पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/७४१

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७३८ योगिन् कुम्भक द्वारा शुन्यमें उठ कर जप करते थे। पञ्जाव- २ आईपन्थी, रामजी, भत्तु हरि, सत्नामी, काणि- केशरी राजा रणजित्सिंहके दरवारमें जेनरल भेञ्चुरा बाकि (जालन्धरनाथके शिष्य ), कपिलमनि. लक्ष्मण. और कप्तान ओयेडरके समक्षमें हरिदास साधुको योग नटेश्वर, रतननाथ, सन्तोषनाथ, ध्वजपन्थी (हनुमानके समाधि और दश महीने तक भूगर्भके धीच रहनेको कथा शिष्य ), मीननाथ। सब कोई जानते हैं। कुछ समय पहले अर्थात् १७५४ | ३ शान्तनाथ, रामनाथ, अभङ्गनाथ, भरङ्गनाथ, धर- शकमें कलकत्तासे दक्षिण खिदिरपुरके भूकैलास नामक नाथ, गङ्गाईनाथ, ध्वजनाथ, जालन्धरनाथ, दपनाथ, स्थानमें एक योगिपुरुष लिवाये गये थे। भूकैलासरोज | कनकनाथ, नीमनाथ और नागनाथ । सत्यचरण घोषाल उस समय जीवित थे। डा०प्रेहम ____ कावुल और पेशावर जिले में जो सब योगी देखे जाते उनके नासारन्ध्रमें एमोनिया डाल कर भी योगभंग नहों। हैं, उनका आचार-व्यवहार अहिन्दूजनोचित है। बौद्ध. कर सके। योगभङ्ग होनेके बाद इस योगीने दुल्लानवाय प्रधान प्राचीन जनपदमें हिंसाद्वषपूर्ण इस प्रकार योगि- कह कर अपना परिचय दिया। वे अधिक नहीं बोलते थे। सम्प्रदायका अभ्युत्थान देख कर वैदेशिक जातितत्त्व १७५५ शकमें उदरभङ्ग रोगसे उनकी जीवन-लीला शेष | विद्गण अनुमान करते हैं, कि सम्भवतः ये भोटदेशीय होंगे। . आजकलके योगियोंके वीच नाना साम्प्रदायिक | ___अन्यान्य योगियों के बीच भत्तहरि और नन्दिया विभाग देखा जाता है। उनमेंसे कणफट्योगो, औघड़। योगियोंको हिन्दू कहा जा सकता है तथा भङ्गरीगण प्रायः योगी, मच्छेन्द्री, शारङ्गीहार डुरोहार, भर्तृहरि, काणिपा ही मुसलमान हैं। भङ्गरीगण दाढ़ी रखते, गुदड़ी पह- और अघोरपंथी आदि साम्प्रदायिकोंके नाम उल्लेखनीय नते, माथेमें पगड़ो वांधते और कधेमें झोरी ले कर है। स्त्रियोंके योगधर्म ग्रहण करनेसे वे योगिनी या नाथिनो | फिरते हैं । भत्तृहरि योगी शारगी वजा कर घूमते हैं। कहलाती है। ये गेरुवा वस्त्र, त्रिशूलादि शिवचिह्न और गलेमें रुद्राक्षमाला और हाथमें वैरागी-घडी ले कर चलते कानमें मुद्रा भी व्यवहार करते हैं । वहुतेरे अलंकार भी हैं। ये सामुद्रिकविद्या और भौतिकविद्या द्वारा अपनी पहनते हैं। स्नो-पुत्रादि ले फर गृहस्थयोगी 'संयोगी' | जीविका निर्वाह करते हैं। कहलाते हैं। नन्दिया योगी इस तरह गेरुवा वस्त्र और माला आदि उत्तर-पश्चिम भारतमें योगिसम्प्रदायी बहुत लोगोंका पहनते हैं सही पर वे शारंगी वजा कर गान नहीं करते। वास है। उनमेंसे औघड़ और गोरखपंथीको हो संख्या | वे प्रायः ही पांच एदयुक्त अथवा कोई विकृत गो-पालन ज्यादे है। योगिश्रेष्ठ गोरक्षनाथ ही इस सम्प्रदायके प्रवर्तक कर देवस्थान या मेला आदिमें अर्थ उपार्जन करते हैं । हैं। उनके बारह शिष्योंसे ही पश्चिमाञ्चलीय योगी महादेवका अनुचर नन्दो कह कर अपना परिचय दे इस सम्प्रदायकी वृद्धि और पुष्टि हुई है। भिन्न भिन्न साम्प्र- श्रेणीके योगो लोग नन्दिया नामसे साधारणमें विख्यात दायिकोंके मुखसे इन वारहों मनुष्योंके भिन्न भिन्न नाम | हैं। ये मिक्षाके लिये घूमते फिरते हैं। वालकगण मिलते हैं। । दीक्षा लेनेके समय मुण्डन करते और गुरुसे गुदड़ी लेते हैं। १ सत्यनाथ, धमनाथ, कायनाथ, आदिनाथ, मत्स्य. नाथ, अभयपन्थीनाथ, कालेप ( कणिपा), ध्वजपन्थी, भत्तू हरि योगी भत्तृहरि, राजा गोपीचांद और हण्डीविरङ्ग, रामजी, लक्ष्मणजी, दरियानाथ। महादेवका गान करते फिरते हैं। भगरी और नन्दी योगी कभी भी गान नहीं करते। जो गीत गाते हैं वे सिफ महादेवको हो महिमा संकीर्तन करते हैं। पश्चि-

  • Saturday Magazine, Vol. 1. p, 28.

+w.G.Osborne's Court and Camp of Run माञ्चलके योगी जाहिर पीर, हीरा और रक्षाको प्रेम- jit Sinngh, p, 124. | गीति तथा अमरसिंह राठोरको वीरकाहिनी गाते हैं।