पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/७५०

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योगी-योगीनाथ ७४७ पुरोहितोंसे होता है। विक्रमपुर प्रान्तमें इन पुरोहितोंके । नहीं है । कोई कोई शक्तिको भी उपासना करता है। ऊपर एक एक अधिकारी हैं। वे सभी कार्मों में पुरो- नित्यानन्द और अतिवशीय गोसाई योगियोंको हितोंके ऊपर कर्तृत्व करते हैं। यहां तक कि, ब्राह्मण वैष्णवधर्ममें दीक्षा देते हैं। योगी ब्राह्मणोंमेंस कितने योगी और संन्यासी योगियोंको भी वे धर्मगुरुरूपमे | अगरेजी नहीं पढ़ते । जो संस्कृत लिखते पड़ते हैं, वे मन्त्रदान करते हैं। दुःखका विषय है, कि उक्त दोनों पाठकका कार्य करते हैं। इनमें से कुछ योगी सुन्दरवन- श्रेणीकी योगो किसी हालतसे अधिकारी के निकट अपनी | के कपिलमुनि-तीर्थंक महन्त हैं । फाल्गुनमासके वारुणो भधीनता स्वीकार नहीं करते, क्योंकि अधिकारी एक उत्सवके समय ये लोग जगह जगह पर पुरोहिताई किया निर्वाचित व्यक्तिमान है। पहले इस अधिकारीका कार्य करते हैं। वंशपरम्परानुगत था, पीछे उपयुक्त वंशधरके अभावमें शवदेहकी समाधि के समय प्रायः सभी योगी एक-हो माज कल निर्वाचनप्रथा जारी हो गई है। अधिकारियों- प्रथाका अनुसरण करते हैं। सात कलसी जलसे शव. के भी स्वतन्त्र पुरोहित रहते हैं। देहको स्नान करा कर नया वस्त्र पहनाते हैं। वैष्णव होनेसे त्रिपुरा और नोआखालीके योगीब्राह्मण यज्ञोपवीत | गलेमें तुलसोमाला और हाथमें जपमाला तथा शैव होनेसे पहनते हैं। ढाका जिलावासी बहुतसे योगियोंके आज | रुद्राक्षमाला दी जाती है। कहीं कहीं उसके धाएं कंधे भी उपवीत नहीं हैं। कलकत्ता और उसके आसपास पर कौडीसे भरी हुई थैलो रख कर पागकी समाधिकी स्थानोंमें उपवीतो और निरुपवीतो दोनों प्रकारके योगो! तरह बना कर ८ फुट गहरी जमीनमें गाड़ देते हैं। देखे जाते हैं। १२८४-८५ वङ्गाब्दमें बङ्गालके योगियोंने मिट्टोमे गाड़नेके पहले शवके मुंहमें आंग दी जाती है। यज्ञोपवीत पहनना आरम्भ किया। यह ले कर ब्राह्मणों- समाधिकार्य शेष होनेके बाद मृतके निकट उसके भात्मीय के साथ इनका मुकदमा चला। पोछे आन्दूल, हविवपुर तिल, मधु, तुलसी, कदली, चीनी, घृत आदिको पक्व आदि स्थानों में सभा करके यही निश्चय हुआ, कि कल- अन्नमें मिला कर पिण्ड बनाते और प्रेतके उद्देशसे दान कत्ता और उसके भासपासके योगी उपनयन ग्रहण कर करते हैं। स्त्रियोंकी भी समाधिप्रथा पुरुष-सी है । आज सकते हैं। कलके योगी शवको जलाते हैं। वे लोग दूसरे दूसरे योगियोंके मध्य शिवरात्रि ही प्रधान पर्व है। किन्तु हिन्दुको तरह शवको नहवा कर पिण्डदान करते हैं। जन्माष्टमी आदि प्रधान प्रधान पूजापर्व का भी ये लोग उस पिण्डका तण्डुल अग्नि द्वारा पाक किया जाता है। पालन करते हैं। इसके सिवा ग्राम्यदेवता सिद्ध श्वरीको | पिण्डदान के बाद यथारोनि मुखाग्नि दे कर शवदाह करते पूजा भी ये लोग बड़ो धूमधामसे करते हैं। वृन्दावन, } है। दशवें दिनमें क्षौर-कर्म करके दश पिण्ड देते मथुरा, गोकुल, काशी, गया, सीताकुण्ड, चट्टनाम, नेपाल हैं। ग्यारवें दिन श्राद्धक्रिया सम्पन्न होती है। आदि तीर्थ स्थानों में ये लोग जाते आते हैं। यज्ञडूमर, योगिन शब्दमें अपरापर विवरण देखो। तुलसी, वट, पीपल और तमालयूक्ष पर इनकी विशेष ___ उत्तर पश्चिम भारतके नाना स्थानों में कुरुक्षेत्र- भक्ति है। के अन्तर्गत एक वहर विभाग, नेपाल राज्यमें मैमनसिहके योगियों के मध्य जो स्वश्रेणीगत ब्राह्मण तथा उड़ीसा देशमैं नाना श्रेणोके योगियोंका वास हैं वे "ब्रह्मशर्मा" कहलाते हैं। जनसाधारण उन्हें है। उनका आचार-व्यवहार वङ्गवासी योगियोंसे कहीं 'महात्मा' कह कर पुकारते हैं। ये ब्राह्मण अपनेको अच्छा है। श्रोत्रिय ब्राह्मणके औरससे योगी कन्याके गर्भजात वत- योगीन्द्र (संपु०) योगिनामिन्द्रः। योगीश्वर, बहुत लाते हैं। अधिकांश योगी शिवके उपासक हैं। कृष्णकी | योगीकुण्ड-हिमालयके एका तीर्थका नाम । बड़ा योगी। उपासना करनेवाले वैष्णव योगियोंकी संख्या भी थोड़ो । योगीनाथ (सपु०) महादेव, शंकर ।