पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६८६

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युधिष्ठिर नारदके सामने ही पाण्डवोंने प्रतिज्ञा की, कि पांचों आज्ञाके अनुसार पांचों भाइयोंने द्रौपदीको ववाह लिया।। भाइयोंमेंसे एक जब द्रौपदीके पास रहेगा, तव दूसरा एक भाई दो दिन द्रौपदीसे घरमें रहते थे। परन्तु अज्ञातवास या वनवासके समय द्रौपदीके धरमे कोई कोई वहां नहीं जा सकेगा। जो कोई इस नियमका भङ्ग नहीं रहे। करेगा उसे ब्रह्मचारी रह कर वारह वर्ष तक वनमें रहना धृतराष्ट्र आदि कौरवोंने सुना कि पाण्डवोंका विवाह | पड़ेगा। अकस्मात् एक दिन वहां दुर्घटना हो गई। द्रौपदीके साथ हुआ है। उस समय विदुरने धृतराष्ट्रसे | युधिष्ठिरके घरमें अस्त्रशस्त्र रखे रहते थे। अर्जुन शस्त्र कहा, 'पाण्डव बड़े प्रतापी हैं, श्रीकृष्ण उनके मन्त्री हैं | लेनेके लिये युधिष्ठिरके घरमें सहसा चले गये। वहां और उस पर भी इस समय पाञ्चालराज द्रुपदके साथ | द्रौपदीके साथ युधिष्ठिर बैठे थे। नियमभङ्ग करनेके उनका घनिष्ठ सम्बन्ध हो गया है। यदि इस समय उन- कारण अर्जुनको बारह वर्णके लिये वन जाना पड़ा। युधि- को राज्य नहीं दिया जायगा, तो निःसन्देह युद्ध होगा ठिर अर्जुनको वनमें नहीं जाने देना चाहते थे। उन्होंने और शीघ्र हो कौरववंशका नाश हो जायगा । द्रोण और कहा, पिताके न रहने पर बड़ा भाई छोटे भाईके लिये भीष्मने भी विदुरको वातोंका समर्थन किया था। यद्यपि पिताके तुल्य है। ऐसी स्थितिमें अर्जुनका गृहप्रवेश कर्ण और दुर्योधनने विदुरको वातों पर आपत्ति को किसी प्रकार निन्दित नहीं समझा जा सकता। परन्तु तथापि परिणामदशी धृतराष्ट्रने उन लोगोंकी बातों पर अर्जुन विनीत भावले युधिष्ठिरकी आज्ञा पालनमें ध्यान दे कर विदुरकी सलाह मान लो। धृतराष्ट्रकी। अपनी असमर्थता बतलो कर पाप दूर करनेके लिये जंगल भामासे विदुर रत्न, धन, सम्पत्ति ले कर द्रपद चल दिये। और पाण्डवोंके निकट गये और कुशल प्रश्न पूंछ युधिष्ठिर राजसिंहासन पर बैठ कर प्रजाका पालन कर उन्होंने रत्न, धन आदि उपहार में दिये। विदुर । करने लगे। उनकी तरह कोई भी न्यायपरता और ने द्रुपदसे कहा, 'धृतराष्ट्र और कौरव इस विवाह सुविचारसे राज्यशासन नहीं कर सकने । धर्मके वलसे संवादको सुन कर बड़े प्रसन्न हुए हैं। कौरव प्रजा भी धार्मिक हो गई थी तथा वसुन्धरा धनधान्यसे पाण्डवोको देखनेके लिये अत्यन्त उत्सुक हुए है। उनकी पूर्ण हुई थी। आसपासके राजाओंने जव देखा, कि इच्छा है, कि पाण्डव हस्तिनापुर आर्थे । द्रुपदकी आशा इनसे शत्रुता करना अच्छा नहीं, तब उन्होंने इनले तथा श्रीकृष्णके परामर्शसे द्रौपदी और कुन्तीको साथ ले : मित्रता स्थापन को। धन ऐश्वर्य से पाण्डु राजकोप भर कर पाण्डवगण श्रीकृष्ण और विदुरके साथ हस्तिनापुर- गया था। में उपस्थित हुए। वहां पहुंच कर पाण्डवोंने पितामह धनसे अर्जुनके लौट आने पर युधिष्ठिरने राजसूय भीष्म धृतराष्ट्र आदि वड़ोंको नमस्कार किया। धृत-1 यशका आयोजन किया था। इस यज्ञके करने के पहले राष्ट्रने पाण्डवोंसे कहा, 'तुम लोग आधा राज्य ले कर दिग्विजय करनेकी आवश्यकता होतो थो। दिग्विजयके खाण्डवप्रथमें जा करके रहो। ऐसा होनेसे दुर्योधमके | समय मगधराज जरासंधने पाण्डवोंकी अधीनता स्वीकार साथ पुनः तुम लोगोंका विवाद होनेको सम्भावना न नहीं की। अतएव वह कृष्णको चतुरतासे भीमके हाथों रहेगी। धृतराष्ट्रकी आज्ञा सिर पर रख कर पाण्डव मारे गये। राजसूय देखो। खाण्डवप्रस्थको चल दिये। वहां जा कर पाण्डवोंने __राजसूययज्ञमें युधिष्ठिरका ऐश्वर्य और दवदवा देख इन्द्रप्रस्थ नामक एक सुन्दर नगर वसाया। . . कर दुर्योधनको बड़ी ईपो हुई । वह किस प्रकार पाण्डवों- एक दिन नारद मुनि इन्द्रप्रस्थ आये और उन्होंने | का नाश करेगा, इसके लिये वह शकुनि और कर्णके सुन्द, उपसुन्दकी कथा सुना कर द्रौपदीके लिये भाइयोंमें | साथ विचार करने लगा। अन्तमें जुएमें युधिष्ठिरको परस्पर विरोधी न हो इसलिये एक नियम बना लेनेके | हरा कर उनको अपमान करना, यही निश्चित हुआ। लिये उपदेश दिया। धृतराष्ट्रकी आज्ञा ले कर दुर्योधनने जुआ खेलने के लिये