पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/७४६

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७४३ योगिराज-योगी गांधारके अतिरिक्त सब कोमल स्वर लगते हैं। इसके | विन्दुनाथ नाथवंशीय योगियोंके आदिपुरुष हैं। कश्यप- गानेका समय प्रातःकाल १ दंडसे ५ दंड तक है। यह दुहिता कृष्णाके साथ विन्दुनाथका विवाह हुआ था। करुण रसका राग है। कुछ लोग इसे भैरवरागकी। उनके पुत्र रुद्रकुलप्रकाशक आदिनाथसे यथाक्रम मीन- रागिणी भो मानते हैं। '२ योगिन् देखो। नाथ, गोरक्षनाथ, छायानाथ, सत्यनाथ आदि महात्मा योगिराज (सं० पु०) योगियों में श्रेष्ठ, बहुत बड़ा आविर्भूत हुए थे। योगी। विन्दुनाथ गृहस्थाश्रमी होने पर भी योगधर्मपरायण थे। इस कारण उनके वंशधरगण लिदण्डो और योग- 'योगिवीर (सं०वि०) महासिद्ध, सिद्ध योगी। योगी (सपु०) योगिन देखो। पट्टधारण, भस्मानुलेपन, ललाटमें अर्द्धचन्द्र धारण योगी-बङ्गालमें रहनेवाली हिन्दूजातिको एक श्रेणी। और रक्तवस्त्र पहन कर नाथ गुरुके उपदेशानुसारसे कुछ समय पहले सूती कपड़ा बुनना हो इनका प्रधान परमगुरुकी चिन्ता करते हैं । आगमसंहितामें एक जगह : व्यवसाय था। आज भी हीनावस्थापन्न वहुतेरे उक्त | लिखा है "विन्दुनाथो मम कायस्रस्मात् योगी निरञ्जनः।" वृत्ति द्वारा अपनी जीविका चला रहे हैं। अगरेजी शिक्षा-1, एवं "अनादिगोत्रश्च योगी उत्पत्ति रुद्रकुलके तत्व, के प्रभावसे समधिक समुन्नत हो कर भभी बहुतोंने सूत शिवगात्रस्य काश्यपगोत्र विवाहितम् ।। इससे रुद्र- वनाना छोड़ कर विभिन्न व्यवसाय अवलम्वन किया है। कुलसम्भूत योगीको पवित्रता तथा शिवगोत्रीयके साथ शिक्षाके तारतम्यानुसार अथवा अवस्थाके भेदसे बहुतोंने , काश्यपगोत्रियोंका विवाहसम्बन्धस्पापन स्वोकृत होता हो अङ्गरेज गवर्नमेंटके अधीनमें सवजजसे किरानो तथा है। खेतीका काम तक ले लिया है। योगीसम्प्रदाय चन्द्रादित्य परमागम नामक एक __प्राचीनतम पुराण और स्मृति आदि शास्त्रोंमें इस आगमसंहिताका वचन दुहाई दे कर कहता है, कि सूर्य- जातिका उत्पत्तिविषयक कोई उल्लेख न रहने पर भी । वंशीय सुधन्यराजकन्या सूर्यवतीने महादेवको पतिरूपमें वर्तमान शिक्षित योगिसम्प्रदाय ब्रह्मवैवर्तपुराणके वें। पाकर उनके औरससे पुत्रोत्पादनको आशासे कठोर और वें अध्यायमें वर्णित रुद्र और रुद्रके पुत्रोंका उत्पत्तिः तपस्या को थो। एक दिन व्यास लगने पर वह नर्मदा- प्रसङ्ग ले कर तथा वृद्धशातातप और आगमसंहितोक्व के किनारे जल पोने गई । जिस पद्मपत्रकों फाड़ ईश्वरोद्भूत योगपरायण ग्यारह रुद्रसे महायोगो और उन्होंने जल पोया था, तपस्यासे तृप्त महादेवने उनकी विन्दुनाथादिका जन्म स्वीकार कर नाथवंशीय योगियों- कामना पूरी करनेसे पहले ही उस पत्रमें वीर्य डाल रखा से हो बंगालके योगियोंकी उत्पत्ति स्वीकार करते हैं। था। जलके साथ वीर्य पीनेसे सूर्यवती गर्भवती हो इन सब प्रन्थोंमें लिखित विवरणोंका स्थूल मर्म नीचे गई। यथासमय एक सुपुत्र उत्पन्न हुआ और उस उधृत हुआ- पुतका नाम योगनाथ रखा गया। स्वयं महादेवने गुरु ___ईश्वरको क्रोधाग्निमें उनके कपालसे महान, महात्मा, | और आचार्यरूपमें उपनयन आदि संस्कार कर उसे योग मतिमान्, भीषण, भयङ्कर, ऋतुध्वज, उद्ध्वकेश, रुचि, और आगमनिगमादि विविध शास्त्रोंकी शिक्षा दी । योग. शुचि, पिङ्गलाक्ष, और कालाग्नि नामके ग्यारह रुद्र नाथ (विन्दुनाथ )ने तपस्या सिद्धिलाभ कर महादेव- माविर्भूत हुए। इन योगपरायणं रुद्रोंकी कला, कलावती, | के आदेशानुसार गृहस्थाश्रम अवलम्बन किया और काष्ठा, कालिका, कलहप्रिया, कन्दलो, भीषणा, रास्ना, कश्यपकन्या सुरतिसे विवाह किया। योगनाथ और अम्लोचा, भूपणा और शुकी नामको ग्यारह पत्नियां थी।। सुरतिसे आदिनाथ, मोननाथ, सत्यनाथ, सचेतननाथ, रुद्र और उनको पनियोंसे बहुसंख्यक पुत्र उत्पन्न हुए। कपिलनाथ और नानकनाथ नामक पुत्र गृहवासी तथा ये सब योगधर्मपरायण और शिवपार्षद थे। इनमेंसे महायोगी और कलासे विन्दुनाथका जन्म हुआ। यहो । - श्यामानन्द, सुकुमार और अच्युत नाम दश पुत्र गृहस्थाश्रम गिरि, पुरी, भारती, शैल, नाग, सरस्वती, रामानन्द,