पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/७३६

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योगासन ७३३ . चित्तका विश्राम होता है। इसलिये इसका नाम मृता- । कर मुक्तपद्मासनकी तरह दोनों पद अध्वमें उत्तोलित कर शून्यमें दण्डकी भांति समान भावमें खड़ा होगा। ___१२ गुप्तासन दोनों रानोंके बीच दोनों पैर छिपा इसको मयूरासन कहते हैं। रखे तथा दोनों पैरोंके ऊपर गुदा रखे। इसका नाम २० कुक्कुटासन-किसी मंचके ऊपर मुक्तपद्मासन गुप्तासन है। कर दोनों जांघों और ऊरुओंके वीच दोनों हाथ रख १३ मत्स्यासन-मुक्त पद्मासन करके दो कपर फर दो कूर्पर द्वारा वैठे। इसका नाम कुक्क टासन है। ( कणुई ) द्वारा मस्तक उठा कर वित हो साये। इसको २१ कूर्मासन-अण्डकोषके नीचे दो गुलफ परस्पर मत्स्यासन कहते हैं। विपरीतकमसे रख कर ग्रीवा, मस्तक और शरीरं सीधा १४ गोरक्षासन-दोनों रानों और ऊरुके बीच दोनों | कर बैठे। इसको कूर्मासन कहते हैं। पैर उत्तान अर्थात् चित कर अप्रकाशितरूपसे संस्थापन २३ उत्तानकूर्मासन-कुक्कुटासन हो कर दोनों हाथों पूर्वक दोनों हाथ चित कर दोनों गुल्फ आच्छादित करे द्वारा कंधा पकड़ कूर्मकी तरह उत्तान होनेको उत्तान- तथा कंठ सिकुड़ा कर नासाका अग्रभाग अवलोकन करे । कूर्मासन रहते हैं। इस प्रकार यह आसन होता है। ___२३ मण्डूकासन-दोनों पैर पोट पर पकड़ इन दो १५ मत्स्येन्द्रासन-उदरको पीठको भांति सीधा | चरणोंको वृद्धांगुलियां परस्पर संस्पृष्ट करे और दोनों कर रहे तथा वायां पांच नवा कर दाहिनी जांधके ऊपर रानोंको सामने रखे। इसको मण्डूकासन कहते हैं। रख कर उसके ऊपर दाहिनी कणुई और दाहिने हाथका २४ उत्तानमण्डूकासन-मण्डूकासन पर बैठ करके मुखविन्यास कर दोनों भौंहोंका मध्यभाग देखे। इसको दोनों कूपरों द्वारा मस्तक पकड़े और मेढ़ककी तरह मत्स्येन्द्रासन कहते हैं। उत्तान हो कर अविस्थत रहनेको उत्तान-मण्डूकासन १६ पश्चिमोत्तानासन-भूमि पर दोनों पैर दण्डवत् । कहते हैं। बराबर कर फैलावे और दोनों हाथों द्वारा यत्नपूर्वक! २५ वृक्षासन-चाई जांघ पर दाहिना पांव रखे इस दोनों पैरोंको पकड़ कर दोनों रानोंके बीच मस्तक | आर पृथ्वी पर वृक्षको तरह सोधा खड़ा रहे। इसका रखना होगा। इस प्रकार पश्विमोत्तानासन होता है। | नाम वृक्षासन है। ___उपासन-दोनों पैरोंको असंलग्नरूपसे फैला कर २६ गरुड़ासन-दोनों बंधा और अरु द्वारा भूमि दोनों हाथोंसे मजबूतीसे पकड़े और दोनों जंघोंके ऊपर पीड़ित और दोनों जानु द्वारा स्थिरशरोर होगा। पीछे मस्तक रखे। इसका नाम उपासन है। कोई कोई दोनों जांधोके ऊपर दोनों हाथ रखे। इसको गरुड़ासन इसको भी पश्चिमोत्तानासन कहते हैं। इस आसन कहते हैं। के साधनमें योगाभ्यास करनेसे शीघ्र योग सिद्ध २७ वृषासन-दाहिने गुल्फके ऊपर पायूमूल अर्थात् होता है। गुदा संस्थापन करके उसके वायें' भागमें वायां १७ उत्कटासन-दोनों पैरोंको वृद्ध अंगुलीसे भूमि पांव उल्टा कर रख भूमि स्पर्श करे। . इसका नाम वृषा- छू कर दो गुल्फ छू नेके सिवा शून्यमें रख इन दो। सन है। गुल्फोंके ऊपर गुदा रखे। इसको उत्कटासन कहते हैं। २८ शलभासन-औंधे मुख सो दोनों हाथ छाती १८ सङ्कटासन-वायां पैर और वाई जांघ भूमि पर पर रखे और दोनों करतलों द्वारा भूमि अवलम्वन करे. रख कर वायर्या पैर दाहिने पैरसे वेएनपूर्वक दोनों जांघोंमें | और दोनों चरण शून्यमें अर्द्धहस्तप्रमाण ऊर्ध्वमें रखे। दोनों हाथ रखे। इसका नाम सङ्कटासन है। . • १६ मयूरासन-दोनों करतलसे पृथ्वी अवलम्वन कर इसको शलभासन कहते हैं। दोनों कूप के ऊपर नाभिका दोनों पार्श्वभाग स्थापन | रख कर हाथ फैलावे और दोनों हाथोंसे मस्तक पकड़े।। २६ मकरासन-औंधे मुख सो कर भूमि , पर छाती । Vol. xvill. 184