदसुता द्रौपदीके स्वयम्वरमें पांचों भाई दरिद मुनिके शापसे राजा पाण्डुकी मृत्यु हुई। पिताकी ब्राह्मणका वेष बना कर द्रुपदराज्यमें उपस्थित हुए। मृत्यु होने पर पांचो पाण्डुपुत्र हस्तिनापुर आये और अर्जुनने लक्ष्यभेद करके द्रौपदीको पाया और माताकी