पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/७४८

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योगी बौद्ध-राजाओंका था | राजा गोपीचन्द्र, माणिक- था, अन्नके अभावसे नाना वृत्तिका अवलम्बन कर नीच चन्द्र आदि राजाओंके प्रसङ्गमें योगि-गुरुसे ही समझे जाने लगे। दीक्षाप्राप्तिका प्रमाण पाया जाता है। बौद्धप्रधानताके : राजा वल्लालसेनके समयसे बङ्गालका योगि-सम्म. समय शायद वङ्गवासी योगियोंकी आचारहीनताका | दाय समाजमें हीन समझा जाने लगा, फिर भी वे लोग सूत्रपात हुआ अथवा बौद्धप्रधानताका हास और हिन्दू- ब्राह्मणपण्डितोंके टोलमें वे-रोकटोक पढ़ने जाया करते धर्मका पुनरभ्युदय होनेसे वौद्धविद्वे पो हिन्दुओं द्वारा थे। किन्तु इस पर भो वे लोग सामाजिक अवस्थामें 'ब्रह्मण्यधर्मको प्रतिष्ठाके लिये ब्राह्मण-पुरोहितका सम्मान | कोई विशेष परिवर्तन न कर सके। अंगरेजी अमलमें बढ़ा तथा नाथगुरुओंका सम्भ्रम विनष्ट हुमा। इस अंगरेजी शिक्षागुणसे इन्होंने बहुत कुछ उन्नति की है। • सम्वन्धमें गोपालभट्ट विरचित 'वल्लालचरितम्' नामक पूर्वघङ्गमें योगिजातिमात्र ही नोआखाली जिलेके . आधुनिक प्रन्थमें एक राजविरोधकी कथा इस प्रकार. दलालवाजारके राजवंशका बड़ा मादर करती है तथा लिखी है:- उन्हींको स्वजातिका मुखपात समझती है । १८वीं सदीके • "सेनवंशीय राजा वल्लालसेनने जिस समय | मध्यभागमें योगिवंशीय ब्रजवल्लभराय मेघना नदीतार- वल्लभानन्दप्रमुख सुवर्ण-वणिक जातिकी अस्पृश्यता प्रति- वत्ती अंगरेज वणिकोंके दलाल तथा उनके छोटे भाई पादन को, उस समय बङ्गीय ब्राह्मण और योगियोंके | राधावल्लभराय वहांके याचनदार थे। बजवल्लभके पुत्र. मध्य विवाद खड़ा हा गया। एक दिन शिवचतुर्दशी- ने वाफता कपड़े का कारवार चला कर १७६५ ईमें की रातको राजपुरोहित वलदेवभट्ट राजाकी काम्यपूजा कम्पनी वहादुरसे 'राजा'को उपाधि तथा निष्कर (लाख- देनेके लिये जटेश्वर महादेवके मन्दिरमें गये। मन्दिरके राज ) भूसम्पत्ति पाई। आज भी उनके वंशधर उस योगियोंने राजपूजोपहारसे लुब्ध हो वलदेवसे वे सव सम्पत्तिका भोग करते हैं। उपभोग्य द्रव्य लेनेको कोशिश की। इसी सूतसे दोनोंमें आजसे पचास वर्ष हुए, प्रेसिडेन्सी विभागके अन्तर्गत अनवन हो गई। पीछे पुरोहितके मुखसे लोभकी वात सभी जिलोंके-योगियोंने यज्ञोपवीत धारण कर लिया। सुन कर राजा बल्लालने तमाम ढिढोरा पिटवा दिया कि इस सूत्रसे ब्राह्मणों के साथ उनका विवाद खड़ा हुआ। "आजसे जो योगोके साथ एक आसन पर बैठेंगे, उनके यहां तक कि, फौजदारी अदालतमें भी कई बार.यह दानादि ग्रहण, यजन-याजनादि.करेंगे अधवा केवल | मामला चला। सहायता ही पहुंचायगे, वे भी पतित होंगे, अतएव वचमान योगियोंके मध्य प्रधानतः नाथ, देवनाथ, इनका योगपट्ट और यज्ञसूत्रादि धारण व्यर्थ होगा। अधिकारी, विश्वास, दलाल, गोखामी, याचन्दर, महन्त, इसके बाद उन्होंने योगियोंकी वृत्ति (शिवोत्तर) आदि छोन मजुमदार, नाथजी, पंण्डित, राय, सरकार, चौधरी, ली" इत्यादि। यह आदेश प्रचारित होनेके बाद बङ्गा- भौमिक, शर्मा, देवशर्मा, भट्टाचार्य, महात्मा, मण्डल, वासी योगियोंमेले कुछ चङ्गाल छोड़ कर भाग गया और मल्लिक, वक्सी, चक्रवत्ती, स्थानपति आदि उपाधि प्रच- कुछ योगपहादि तथा जातीय धर्मवृत्तिका परित्याग कर लित देखी जाती है। अलावा इनके । मध्य श्रेणी छिपके तरह तरहका व्यवसाय फरने लगा। राजाके | और थाक भी हैं। राढ़ी, वारेन्द्र, वैदिक, वङ्गज, खेलेन्द, आदेशसे हिन्दूसमाजमें हीन समझे जानेके बाद अधि- वोलघरे आदि नामोसे इनके मध्य विभिन्न थाक संग- कांश योगी कपड़ा बुनने लगे। ठित हुआ है । अवलम्वित व्यवसायी गृही योगियोंके मध्य ___(पल्लालचरितउ०ख० ११-३२१ श्लो०) . हलुआ; कम्बले, मणिहारी, रङ्गरेज, गृहस्थ (इनके मध्य । इसी समयले तपःप्रभव नाथवंशीय योगी जो पहले फिर धनाई, मण्डल, शानवार, भगनभाजन और पावन पालराजवंशके समय बङ्गालमें विशेष प्रतिष्ठाभाजन थे | नामक चार विभाग है); धर्माश्रमाचारियोंके मध्य . तथा समाजमैं योगि-गुरुकह कर जिनका आदर होता । ब्राह्मण, संन्यासी (कनफट), दण्डी, धर्मपदे, जाय Vol, XVIII, 187