पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/७४३

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७४० योगिनी शेष दण्ड परिवजनीय है। दक्षिण और सम्मुखस्थ | उसका पुत्रवत् पालन करती हैं। भगिनी सम्बोधन योगिनीमें यात्रा करनेसे वधवन्धनादि होता है तथा | करनेसे अनेक प्रकारके द्रव्य और दिव्यवस्त्र प्रदान कर वाम और पृष्ठस्थ योगिनीमें गमन करनेसे सर्वार्थसिद्धि | दिष्यकन्या ला देती हैं। साधक इसी साधनाके बलसे होती है। भूत-भविष्यत् कह सकता है तथा जो प्राथना करता है किसी शुभकार्यमें गमन करनेले योगिनोका शुभाशुभ देवी वही प्रतिदिन प्रदान करती रहती हैं। देख कर यात्रा करना अवश्य कर्तव्य है। __यदि देवी साधककी भार्या हो तो साधक सर्व- ___ भूतडामरमें योगिनो साधनकी विधि है । यथाविधि राजप्रधान तथा स्वर्ग में या पातालमे सभी जगह गमन योगिनीसाधन करनेसे अनेक प्रकारका ऐश्वर्य लाभ होता कर सकता है। इस साधनसे देवी जो सब द्रव्य प्रदान है। यह योगिनोसाधन सर्वार्थ सिद्धिप्रद है और अति करती हैं वह अवर्णनीय है। साधक इस तरह साधना गोपनीयं तथा देवताओके भी दुर्लभ है। यक्षाधिपति । कर कभी भी दूसरी स्त्रीसे सम्भोग न करे सिर्फ देवीके यह योगिनी साधन कर धनाधिप हुए हैं। । साथ ही रमण करे। निम्नांत प्रणालीके अनुसार योगिनीसाधन करना योगिनीसाधन पहले जमाने ठीक किया था। होता है। प्रातःकाल उठ कर प्रातःकृत्यादि समाप्त । यह साधन करने पर नदी किनारे जा कर स्नान करके हौं' इस मन्त्रसे आचमन करे। पोछे 'ओं सहस्रारं। और सन्ध्यादि सम्पन्न करे। पोछे पूर्ववत् सब काम हुं फट' इस मन्त्रसे दिगवन्धन कर मूल मन्त्रसे प्राणा- कर चन्दन द्वारा मण्डल देखना होगा। इस मण्डलके याम करना होगा। तदनन्तर 'हो' इस मन्त्रसे पड़ङ्गन्यास . वीच अपना मन्त्र लिख कर आवाहन करके मनोहराका कर अष्टदल पद्म लिखे, इस पद्मके वीच योगिनीको प्राण- का प्राण ध्यान करे । ध्यान यथा,- ' प्रतिष्ठा करके पोठपूजापूर्वक देवीका ध्यान करे । ध्यान . "कुरझनेत्रां शरदिन्दुवक्त्रा विम्बाघरां चन्दनगन्धालप्तां । यथा- "पूर्याचन्द्रनिभां देवीं विचित्रांम्वरधारिणीं। ' . चीनांशुकां पीनकुचा मनोज्ञां श्यामां सदाकामहृदां विचित्रां ॥" पीणोत्त कुचर्चा दामा सर्वज्ञानभयप्रदाम् ॥" इस प्रकार ध्यान कर यथाविधानसे देवीको पूजा उपरोक्त मन्त्रसे ध्यान कर मूल मन्त्र में पायादि द्वारा करनी होगी। पूजाके वाद 'ओं ह्री मनोहरे स्वाहा यह पूजा करनी होगी। यथाविधान पूजा करके 'ओ हों धा मूलमन्त्र दश हजार वार जप करना होगा। आगच्छ सुरसुन्दरी स्वाहा' यह मूलमन्त्र सहस्र वार जप | इस तरह एक मास तक जप करके मासके शेष दिन करना होगा। प्रतिदिन ही सायं, सन्ध्या और मध्याह्न में निशीथ समय तक जप करना होगा । इस प्रकार जप कालमें पूर्वोक्त रूपसे ध्यान कर जप करना होता है ।। करते रहनेसे मनोहरा देवो साधकको नितान्त अनुरक्त इस तरह एक मास तक जप कर मासके अन्त दिनमें | समझ उसे वर देनेके लिये उसके समीप उपस्थित होती वृहती पूजा और वलि देनी होती है। उसके बाद एकाग्र हैं। उस समय साधक भक्तिपूर्वक पाद्यादि द्वारा उन- चिंत्तसे देवीका जप करना होगा। को अर्चना तथा 'हो' इस मन्त्रसे प्राणायाम और पड़ा · वादमें देवो साधकको ढूढ़ भक्ति जान निशीथ समयमें | न्यास कर मांसवलि दे पूजा करे। 'तव मनोहरा साधक · उसके पास आ कर उपस्थित होंगी। तब साधक देवीको पर प्रसन्न हो कर उसको प्रार्थित वर प्रदान करती तथा उपस्थित देख पाद्यादि दान करके पुष्पाञ्जलिहस्तसे प्रतिदिन सौ सुवर्ण दान करती है। प्रत्येक दिन अपना अभिलाष प्रकट करे । साधक देवीका साधक इन'सव सुवर्णाको खर्च कर डालें, नहीं तो देवी माता, भगिनो या भार्याभावमें सम्बोधन करे । फिर उसे नहीं देंगी। इस साधनामें अन्य स्त्री-सहवास देवीको मातृसंषोधन करने परं देवी वित्त, उत्तम द्रव्य, | 'छाड़ देना होता है। इस साधनाके वलसे साधकको राजत्वं तथा सांधक जो प्राथना करे वहीं प्रदान कर | 'गति सर्वत्र अव्याहत रहती है। '