पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/७३३

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७३० योगाचार-योगारुढ आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और | योगान्तरीय' ( सं० क्ली०) योगमें विघ्न डालनेवाली समाधि। विशेष विवरण योग शब्दमें देखो। आलस्य आदि दस बातें. लिङ्गपुराणके वें अध्यायमें योगाचार (संपु०) १ योगका आवरण। २ बौद्धोंका | यह विस्तारपूर्वक लिखा है। 'एक सम्प्रदाय। सर्वदर्शनसंग्रहमें चार श्रेणीके वौद्धोंका | योगान्ता (स० पु०) मूला, पूर्वाषाढ़ा और उत्तराषाढ़ा उल्लेख देखने में आता है। यथा,--माध्यमिक, योगाचार, | नक्षत्रोंसे होती हुई धुधकी गति जो आठ दिन तक रहती श्रौत्रान्तिक और वैभाषिक । योगाचारके मतसे वाह्यवस्तु | है। कुछ नहीं है केवल क्षणिक विज्ञानरूप आत्मा ही सत्य योगापत्ति (सं० पु० ) वह संस्कार जो प्रचलित प्रथाओं है । यह क्षणिक विज्ञान फिर दो प्रकारका है प्रकृतिविज्ञान | अथवा आचार व्यवहार आदिके कारण उत्पन्न हो। और आलयविज्ञान । जाग्रत और सुषुप्ति अवस्थामें जो ज्ञान (आश्व० श्री० १२११) उत्पन्न होता है उसका नाम प्रकृतिविज्ञान और सुषुप्ति | योगाभ्यास (स० पु०) योगशास्त्र के अनुसार योगके अवस्थामें जो ज्ञान उत्पन्न होता है उसका नाम आलय- | आठ अंगोंका अनुष्ठान, योगका साधन । विज्ञान है । सिर्फ आत्माको ही अवलम्बन कर यह ज्ञान | योगाभ्यासो ( स० पु० ) योगको साधना करनेवाला, रहता है। (सर्वदर्शनस० ) २ वौद्ध पण्डित विशेष। । योगी। योगाचार्य (स० पु० ) १ योगोपदेष्टा । २ इन्द्रजाल- योगाम्वर ( स० पु० । बौद्धोंके एक देवताका नाम । शिक्षक। योगारङ्ग ( स० पु०) योगेन ऋतुयोगेन आरङ्गः । नारङ्ग, योगाङ्गन ( स० क्लो०) १ आंखोंका एक प्रकारका अंजन | या प्रलेप जिसके लगानेसे आंखोंका रोग दूर होता है। योगाराधन ( स० पु० ) योगका अभ्यास करना, योग- वह अजन जिसके लगानेसे पृथ्वीके अन्दरकी छिपी हुई | साधन । वस्तुएं भी दिखाई पडे, सिद्धाञ्जन । योगारूढ़ (सं० त्रि०) योगं विषयनिवृत्तियमादिकं वा योगात्मन् (सं० त्रि०) योगः आत्मा स्वरूपः यस्य । मारूढ़ः । इन्द्रिय-भोग्य शब्दादि और उसके साधन कर्म- योगी। अनासक्त । (गीता० ६।३.४) योगाधमन ( स० क्लो०) योगेन आधमनं । छल द्वारा ___ जो मुनि योगोरूढ़ होना चाहते हैं, योग-साधनके बन्धक। लिये कर्म ही उनका कारण स्वरूप है और जो योगारूढ़ "योगाधमनविक्रीतं योगदानप्रतिग्रहं । हुए हैं, उनके लिये कर्मसंन्यास ही परम साधन है। यत्र पाप्युपधिं पश्येत् तत्सर्व विनिवर्तयेत् ॥" ( मनु०)। अन्तःकरणको शुद्धि-जनित तीव्र वैराग्यका नाम योग योगानन्द (सं० पु०) योगे आनन्दा यस्य । योगा | है। जो ऐसे योगमे आरूढ़ होना चाहते हैं, वे आरु- वलम्वनमें जिसे आनन्द हो। रुक्षु कहलाते हैं। वेद-विहित कर्मका अनुष्ठान करनेसे योगानन्द-१ सांख्यकारिका ध्याख्या और सांख्यसूत्र | चित्तशुद्धि होने पर योगारूढ़ हुआ जाता है। योगारूढ़ विवरणके प्रणेता । २ क्रीडावलीकाव्यके रचयिता। हो कर ज्ञाननिष्ठामें परिपक्क होने पर उसे फिर कम नहीं 'इसके पिताके नाम कालिदास था। - करना पड़ता, किन्तु जिनके वैराग्यका उदय नहीं होता, योगानुयोग (स'०.क्लो० ) योग और अनुयोग। उन्हें यावजीवन हो कर्मानुष्ठान करना पड़ता है। योगानुशासन (संपली०) अनुशिष्यतेऽनेन अनुशासन जब मानव शब्दादिके विषयमें अनासक्त, कर्मानुष्ठान- योगस्य अनुशासनं । योगशास्त्र से सम्पूर्ण विनिवृत और सर्व प्रकार संकल्पों- योगान्त ( स० पु०) मंगल ग्रहकी कक्षाके सातवें भाग-| से वजित होते हैं, तभी. उन्हें योगारूढ़ कहा का एक अंश। जाता है। जब मानवके साधन गुणसे जगत् योगान्तर ( स० क्ली० ) भिन्न भिन्न बस्तुका संयोग।। मिथ्याज्ञान होनेका मनोवेग इन्द्रियविषयोंकी ओर