पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/७४७

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-योगी छोड़ कर दिग् दिगन्तरमें भ्रमण करते हैं। ये सब देवका अप्रियभाजन हो गये हैं। शिव मायावलसे आठ योगनाथके पुत्र थे इस लिये ये 'योगी' आख्यासे प्रसिद्ध योगिनीको सृष्टि कर सिद्धगणके प्रलोभनार्थ भेजते हैं। हुए। इनमेसे कोई त्रिशूल, कोई डमरू, कोई कमण्डलु, रमणीके कमनीयरूपमे मुग्ध हो कर सिद्धगण योगमार्ग- कोई तो रकचेली और कोई तो नागयज्ञोपवीत धारण से स्खलित होते हैं। उनके सहवाससे योगिनियोंके गर्भ- करते थे। ये सभी योगशास्त्र, आगम, वेद. और पुरा से जो सन्तानसन्तति उत्पन्न होती है वह मास्ययोगीकी णादिमें पारदशी थे। उन योगीपुत्रों से किसी किसोने | आदिपुरुष है। पीछे गृहस्थाश्रम अवलम्बन किया। विप्रकी सरह ___एक और उपाख्यानसे जाना जाता है, कि काशी- आगम आदि शास्त्रोंमें सुपण्डित थे तथा सवदा वेदकार्य- वासी एक अवधूत सन्न्यासीके दो पुत्र थे। उनकी में रत रहते थे। इन पुत्रोंमेसे महादेवप्रिय सदानन्द ब्राह्मणपत्नीके गर्भसे उत्पन्न ज्येष्ठ पुत्रसे दशाशौच योगी योगी पूर्वगृह परित्याग कर श्रीपुरमें जा कर रहने लगे। तथा वैश्यपत्नोगर्भजात कनिष्ठ पुत्रसे मास्योंकी उत्पत्ति ये लोग पट्ट धारण करते थे। हुई। सम्भवतः इन दो स्वतन्त्र थोकोंकी मृताशौच- दशाशौच योगी लोग अपनी अपनी उत्पत्तिके बारे में पद्धतिको पार्थक्य निरीक्षण कर इस प्रकार एक किंव. वृद्ध शातातपीय नामक ग्रन्थको दुहाई देते हैं। उससे पता चलता है, कि वाराणसीधामके समीप ब्राह्मण और . इस देश में प्रचलित किंवदन्ती और योगीजातीय वैश्य-कन्याए सूत कातती थी। अवधूत नामक नोथ | सामाजिक संस्थानको आलोचना कर डा० दुकानन योगीके शिष्यसम्प्रदायके औरससे उक्त ब्राह्मण-कन्याओं अनुमान करते हैं, कि जिस वंशमें राजा गोपीचन्द्र के गर्भसे बहुसंख्यक पुन और कन्याएं उत्पन्न हुई। (गोविन्दचन्द्र ) ने जन्म ग्रहण किया था उस वशीके ब्रह्माके आदेशसे नारद ऋषिने काशीधाममें आ कर अव- वङ्गेश्वरोंके राजत्वकालमें यह योगिसम्प्रदाय सम्भवतः धूतोंसे उक्त सन्तानसन्ततिओंका जातिनिर्णय प्रश्न उनके पुरोहित थे। ये पालवंशीय वौद्ध राजाओं के साथ पूछा। अन्तमें स्थिर हुआ, कि अवधूत और ब्राह्मण- पश्चिम भारतवर्षसे बङ्गदेशमें आ कर रहते हैं। योगी कन्याको सन्तान शिवगोत्रीय तथा वश्यकन्याओंके गर्भ लोग पालवशीय .रोजाओंको पाल · उपाधिधारी नाथ से उत्पन्न सन्तान नाथ नामक स्वतन्त्र श्रेणीबद्ध होगी। राजा कह कर उल्लेख करते हैं। सम्भवतः उसी वौद्ध- प्रथमोक्त सन्तान ब्राह्मणों की तरह दश दिन अशौच प्रादुर्भावके समय वङ्गालमें योगिगुरुओंका प्राधान्य मानेगी तथा शेषोक्त वैश्यको भांति अशौच ग्रहण | प्रतिष्ठित हुआ था। रङ्गपुरके योगी राजा माणिकचन्द्र करेंगी। इन दोनों श्रेणीको ही वेदमे अधिकार रहेगा। और गोपीचन्द्रका गीत गाते हैं। विवाहके समय वे मातृगणकी पूजा और पितृपुरुषोंका | पौराणिक प्रसङ्ग और उपाख्यानमूलक किंवदन्ती नान्दोश्राद्ध करेंगे। बे पवित्र योगपट्ट और यज्ञसूत्र छोड़ देने पर, वर्तमान ऐतिहासिककी आलोचनासे हम , धारण करेंगे। अवधूतने और भी कहा है, मुखाग्निदान लोग जान सकते हैं, कि पूर्वतन सिद्धयोगी नाथवशीय- के बाद शवदेहकी समाधि कर सकेगे। से वङ्गालके योगी समुद्भुत-होने पर भी किसी विशेष . पूर्व-बङ्गालमें दशाशौच योगिगण अपनेको ब्राह्मणी- कारणसे अथवा राजविद्वेषवशसे इस धर्माश्रमाचारी 'के गर्भका मानते हैं और दश दिन तक अशौच मानने जातिविशेषका अध:पतन हुआ था। पर भी वे कभी भी ब्राह्मणोंकी तरह जनेऊ नहीं पहनते ।। बौद्धप्रभावके समयमें भी योगि-सम्प्रदायकी प्रधा- ___ मास्य ( मासाशौच) शाखाके योगी वृहत्योगिनी नता विलुप्त नहीं हुई। बोद्धमतानुसार मत्स्येन्द्रनाथादि - तन्त्रके वचनप्रमाणमे महादेवसे आठ सिद्धोंकी उत्पत्ति बौद्ध-तथा हिन्दूमतानुसार वे शैव नामसे ही प्रसिद्ध हैं। स्वीकार करते हैं। ये सिद्धगण ब्रह्मचर्य अवलम्बन कर जो कुछ हो, बङ्गालमें पालवशीय बौद्ध राजाओंके ' योग-करते हैं। योगवलसे शक्तिसम्पन्न हो कर-वे देवादि। समय योगियोंकी प्रतिपत्ति-विस्तृत होने पर भी उन्होंने