पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/७५३

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७१० योटक शुभ होनेसे दम्पतीका पूर्ण शुभफल होता है। दोषके । यदि गणनामें १, २, ४, ६, ८, वा ६ इनमें से कोई एक हो संबंधमें भी इसी प्रकार जानना चाहिये। तो वरका ताराशुद्ध होता है । इसे अधिक होने पर वर्णकूट-पहले मेषादि बारह राशिका वर्ण स्थिर करना घटा करके उक्त नियमसे ताराशुद्धि देखनी होती है। होगा। पीछे वरकी राशिकी अपेक्षा यदि कन्या श्रेष्ठ | वर और कन्या इन दोनोंकी ताराशुद्धि देखना आवश्यक वर्णा हो, तो उस कन्याका कभी भी विवाह नहीं करना | है । वरके नक्षत्रसे कन्याका नक्षत्र और कन्याके नक्षत्रसे चाहिये, करनेसे स्वामीका अशुभ होता है। शूद्रवर्णको वरका नक्षत्र तृनीय, पञ्चम और सप्तम, इनमेंसे कोई एक अपेक्षा वैश्य, वैश्यको अपेक्षा क्षत्रिय और क्षत्रियकी होनेसे दोनों होके तारे अशुद्ध होते हैं। वर और कन्या अपेक्षा ब्राह्मण वर्ण श्रेष्ठ है । (दीपिका) दोनोंके ही तारे शुद्ध हों, ऐसा कम देखनेमें आता है। ___वश्यकूट-यदि वरकी राशि मिथुन, कन्या, तुला, इस कारण केवल वरका ताराशुद्ध देख कर विवाह 'कुम्भ और धनु इनमें से किसी एकका पूर्वाद्ध हो | दिया जा सकता है। तथा मेष, वृष, कर्कट, बिछा, मकर, मीन! योनिकूट-शतभिषा और अश्विनी नक्षत्रकी योटक. और धनु इनमेंसे जिस किसीका शेषाद्ध कन्यो- योनि, स्वाति और हस्ताकी महिषयोनि, पूर्वभाद्रपद की राशि हो, तो वह कन्या परकी वशीभूत होती और धनिष्ठाकी सिंहयोनि, भरणी और रेवतीको हस्ति- है और यदि वरकी सिंहराशि तथा कन्याकी मेष, वृष, योनि, कृत्तिका और पुष्याकी मेषयोनि, पूर्वाषाढ़ा और मिथुन, कन्या, तुला, धनु, कुम्भ और मकरकी पूर्वाद्ध श्रवणाकी वानरयोनि, अभिजित् और उत्तराषाढ़ाकी इसकी अन्य राशि हो, तो वह कन्या उक्त वरकी वशीभूत नकुलयोनि, रोहिणी और मृगशिराको सर्पयोनि, ज्येष्ठो होती है। किन्तु कन्याकी राशि कर्कट, विछा, मीन और और अनुराधाकी हरिणयोनि, आर्द्रा और मूलाको कुक्कुर- मकरकी शेषाद्ध इसकी अन्य राशि होनेसे वह | योनि, उत्तरफल्गुनी और उत्तरभाद्रपदकी गोयोनि, कन्या सिंहराशि वरको वशीभूता नहीं होती। मिथुन, | चित्रा और विशास्त्राको ध्याघ्रयोनि, अश्लेषा और पुन- तुला और कुम्भ इनमेंसे कोई एक यदि कन्याकी राशि वसुको विड़ालयोनि तथा मघा और पूर्वफल्गुनीकी तथा मेष, वृष, कर्कटमेंसे कोई एक वरकी राशि हो, तो इन्दुरयोनि है। वह पति पत्नोको वशीभूत नहीं कर सकता, वलिक | गो और व्याघ्रयोनि. हस्ती और सिंहयोनि, अश्व स्वयं ही पत्नीके वशीभूत हो जाता है। कन्याकी | और महिषयोनि, कुक्कुर और हरिण, नकुल और सप सिंहराशि होनेसे वह कन्या पतिको वशीभूत करती है। बानर और मेष, बिडाल और इन्दुर परस्पर विरुद्ध हैं। वश्यावश्य इस प्रकार स्थिर करना होता है,-सिंह- यदि वर और कन्याको एक योनि हो, तो उस राशिको छोड़ कर चतुष्पादराशिकी वशीभूत जलज- विवाहमें शुभ होता है। भिन्न योनि होनेसे मध्यम राशि द्विपादराशिकी भक्ष्य तथा सरीसृप और कीट- तथा नैरयोनि होनेसे अशुभ फल जानना होगा। संक्षक राशि द्विपाद राशिको वशीभूत होती है। इस पर गर्गमुनि कहते ५, कि प्रीतियोनिके अभावमें .विवाहमें वरकी राशिके साथ कन्याकी वश्यताका अर्थात् वैरयोनिमें कभी भी विवाह न करे, करनेसे विचार करना होता है। वरकी राशि कन्याकी राशि मृत्युकी सम्भावना है, किन्तु यदि कन्याकी राशि बरकी को वश्य होनेसे वह पुरुष स्त्रीपरायण तथा कन्या वश्य हो, तो वैरयोनिमें विवाह करनेसे दोष नहीं की राशि परकी राशिकी वश्य होनेसे वह कन्या होता। पतिकी सम्पूर्ण वश्या और पतिपरायणा होती है । कन्या- ग्रहमैत्रकूट-ग्रहोंके स्वाभाविक जो शत्रु मित्र आदि की राशि वरकी राशिकी वशीभूत नहीं होनेसे उस निर्दिष्ट हैं, तदनुसार उसका निरूपण करके देखना होगा, विवाहमें नाना प्रकारके अशुभ और कलहादि होते हैं। कि वर और कन्याके राश्यधिप प्रहका यदि परस्पर ताराकूट-वरके जन्मनक्षत्रसे कन्याका जन्मनक्षत्र । मित्रता रहे, तो उस विवाहमें दम्पतीका मंगल, सम