पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/७३७

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

७३४ योगित-योगिन् इसको मकरासन कहते है। इस आसनको अभ्यास , समाधौ युजिर योगे या (संपृचानुरुधेति । पा ३२२२१४२) करनेने देहको अम्लिवृद्धि होती है। . । इति धिनुण । १ योगयुक्त, योगावलम्वो। ___३० उष्ट्रासन-अधोमुख शयन कर दोनों पद उल्टा। "स्व लोष्ट्र गृहेऽरपये सुस्निग्धचन्दने तथा।. करके पीठ पर आनयनपूर्वक दोनों हाथोंसे पकड़े तथा । समता भावना यस्य स योगी परिकीर्तितः॥" उदर और मुख आकुञ्चिन करे। इसोका नाम उष्ट्रा- ' (ब्रह्मवै० गणपति० ३५ अ०) सन है। । स्वर्ण वा लोट, गृह वा अरण्य अथवा सुस्निग्ध- ३१ भुजङ्गासन-पैरकी अंगुष्ठ अंशुली अवधि नाभि नन्दनमें जिसको समान भावना हो अर्थात् जो भले- पर्यन्त समस्त अधोभाग भूमि पर विन्यस्त कर दोनों बुरे और सुख-दुःख आदि सवको समान समझते हैं हथेलियोंसे भूमि छूवे और सांपकी तरह ऊर्ध्वमें मस्तक उन्हींको योगी कहते हैं। गीतामें कहा है,- उठावे। इसका नाम भुजङ्गासन है। इस आसनका "आत्मोपस्येन सर्वत्र समं पश्यति योऽर्जुन। अभ्यास करनेसे देहको अग्नि बढ़ती तथा सब प्रकारका सुखं वा यदि दुःखं वा स योगी परमो मतः॥" रोग विदूरित होता और कुण्डलिनी शक्ति जागरित (गीता ७०) होती है। हे अर्जुन ! जो अपने समान सवोंको देखते हैं एवं ___३२ योगासन-दोनों पांव चित करके ठेहुनेके ऊपर जिनके सुख या दुःख दोनों ही समान हैं वही योगी हैं। रख दोनों हाथ चित कर इस आसन पर रखे तथा पूरक और भी जो योगावलम्बन करते हैं उन्हीं को योगी कहते द्वारा वायु आकर्षण कर कुम्भक द्वारा नासाका अग्रभाग हैं। विशेष विवरण योग शब्दमें देखो। देखे। इसका नाम योगासन है। यह योगासन योग- २शिव, महादेव । ३ योगसिद्ध व्यक्ति, वह व्यक्ति साधनके लिये बड़ा प्रशस्त है। (घेरण्डसंहिता) जिसने योगाभ्यास करके सिद्धि प्राप्त कर लो हो। स्वयं ___ यह नो योगसाधन आसनका विषय लिखा गया भगवान्ने योगिसम्बन्धमें गीतामें कहा है, कि तपस्वीकी वह सभी आसन ही गुरुगम्य । उपयुक्त सद्गुरुके उप | अपेक्षा, यहां तक, कि सभी कर्मियोंकी अपेक्षा योगी श्रेष्ठ देशानुसार सभी आसन अभ्यास करना उचित है। हैं। योगी देखो। नहीं तो पद पदमें विघ्न होनेकी सम्भावना है। योगदर्शनमें अवस्थाके भेदसे योगो चार प्रकारके योग शब्द देखो।। कहे गये हैं,-(१) प्रथमकल्पिक जिन्होंने अभी केवल योगित (सं०नि०) १ योगयुक्त, योगी । २ मन्त्रमुग्ध, | योगाभ्यासका आरम्भ किया हो और जिनका ज्ञान अभी जिस पर इन्द्रजाल या मन्त्र यादिका प्रयोग किया गया | तक दृढ़ न हुआ हो; (२) मधुभूमिक-जो भूतो और हो। ३जो इन्द्रजाल या मन्त्र आदिकी सहायतासे | इन्द्रियो पर विजय प्राप्त करना चाहते हों , (३) प्रज्ञा- अपने अधीन कर लिया गया हो अथवा पागल बना दिया | ज्योति-जिन्होंने इन्द्रियोंको भली भांति अपने वशमें गया हो । कर लिया हो और (8) अतिक्रान्तभावनीय--जिन्होंने योगिता (स० स्त्री०) १ योगीका भाव या धर्म । यागिन् | सब सिद्धियां प्राप्त कर ली हो और जिनका केवल चित्त देखे।। २ अन्य विषयके साथ संयोगसूत्र में आवद्ध | लय वाकी रह गई हो। या सम्बन्धयुक्त। ___ योगके आरम्भसे ले कर कैवल्य पर्यन्त चार अव- योगित्व ( स० पु०) १ योगीका भाव या धर्म । २ योगो. स्थाओंको प्रथमावस्थामे अर्थात् प्रथमकल्पिक योगोके लिये देवगणके साक्षात्कारको सम्भावना नहीं है। भावापन्नत्व। योगिदण्ड ( स० पु०) योगिनां दण्डः अवलम्बनयष्टिः। तृतीय और चतुर्थ अवस्थामै योगिगण देवगणकी चेन, बेंत। अपेक्षा उन्नत हैं। सुतरां देवगण उनको प्रलोभन योगिन् (सं० त्रि०) योगोऽस्त्यस्य योग-इनि यद्वा युज दिखा नहीं सकते सिर्फ द्वितीय अवस्था ही