पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/७५५

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योटक-योधपुर वतो होती है। वर और कन्याके राश्यधिप दोनों ग्रहों- योतु ( स० पु०) यूयते ज्ञायते अनेनेति यु बाहुलकात् तु। मे यदि मित्रता रहे, वा दोनोके राश्यधिप ग्रह एक ही परिमाण । तथा वरके नक्षत्रसे कन्याको नक्षतगणनामें ताराशुद्ध हो योन (सक्लो०) यूयतेऽनेनेति यु (दाम्नीशसयुयुजस्तुतु और कन्याकी राशि वरको राशिके अधीन हो, तो बड़- दसिसिचमिहपतदंशनत्र करणे । पा ३२।१८) इति हुन्, जोत । एक, नवपञ्चम और द्विद्वादशयोगमे भी विवाह हो सकता। वह बंधन जो जुएको वैलोंकी गरदनमें जोड़ता है, जोत । हैं। इसमें दम्पतीका शुभ होता है। योद्ध, (सं० पु० ) युध्यतीति युध-तृच । युद्धकर्ता, __ यदि वर और कन्याका एक नक्षत्र हो कर यदि एक लड़ाई करनेवाला। पर्याय-भर, योध । राशि हो, तो उस विवाहमें कन्या धनवती और पुत्रवती योद्धव्य (संक्ली०) युध तव्य । युद्धाई, जिससे युद्ध • होती है। फिर यदि पर और कन्याका एक नक्षत्र हो | करना हो। कर राशि भिन्न हो, तो भी दम्पतीको शुभ होता है और | योद्धा ( स० पु० ) योद्ध, देखो। यदि वर और कन्याका भिन्न नक्षत्र हो कर एक राशि योध (स० पु०) युध्यतीति युध-अच । योद्धा, सिपाही। हो, तो उसमे विवाह होने पर भी विशेष शुभ होता है। योधक (सं० पु०) युध्यतीति युध ण्वुल । योद्धा, राजमात पड) सिपाही। नाड़ीकूट–सर्पाकार लिनाड़ी चक्रमें अश्विनी आदि योधन (सं.क्ली० ) युध्यतेऽनेन करणे ल्युट् । १ युद्धको सत्ताईस नक्षत्रोंको निम्नलिखित नियोसे विन्यास सामग्री। २ युद्ध, रण, लड़ाई । करके वेधके अनुसार शुभाशुभ विचार करना होता है। योधनपुरतीर्थ ( स० क्ली० ) एक तीर्थाका नाम । अश्विनी; आर्द्रा, पुनर्वसु, उत्तरफल्गुनी, हस्ता, ज्येष्ठा, योधनीपुर ( स० क्ली० ) एक नगरका नाम । मूला, शतभिषा और पूर्वभाद्रपद ये ६ आद्यनाड़ी वा योधपुर-राजपूतानेके अन्तर्गत एक देशीय सामन्तराज्य । कोड़नाड़ी नक्षत्र हैं । भरणी, मृगशिरा, पुण्या, पूर्वफल्गुनी, . मारवाड़ देखो। चित्रा, अनुराधा, पूर्वाषाढ़ा, धनिष्ठा, उत्तरभाद्रपद ये योधपुर-योधपुर वा मारवाड़ सामन्तराज्यको राजधानी। मध्यनाड़ो नक्षत्र हैं। कृत्तिका, रोहिणी अश्लेपा, मघा, यह अक्षा० २६ १७ उ० तथा देशा० ७३.४ पू०के मध्य स्वाति, विशाखा, उत्तरापाढ़ा, श्रवणा और रेवती ये विस्तृत है । १४५६ ई०में योधरावने इसे बसाया । तभी- पृष्ठ-नाड़ी नक्षत्र हैं। वर और कन्या दोनोंके जन्मनक्षत्र राठोरवंशीय राजे यहीसे राजकार्य चलाते है। पूर्व- यदि एक नाडोस्थ हो, तो नाडीवेध हुआ करता है। इस पश्चिममे विस्तृत गण्डशैलमालाके दक्षिण ढालूदेशके नाड़ीवधमें विवाह वजनीय है। ऊपर यह नगर अवस्थित है। इसके पार्श्वदेशमें ८०० नाडीवेधका फल--वर और कन्या दोनोंके जन्मनक्षत्र फुट ऊंचे एक स्वतन्त्र पर्वतशिखर पर योधपुरका पहाड़ी आद्य नाडीस्थ होनेसे वरकी, पृष्ठनाडीस्थ कन्याकी और दुर्ग है । इसके मध्यस्थलमे महाराजका प्रासाद विद्यमान मध्यनाड़ीस्थ होनेसे दोनोंकी मृत्यु होती है। अतएव है। दुर्गसे सैकड़ों फुट नीचे यह नगर अवस्थित है। नाड़ीवेधमें कभी विवाह न करे। किन्तु यदि पर और। नगर राजप्रासाद देवमन्दिर आदिसे सुसजित हैं। कन्याकी एक राशि वा राजयोटकादि शुभ मेलक हो, तो वर्तमान योधपुर नगरसे तीन मील उत्तर मारवाड़के नाड़ीवेधमें विवाह हो सकता है। इस पर श्रीपति कहते परिहार-राजवंशकी प्राचीन राजधानी मन्दोर नगरका हैं, कि वर और कन्याकी यदि मित्रता रहे अथवा दोनों ध्वंसावशेष देखने में आता है । मन्दारमें आज भी प्राचीन के राश्यधिप एक हो तथा वरको ताराशद्धि और वश्य-] वंशके अनेक स्मृति-निदर्शन इधर उधर पड़े हैं। ___मन्दोर देखो। राशि हो, तो नाडोवेधमें विवाह दिया जा सकता है।। (श्रीपतिस०) योधपुर राजवंशका संक्षिप्त इतिहास और प्राचीन इसी नियमसे योटक मिलन करके विवाह देना कीर्तिका उल्लेख मारवाड़ शब्दमें किया जा चुका है। मारवाड़ देखो। होता है।