पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/७०९

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७०६ येल्लम्प-योग छीन लिया। पहां काफी धान आदिकी खेती होती है।। योक्त्रक (सं० क्ली० ) योक्त्र, जोती। स्थानीय मलम्वी-पर्वत ४४८८ फुट ऊंचा है। | योग (सं० पु० ) युज समाधौ भावादौ यथायथं घम् । १ येल्लम्म-बम्बई प्रदेशके वेलगांव जिलान्तर्गत एक गण्ड- संयोग, मेल । २ उपाय, तरकोव । ३ वर्मपरिधान, कवच शैल । यहां सरखती नदीके गर्भ में वेलगांव दुर्गके पहनना । ४ ध्यान। ५ सङ्गति । ६ युक्ति । ७ प्रेम। . समीप एक प्राचीन जैन-मन्दिर है। यहां १४३६ शकमें | ८ छल, धोखा। औषध, दवा । १० धन, दौलत। उत्कीर्ण एक शिलाफलक मिलता है । १५०८-१५२६ ११ नैयायिक। १२ लाभ, फायदा । १३ वह जो किसी- 'ई०के बीच श्रीकृष्णने यहां महामायाका मन्दिर बनाया। के साथ विश्वासघात करे, दगाबाज । १४ कोई शुभ पास हीमें गणपतिका मन्दिर विराजित है। हर साल काल, अच्छा समय या अवसर। १५ चर. दूत। १६ अगहन और चैतकी पूर्णिमाम यहां देवीके उद्देशसे दो छकड़ा, बैलगाड़ी। १७ नाम। १८ कौशल, चतुराई । मेले लगते हैं। १६ नाव आदि सवारो। २० परिणाम, नतीजा। २१ येल्लमल्ल-मद्रास प्रदेशके अन्तर्गत एक गिरिश्रेणी। यह निगम, कायदा। २२ उपयुक्तता। २३ साम, दाम, कर्नूल और कड़ापा जिले तक विस्तृत है। यह अक्षा० दण्ड और भेद ये चारों उपाय। २४ वह उपाय जिसके १४३१ से ले कर १४ ५७ ४०" उ० तथा देशा० द्वारा किसोको अपने वशमें किया जाय, वशीकरण । २५ ७८ १० से ले कर ७८ ३२ ३० पू०के बीच अवस्थित सून । २६ सम्वन्ध । २७ सद्भाव । २८ धन और सम्पत्ति है। समन पर्वत जंगलोंसे घिरा है। उन जंगलों में केंच प्राप्त करना तथा वढ़ाना। २६ मेलमिलाप। ३० तप वार और कोवारा नामकी पहाड़ी असभ्य जारी रहतीऔर ध्यान, वैराग्य । ३१ गणितमें दो या अधिक राशियों- का जोड। ३२. एक प्रकारका छन्द । इसके प्रत्येक येल्लापुर-१ बम्बई प्रदेशके उत्तर-कनाड़ा जिलान्तर्गत एक | चरणमें १२, ८के विश्रामसे २० मात्राए और अन्तमें उपविभाग। भगण होता है। ३३ सुभीता, जुगाढ़। ३४ वह उपाय २ उक्त उपविभागका प्रधान नगर और विचार- जिसके द्वारा जीवात्मा जा कर परमात्मामें मिल जाता सदर। यह अक्षा० १५५८० उ० तथा देशा ६४ ४५ है, मुक्ति या मोक्षका उपाय ।। पू०के बीच पड़ता है। ___"संयोग योगमित्याहुर्जीवात्म परमात्मनोः।" येल्लूरगढ़-बम्बई प्रदेशसे साढ़े तीन कोस दक्षिण- | ३५ सभी शब्दोंका अवयवाथै सम्बन्ध । ' ३६ कर्म- पश्चिममें अवस्थित एक प्राचीन दुर्ग। अभी यह टूटे फूट | विषयमें कौशल ! • 'योगः कर्मसु कौशल' एकमात्र कर्म 'खंडहरों में पड़ा है । यह गिरिदुर्ग समुद्रपृष्टस प्रायः ३३६५ ही बंधनका कारण है, कमैवशसे हो जोव सुख-दुःख. "फुट ऊंचा है। भोगादि नाना प्रकारके वन्धनको प्राप्त होते हैं। किन्तु येबाष (सं० पु०) यवाप, जवासा नामक कांटेदार क्षुप।। जो कम संसारका बन्धनहेतु नहीं होता फिर भी वह येष्ठ ( सं०नि०) अतिशय गमनकारी, खूब जानेवाला। मोक्षका कारण होता है, वैसा ही कर्मयोग है। 'योगः यों ( हि अव्य० ) इस तरह पर, इस प्रकारसे। कर्मसु कौशल' कर्ममें जो कुशलता है अर्थात् जिस कर्मसे योही ( हिं० अव्य०) १ इसी प्रकारसे, ऐसे ही। २ विना संसार-बन्धन नहीं होता, वही योग है। 'काम, ध्यर्थ ही । ३ बिना विशेष प्रयोजन या उद्देश्यके, ३७ फलित जयोतिषमें कुछ विशिष्ट काल या अवसर केवल मनको प्रवृत्तिसे। जो सूर्य और चन्द्रमाके कुछ विशिष्ट स्थानों में आनेके योक्तृ (सं० त्रि०) युज-तृण। योगकर्ता। कारण होते हैं और जिनकी संख्या २७ है। इसके नाम योक्न (सं० लो०) युज्यतेऽनेनेति थुज ( दान्नीसशयुयुजस्तुतु- 1 इस प्रकार हैं,-१ विष्कम्भ, २ प्रीति, ३ आयुष्मान, ४ देति । पा ३।२।१८२ ) इति ष्टुन् । हलवन्धनरज्जू, जोतो। सौभाग्य, ५ शोभन, ६ अतिगण्ड, ७ सुकर्मा, ८ धृति, पर्याय-आवन्ध, योन। . . ६ शूल, १० गएड, ११ वृद्धि, १२ ध्रुव, १३ व्याघात, १४