पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/६९

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मुद्रायन्त्र प्रतिकृतिका उद्धारसाधन होता है, इससे अंगरेजी लषित लिपिका प्रितफलित पाठ उद्धार करनेके लिये जिस भाषामें इसको प्रेस कहते हैं। इस युगमें विद्योन्नतिके प्रथाका आविष्कार हुआ है, वही यथार्थ मुद्राङ्कण शिल्प साथ साथ प्राचीनतम प्रन्थादि संग्रहके लिये और | ( Art of printing) पदवाच्य है। जहां मु द्रण कार्यके प्रचारोत्कर्ष उपलब्ध कर वैज्ञानिक लिपिमालाको प्रति- उपयोगी यन्त्र आदि रखे हुए हैं, और ढलाई अक्षरसे कृति संगठनके लिये यत्नवान् हुए। लिखी भाषाको प्रतिलिपि संगृहीत होती है, उसो यन्त्रा- ___ पहले हस्तलिखित पोथीके साहाय्यके सिवा गारको मुद्रायन्त्र ( Printing press ) वा छापाखाना विद्यालाभ अथवा अन्यान्य ग्रन्थोंके पढ़नेकी सुविधा न थी। कहा जाता है। विद्याका गौरव-प्रभाव और आदर वढनेके साथ साथ | | पहले लकड़ी या पत्थर पर ऊपर या नोचे अक्षरों को साधारणको हस्त लिखित पुस्तकों के संग्रहका अभाव | खोद कर ( Deep cut ) दवाव दे कर उसकी अनुभूत हुआ था। एक ग्रन्थ लिखनेका अभ्यास करने नकल उतारी जाती थी। और तो क्या-देवता और में जो समय लगता था, लिखित पोथियों के पढ़ने में उस दिखावटी चोजोंका चित्र ( Wood block ) लकड़ी पर से बहुत कम समय व्यय करना पड़ता था। सुनते हैं, खोद कर कागज पर उसकी नकल उतार ली जाती थी। कि भारतवर्षके नालन्दाके विद्यामन्दिरमें लिपिग्रथित पूर्वोक्त खोदित चित्र (Xylography या Wood engra- पुस्तकोंके अधिक प्रचार करनेके लिये वौधयतियोंने | ving ) अथवा पत्थर पर अङ्कित अक्षरोंको नकलको मठोंमें एक बहुत बड़ी दवात तय्यार की थी। उसके चारों | (Lithography) मुख्यतः दवाव डाल कर कागजमै उतार ओर 'साइफेन' आकारके एक हजार छिद्र थे। ऊपरस लिया जाता था। यह आज कलके ढलाई अक्षरों के काली या स्याही ढाल कर एक आदमो भारी स्वरसे | इच्छित मिन्याससे बिलकुल खतन्त्र है। अतएव मुद्रा- पोथी पढ़ता ओर दवातके सहस्र छिद्रके मुंह पर सहस्र | यन्त्र या मुद्रणशिल्प (Typography ) कहनेसे ही छात्र वैठ कर एक ही समय अन्य सदा संगृहीत करते थे। साधारणतः अक्षरमालाका समावेश Writing by types लिपि देखो। समझना होगा। विद्योत्साहो समयको महाघेताका अनुभव कर या यद्यपि लकड़ी पर बने चित्रों और प्रस्तर प्रतिलिपि. समयको मूल्यवान् समझ पोथियों को हाथसे लिखने में | मुद्रण, उद्भावित आक्षरिक अन्धन लिपिकी नकलसे समयका अधिक लगना देख एक ही साथ कई पोथियोंके | पूर्णतया पृथक है फिर भी यह स्वीकार करना होगा, तय्यार करनेके उपायमें लगे। क्रमशः उनका यत्न कि अनुसन्धानपरायण उद्यमशील ग्रन्थ प्राप्सु विद्यो. और अध्यवसाय सफल हुआ। लकड़ी और जलो हुई त्साहियोंके आग्रहके विकाशमें क्रमशः चित्रविद्याके मट्टीके फलकमें पोथियों की भाषाओं के अक्षरोंको एकत्र | साहाय्यसे बहुग्रन्थकी लाभाकांक्षासे ही वर्णाक्षरोंके कर उन पर स्याहीका प्रयोग कर आवश्यकताके अनु- समावेश द्वारा पुस्तकादि संग्रहको व्यवस्था की गई। सार कागज या भोजपत्र पर पोथीको नकल उतार लेने फिर इससे ही विद्योन्नतिके साहचर्यार्थ पोथी आदिको की व्यवस्था हुई। इसमें भो भ्रम संशोधनकी असुविधा पुस्तकके आकारमें छाप कर लोगोंके सहजलभ्य करनेके होते देख परवत्तीं उन्नत चेता विद्वानमण्डली उक्त प्रथा अभिप्रायसे इस समय छापखानेके प्रयोजन समझ कर को उत्कर्ष सम्पादनमे यत्नवान हुई। इसी तरह क्रम | उसके उपादानोंका संगठन हुआ है। चीजोंका चित्र ( Figures ) दृश्य या जीवादिकी विकाशकी धाराके अनुसार क्रमसे मिट्टी, तांबे, लोहा, पोतल और सीसेके अक्षर ढाल कर या छेनीसे काट कर | नकल (Picture), वर्णमाला (Letters), शब्द (W ords) । श्रेणीवद्ध, अर्थद्योतक शब्दपरम्परा अथवा भाषा और लिपि अन्धके नैपुण्यकी पराकाष्ठा साधित हुई है। इस समय धातुसे ढाले अक्षरों को (Cast metal) | भावज्ञापक सम्पूर्ण एक पृष्ठ ( Page ) किसी विशिष्ट movable types) एकत्र जोड़ कर कागज पर अभि- | आकारमें और विभिन्न रङ्गोंमें दवाव डाल कर किसी