पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/७५४

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थोटक ' होनेसे मध्यम प्रीति और वैरता होनेसे परस्पर शत्रुता | कन्या वर्णश्रेष्ठा हो, तो इस राजयोटकके शुभशक्तिप्रभाव- तथा कलहादि होते हैं। वर और कन्याके राशि- से वे सब दोष नष्ट हो जाते हैं अधिपतिमें मित्रता होनेसे जिस प्रकार शुभ होता है, विषमसप्तम -वर और कन्याका यदि परस्पर मेष और दोनों एक होने पर भी उसी प्रकार फल हुआ करता है। तुला, मिथुन और धनु तथा सिह और कुम्भ इत्यादि इसका प्रतिप्रसव वृहन्नारदसंहितामें इस प्रकार लिखा | रूप विषम और सप्तम राशि हो, तो उसे विषसप्तम है-वर और कन्याकी राशि यदि परस्पर तृतीय और | कहते हैं। इसमें कभी भी विवाह नहीं करना चाहिये, एकादश, चतुर्थ और दशम तथा समसप्तक हो, तो राशि करनेसे अशुभ तथा मृत्यु तक भी हो जाती है। अधिपतिमें शत ता रहने पर भी विवाहमें शुभ होता है। षडष्टकादिदोष-वर और कन्याकी राशि यदि परस्पर ____गणकूट-वर और कन्याके जन्मनक्षत्रसे गणकूटका | षष्ठ और अष्टम हो, तो उस विवाहमें कन्याको मृत्यु विचार करना होता है । जन्मनक्षत्रानुसार वर और | होती है, द्विद्वादश होनेसे धनका नाश तथा नवपञ्चक कन्याको गणनिरूपण करके यदि दोनोंका ही एक गण हो, होनेसे सन्तानकी हानि होती है। तो दम्पतीका शुभ, देवगण और नरगणमें मध्यम शुभ, देव- मित्रघड़ष्टक--षड़टक निन्दनीय होने पर भी मित्रषड़- गण और राक्षसगणमें शव ता तथा नरगण और राक्षस ष्टक विशेष दोषावह नहीं है, किन्तु अरिषडष्टकमें कभी गणमें दोनों मेंसे एकको मृत्यु होती है। ज्योतिस्तत्त्वमें | भो विवाह न करे। वर और कन्याकी राशि यदि मकर लिखा है, कि यदि वरके नरगण तथा कन्याके राक्षसगण और मिथुन, कन्या और कुम्भ, सिंह और मीन, वृष और हो, तो भी वरको मृत्यु वा निर्धनता होती है। तुला, विछा और मेष तथा कर्कट और धनु हो, तो उक्त इस गणमेलकका प्रतिप्रसव भो देखने में आता है। दो दो राशिके अधिपतिकी परस्पर मित्रताके कारण इस पर गर्गमुनि कहते है, कि यदि वरके राक्षसगण ! मित्रषडष्टक हुआ करता है। मित्रके स्थानमें भी यदि तथा कन्याके नरगण हो कर सद्भकूट अर्थात् राजयोटक / कन्याकी राशिसे वरकी राशि अष्टम हो, तो कभी भी मेलक हो तथा परस्परके राश्यधिपतिमें मिलता, राशि- विवाह न दे। मित्रषडटकके स्थानमें ताराशुद्धिका विशेष वश्य और मित्रयोनि हो, तो उस विवाहमें कोई दोष न प्रयोजन है । वरके नक्षत्रसे गणनामें कन्याका नक्षत्र यदि हो कर शुभ होता है। वशिष्ठ मुनिके मतसे यदि विपद्, प्रत्यरि वा वध इनमेसे कोई एक हो, तो विवाह कन्या राक्षसगण तथा वरके नरगण हो, और पूर्वोक्त नहीं करना चाहिये ; किन्तु यदि जन्मतारा सम्पद, क्षेम, . राजयोटक मेलक रहे, तो उस विवाहमें दोष नहीं साधक, मित्र वा परममित्र हो, तो विवाह करने में दोष होता। नहीं। भकूट -वर और कन्याकी यदि एक राशि हो अथवा अरिषडष्टक-वर और कन्याकी राशि यदि मकर और परस्पर समसप्तम, चतुर्थदशम वा तृतीय एकादश हो, तो सिंह, कन्या और मेष, मीन और तुला, कर्कट और राजयोटक मेलक होता है। यह राजयोटक मेलक सर्व- कुम्भ, वृष और धनु तथा विछा और मिथुन हो, तो इन श्रेष्ठ है ; वर और कन्याका योटक मेलक हो कर यदि | सव राश्यधिपतिके साथ परस्पर शत्रुता रहनेका अरि- उसके साथ ग्रहगण, वर्ण और ताराशुद्धि हो, तो दम्पती पडष्टक होता है। अरिषडष्टकमें विवाह होनेसे दम्पतीमें के नाना प्रकारके सुख ऐश्वर्यादि होते हैं। हमेशा कलह हुआ करता है। ___राजमार्तण्डमे लिखा है, कि वर और कन्याका राज षड़ष्टक और नवपश्चमादिमें इसी प्रकार प्रतिप्रसव योटक मेलक हो कर यदि दोनोंके राशि-अधिपतिमें | देखा जाता है। वरकी राशिसे कन्याकी राशि पञ्चम शत्रुता रहे वा वरके नक्षत्रसे कन्याकी नक्षत्रगणनामे | होनेसे वह कन्या मृतवत्सा किन्तु नवम होनेसे पुत्रवती विपद्, प्रत्यरि वा वधतारा हो दा दोनोंके वीच एकके और पतिवल्लभा होती है । वरकी राशिसे कन्याकी राशि- राक्षसगण और दूसरेके नरगण, नाड़ीनक्षत्र में वैध अथवा द्वितीय होनेसे कन्या धनहीना तथा द्वादश होनेसे धन-