पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/७४४

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योगिनी ७४१ अन्य तरहका योगिनी-साधन- ध्यान यथा- "सुवर्ण वर्णा गौरागी सर्वालङ्कारभूषितां । • साधकको चाहिये, कि वह वरक्षके नीचे जा कर प्रातःकृत्यादि करके देवीका ध्यान करे। ध्यान नूपुराङ्गदहारान्यां रम्याञ्च पुष्करेक्षणाम् ॥" यथा,- इस तरह ध्यान कर 'ओं हो आगच्छ रतिसुन्दरि स्वाहा "प्रचण्डवदनां गौरी पक्वबिम्बधरा प्रियाम् । इस मूलमन्त्रसे पूजा कर सहस्र वार मन्त्र जपना होता रक्ताम्बरधरी वामा सर्वकामप्रदां शुभां ॥" है। इस पूजामें जाती पुष्प बड़ा प्रशस्त है। बादमें प्रति- दिन इस प्रकार एक हजार करके यह मन्त्र जपना होता' इस प्रकार ध्यान कर 'ह्रीं' इस मन्त्रसे प्राणायाम है। एक मास इस प्रकार अप करके शेष दिनमे देवी- और षडङ्गन्यास कर मांसोपहारसे देवीको पूजा करे। “ओं हों हू रक्षकर्माणि आगच्छ स्वाहा” देवीका इस की पूजा कर जप करे। उस समय सुन्दरी साधकको का पूजा मूलमन्त्रसे प्रतिदिन दश हजार जप करना होगा।' दृढ़प्रतिज्ञ जान निशीथ समयमे उसके समीप आगमन करती है । साधकको चाहिये, कि वह उस समय उनकी प्रतिदिन इसे उच्छिष्ट रक्त द्वारा अध्य देना उचित अच ना करे। इससे देवी सन्तुष्ट हो कर प्रीतिप्रट ऐसा करनेसे देवी उसे अनुरक्त समझ उसके निकट उपस्थित होती हैं। पोछे साधकके अर्चना करनेसे । भोजनादि द्वारा साधकको सन्तुष्ट करती और सवेरे देवी सपरिवार उसकी भार्या वन जाती है। इसके सिद्ध साधककी आज्ञानुसार चली जाती हैं। साधक निर्जन होने पर अपनी पत्नी छोड़ देना होता है। स्थानमें या प्रान्तरमें इस प्रकार सिद्ध हो कर अपनी कामेश्वरी योगिनी-साधन,- भार्याको छोड़ वहां जाय । इसके विरुद्ध चलनेसे साधक इससे साधक पूर्ववत् सव काम कर भोजपत्रमें गोरो । विनष्ट हो जाता है। चना द्वारा देवीको प्रतिमूर्ति अंकित कर यथाविधानले पद्मिनी योगिनीसाधन- देवीकी पूजा करे। साधकको अपने घरमे या शिवके समीप पूवकी भांति देवीका ध्यान- । सव काम कर रक्तचन्दन द्वारा “ओं हों आगच्छ पद्मिनी खाहा' यह मूलमन्त्र भोजपत्र पर लिखना होगा। वाद- "कामेश्वरी शशाङ्कास्या चलत्खलनमोचना। मे उसका ध्यान कर यथाविधानसे पूजा करे। सदा लोलगति कान्ता कुसुमात्रशिलीमुखीं ॥" ध्यान यथा- इस तरह ध्यान कर पूजा तथा 'ओं ह्रीं आगच्छ | "पद्माननां श्यामवीं पीनोत्तु झपयोधरां । कामेश्वरि स्वाहा' यह मूलप्रन्त्र शय्या पर बैठ कर एक कोमलाझी स्मेरमुखीं रक्तोत्पलदलेक्षणां ॥" सहस्र जप करना होगा। प्रतिदिन ही इस प्रकार सहस्त्र जप करना होता है। इस तरह एक मास तक जपकर मास- इस तरह हर रोज कर मासान्त पूर्णिमा तिथिमें यथा- इस ध्यानसे पूजो कर एक सहस्र मूल मन्त्र जपे। के शेष दिन घृत और मधु द्वारा दीया जला कर पूर्वोक्त । विधानसे पूजा करके भक्तिके साथ मन्त्र जपे। पीछे रूपसे देवीको पूजा करके जप करता रहे। देवी निशीथ । निशोथ समयमे साधकके निकट जा कर उसको भार्या कालमें साधकके समीप उपस्थित हो उसे अभिलषित । होती हैं तथा उसे भूषणादि द्वारा सन्तुष्ट करतो हैं। वर देती हैं। देवी उसकी पतिकी भांति सेवा और ! पद्मिनी इस तरह हर रोज उसके प्रति पतिवत् व्यवहार विविध द्रष्य प्रदान करती हैं। इस प्रकार सारो रात उसके निकट रद्द कर भोरमें चली जाती हैं। कर उसे स्वर्ग ले जाती हैं। साधक अपनी भार्या छोड़ कर केवल पद्मिनीको हो भजना करे। - रतिसुन्दरी-योगिनीसाधन- नरिनी योगिनोसाधन- साधक पूर्वोक्त रूपसे प्रातःकृत्यादि कर भोजपत्र पर देवीकी प्रतिमूत्ति अङ्कित करके उसका ध्यान करे। । साधक अशोक-यक्षके पास जा कर मूलमन्त्रसे विधि- विश्वामित्रने यह योगिनो साधन किया था । Vol, xvill, 186