पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/७२६

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रक्षा · योगहिगन्- योगराजगुग्गुलु योगमहिमन् (सं० पु०) योगस्य महिमा । योगको । मिर्च, दारुचीनो, वेणाकी जड़, यवक्षार, तालीशपत्र और समता, योगका प्रभाव। तेजपन, इन सबको वरावर वरावर ले कर अच्छी तरहसे कर-पीस कर चर्ण बनाना चाहिए : फिर उसमें समान योगमातृ (सं० स्त्रो०) १ दुर्गा।२ पीवरी। योगमाया (सं० स्त्री०) योग एवं माया। १ भगवती, तौलसे गुग्गुल मिलाना चाहिए। इसके बाद उसे घोले विष्णुमाया । (भागवत १०१३ म०)२ वह कन्या जो अच्छी तरह घोंट कर स्निग्ध पात्रमें रख देना चाहिए। यशोदाके गर्भसे उत्पन्न हुई थी और जिसे कंसने मार इस औषधका उपयुक्त मात्रा सेवन करके फिर यथेच्छ डाला था। कहते हैं, कि यह वयं भगवती थी। ' आहार करना चाहिये । इस औपटके सेवन करते समय योगमालो-सह्याद्वि-वर्णित एक रोजा। भोजनका कोई नियम पालन नहीं करना पड़ता। इससे ( सह्या० २१५१) मन्दाग्नि, आमवात, कृमि, दुटवण, प्लीहा, गुल्म, उदर, योगमूर्तिधर (सं. पु० ) १ शिव, महादेव । २ पितृगण-! आनाह, अश, सन्धि और मनायत वातरोग नष्ट हो जाता है तथा अग्नि-दीप्ति, तेज और बलकी वृद्धि होती योगयाना (सं० स्त्री०) फलित ज्योतिषके अनुसार वह योग' है। (भावप्र० मामवात० ) जो यात्राके लिये उपयुक्त हो। इसके सिवा वातव्याधि-रोगाधिकारमें महायोगराज- योगयुक्त (स० वि० ) योगेन युक्तः। योगो, योगसे, गुग्गुलुका भी उल्लेख पाया जाता है। उसके बनानेको विधि इस प्रकार है- योगयोगिन् (सं० वि०) योगनिमजित, वह योगी जो महायोगराजगुग्गुलु-सोंठ, पिप्पलीमूल, चई, गोल- योगासन पर बैठा हो। | मिच, चीता, भुनी हुई हींग, अजवायन, सरसों, जीरा, योगरङ्ग (सं० ० ) योगेन रङ्गो रागो यस्य। नारङ्ग काला जीरा, रेणुका, इन्द्रयव, आकनादि, विड़ङ्गा गज- नारंगी। पिप्पली, कुटकी, आतइच, वच, सूचीमुखी, तेजपत्र, देव- योगरत्न (सं० क्ली० ) वह रत्न जो जादूगरीसे तैयार | दारु, पिप्पली, कुड़, रास्ना, मुस्तक, सैन्धव, इलायची, किया गया हो। गोखरू, हरं, धनिया, बहेड़ा, आँवला, दारुचीनो, वेणाकी योगरत्नाकर (सं० पु०)चिकित्सा ग्रन्थविशेष। जह और यवक्षार इन सवको समान भागसे मिला कर योगरथ (सं० पु०) योग श्व रथः वा योगस्य रथः। चूर्ण बना लो; फिर सबके वरावर गुग्गुल मिला कर घो- योगप्राप्ति साधन, वह साधन जिससे योगकी प्राप्ति हो। से घोंट लेना चाहिए। तैयार हो जाने पर घीके भाँडमें योगरहस्य (सं० क्ली०) योगस्य रहस्यं । योगका रहस्य या रन दो। पहले आधा तोला सेवन करना चाहिए। फिर गुह्य विषय। धोरे धीरे मात्रा बढ़ाते हुए दो तोला तक कर देना योगराज (सं० पु०) १ मंखके समसामयिक एक न्याया चाहिए। यह परम रसायन है। इसके सेवन करनेसे चार्य । २ निस्कन्धभूषण और योगरलावली नामक ) स्त्रीप्रसङ्ग, आहार और पान यथेच्छरूपसे किया जा ज्योतिप्रन्थके प्रणेता। ३ स्तुतिकुसुमाञ्जलि प्रन्थमें सकता है। इसके लिये कोई बन्धन नहीं है। रत्नकण्ठ द्वारा उल्लिखित एक कवि । इस औषधके सेवनसे अर्श, ग्रहणी, गुल्म, प्लीहा, योगराजगुग्गुलु (सं० पु०) योगराजाख्यः गुग्गुलुः । उरु- | उदर, आनाह, मन्दाग्नि, श्वास, कास, अरुचि, मेह, नाभि- स्तम्भ और वातरफ्तरोगाधिकारमें कही हुई एक औपध।। शूल, कृमि, क्षय, सर्वप्रकार वातरोग, कुछ, दुएवण, शुक्र- इसकी प्रस्तुत प्रणाली इस प्रकार है- दोष और रजोदोष आदि शीघ्र ही नष्ट हो जाते हैं। यह चीता, पीपलमूल, अजवायन, काला जीरा, विडङ्ग, अनुपानके अनुसार भिन्न-भिन्न रोगों में शोघ्र फलप्रद् जीरा, देवदारु, चई, इलायची, सैन्धव, कुड़, रामा, गोखरू होता है। इस औषधको रानादि क्वाथमें मिला कर धनिया, हर, बहेड़ा, आंवला, मूथा, सोंठ, पीपल, कालो-1 सेवन करनेसे सर्वप्रकार वातरोग, काकोल्यादि गणके