पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/७०५

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७०२ यूसुफ अबुल हाजी-यूसुफजै यूसुफ अबुल हाजी-स्पेन देशके अन्तर्गत प्रानाडाराज्य- ) श्य मुरादके पुत्र थे। राजरक्षो सेनादलमें नियुक्त के मुर राजा। ये १३३३ ई में राजसिंहासन पर बैठे थे। करनेके लिये एक वणिक से खरीद कर वे अमदावाद इनके द्वारा गलहम्बाके विख्यात कारुकार्यसे पूर्ण प्रासाद- लाये गये थे। आदिलशाही वंश देखो। का निर्माणकार्य समाप्त हुआ। १३४८ ई० में इन्होंने वहां- | यूसुफ खाँ ( मोर्जा)-एक मुगल सेनापति। वे अकबर के दुर्गका विचार नामक प्रवेश-द्वार निर्माण कराया था, | शाहके अधीन ढाई हजारी मनसवदार थे। पीछे उक्त जिसका शिल्पनैपुण्य देखनेसे चमत्कृत होना पड़ता है। सम्राटके राजत्वके ३० वर्षमें काश्मीरके शासनका १३५४ ई०में अलहाबाकी मसजिदमें गुप्त शत्रुसे मारे | नियुक्त हुए । दाक्षिणात्यमें अबुल फजलके अधोन गये। उन्होंने बड़ी वीरता दिखाई थी। १०१० हिजरोमें उनकी यूसुफ अली खां-रामपुरके एक नवाव । १८५७ ई०के | मृत्यु हुई । ये सैयदवंशीय और मसदवासी थे। गदर में इन्होंने अंगरेजोंको खासी मदद पहुंचाई थी जिस- यूसुफ खाँ-सिन्धुप्रदेशमें एक मुसलमान शासनकर्ता । के पुरस्कारस्वरूप लार्ड फैनिंगने इन्हें वार्षिक लाख रुपये | वे सम्राट शाहजहानके समय विद्यमान थे। उनका आमदनीकी एक भूसम्पत्ति और महारानी भारतेश्वरी | बनाया उट्टका इदगा शिल्यनैपुण्यका परिचय देता है। विकोरियाने 'स्टार आव इंडिया' की उपाधि दी थी। उसके शिलाफलकसे मालूम होता है, कि १६३३ ई० में यूसुफ आदिल शाह-बीजापुरके आदिलशाही वंशके | उसका गठन-कार्य समाप्त हुआ था। प्रतिष्ठाता । इनका आदि नाम यूसुफ आदिल था। ये यूसुफजै-उत्तर-पश्चिम-भारत सीमान्तवासी अफगान दाक्षिणात्यके वामनी राजवंशधर सुलतान २य महम्मद | जाति। ये लोग स्वाधीन हैं। कुछ अङ्ग्रेजीराज्यमें शाहके एक सभासद थे। उक्त सुलतानके मरने पर और कुछ अन्रेजो सीमाके बाहर रहते हैं । हजारनो सुलतान श्य महमूद राजा हुए। जव यूसुफ आदिलने और महावन पर्वत श्रेणीके उत्तर स्वाधीन खात और देखा, कि उनकी मन्त्रिमण्डली उन्हें ध्वंस करनेके लिये बुनेर जिलेमें तथा उक्त दोनों पर्वतके दक्षिण स्वात और षड़यन्त्र कर रही तब वे अमदावाद छोड़ कर अपनी | सिन्धु नदीके मध्यवर्ती समतल भूभागमें इनका वास राजधानी बीजापुर चले गये। पहले होसे वे वीजापुरके | | है। ये लोग जिस विस्तीर्ण भूभागको अधिकार किये शासनकर्ता थे। हुए हैं उसके उत्तर चित्रल और यसीन, पश्चिम वजावर यूसुफ जब अह्मदनगर छोड़ कर आ रहे थे उस | और खातनदी, दक्षिण काबुल नदी और पूर्नमें सिन्धु- समय बाह्मणोराजके वैदेशिक सेनापति और प्रधान | नद है। प्रधान कर्मचारियोंने उनका अनुगमन किया था। इस हजारनो और महावन पर्वतके दक्षिण जो सब तरह अपने दलके साथ लौटकर उन्होंने वहां एक स्वतन्त्र यूसुफजै रहते हैं वे अगरेजराजके सनाधीन हैं। वहां राज्य स्थापन करना चाहा। उन्होंने आस पासके | प्राचीन पुष्कलावती प्रदेश विद्यमान था, ऐसो प्रत्नतत्त्व- सभी स्थानोंको युद्धमें जीत कर अपने राज्यकी सीमा | विदोंकी धारण है । युसुफजै जातिकी सारी वासभूमि .प्राथीन गान्धार राज्यके अन्तर्भुत देखी जाती है। . इस प्रकार जब वे अर्थबल और सैन्यबलसे राज- यूसुफजैने गजनी और कन्धारके मध्यवर्ती अपना शक्तिसम्पन्न हो गये, तब उन्होंने १४८६ ई०में मालिक | प्राचीन वासभूमिका परित्याग कर काबुलमें बसनेको अह्मद वहरीके अनुमोदनसे शाहको उपाधि प्रहण कर चेष्टा को। इसी उद्देश्यसे इन्होंने मिर्जा उलघवेग काबुलो- अपनेको राजा कह कर घोषणा कर दिया। दोर्दण्ड के शासनकालमें कई बार काबुल पर आक्रमण कर दिया .. प्रतापसे २१ वर्ण राज्य कर १५१० ई०में वीजापुर नगरमें था। किन्तु कृतकार्य न होनेसे वे उसको छोड़ कर उनका देहान्त हुआ। खात और वजावर प्रदेश चले आये। उस समय यहां सबोंकी धारण है, कि ये यूसुफ अनाटोलियावासी । सुलतानी वंशके राजे राज्य करते थे। सुलतानीगण बढ़ाई।