पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/७६०

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योनिरोग ७५७. योनिकन्दके लक्षण-दिवानिद्रा, अतिरिक्त कोध, के चूरको दूधके साथ तथों पुत्रश्चीव पक्षका मूल, विष्णु- अधिक व्यायाम, अतिशय मैथुन तथा किसी भी कारण. ' कान्ता और लिङ्गिनो इन्हें एक साथ पीस कर माठ दिन से योनिदेश घायल हो जाय, तो वातादि तीनों दोष । पान करनेसे गर्भ होता है। 'कुपित हो कर योनिमें पीप-रक्तकी तरह वर्णविशिष्ट योनिरोगमें पहले स्नेहादि प्रयोग, उदरचस्ति, अभ्यङ्ग, और मन्दार फलकी तरह आकृतियुक्त एक प्रकारका परिषेक, प्रलेप और पिचुधारण कर्तव्य है। मांसकन्द उत्पन्न होता है। इसे योनिकन्द कहते हैं। तगरपादुका, कण्टकारो, कुट, सैन्धव और देवदारु वायुकी अधिकता रहनेसे यह कन्द रुक्ष, विवर्ण इनके चूरसे तिलनेलको पका कर उसमें रुई भिगोवे । और फटा फटा दागयुक्त हो जाता है। पित्तकी अधि- वाद उस रुईको योनिमे रखनेसे विप्लुता योनिकी वेदना कता होनेसे कन्द लाल हो जाता और उसमें जलन देतो जाती रहती है। है, साथ साथ ज्वर भी आता है। श्लेष्माकी अधिकता वातला, कर्कशा, स्तब्धा और अल्पस्पर्शा योनिमें वह नीला और कण्डयुक्त होता है तथा त्रिदोषकी अधि- ) भी इसी प्रकार पिचुधारण कर्तव्य है। संवृतायोनि- कतामें उक्त सभी लक्षण दिखाई देते हैं। रोगाकात स्त्रीको निर्वात गृह में रख कर योनिमे योनिरोगकी चिकित्सा। कुम्भोस्वेद प्रदान तथा पूर्वोक्त तैल द्वारा पिचका जिस स्त्रीका आतव नष्ट हो गया है. वह प्रतिदिन प्रयोग करे। मछली, कांजी, तिल, उड़द, मट्ठा और दहीका सेवन ' पित्तला योनिरोगमें परिपेक, अभ्यङ्ग और पिचु तथा · करे। तितलौकीका वीया, दन्ती, पिप्पली, गुड़, मैन- पित्तन शीतलकिया और स्नेहार्थ घृतका प्रयोग करना . फल, सुरादोज और यवक्षार, इनका वरावर वरावर भाग होता है। प्रसिनी योनिरोगम घृतम्रक्षण और क्षीर ले कर थूहरके दूध में पोसे, पीछे उसकी वत्ती बना कर द्वारा स्वेदका प्रयोग करके वेशवार द्वारा आच्छादित योनिमें देनेसे आर्तव निकलने लगता है। लता-फटकी । कर बन्धन करना होगा ( साँठ मिर्च, पीपल, धनिया, पत्ता, स्वर्जिकाक्षार, वच और शाल इन्हें ठंढे दूधसे । मंगरेला, अनार और पिपरामूल इनके मेलको वेशवार पीस कर पिलानेसे तीन दिनके अन्दर निश्चय रज- कहते हैं। ) योनिदाहकालमें चीनी मिला हुमा आँवले. निकलने लगेगा। के रस वा सूर्यावर्त वृक्षके मूलको चावल के धोए जलके बन्ध्याचिकित्सा-सफेद और लाल विजवंद, मुलेठो, साथ पान करे। योनिस यदि पोप निकलती हो, तो कर्करयङ्गो और नागकेशर इन्हें मधु. दूध और धोके | सैन्धव और गोमूत्रके साथ पीसे हुए नीमके पत्तोंसे साथ पीनेसे बंध्यानारीके गर्भ होता है। असगंधके योनि भर दे। यानि पिच्छिल और दुर्गन्धयुक्त होनेसे . काढ़े के साथ दूधको पका कर दूध रहते उसे उतार ले. वच, महस, परवल, प्रियंगु और निम्यचूर्ण अथवा ऋतुस्नान के बाद प्रतिदिन सवेरे उस काढे को धोके साथ श्योनाकादिका काढ़ा करके उससे योनिको भर दे। पोये, तो बंध्यारोग विनष्ट होता है । पुण्यानक्षत्र में लक्षणा- पीपल, मरिच, उड़द, सोयाँ, कुट और सैन्धव इनसे मूलको उखाड़ कर तुस्नानके बाद घृतकुमारीके रस- प्रदेशिनी अंगुलिके समान लम्बी और मोटो बत्तो वना से पीस कर दूधके साथ पीनेसे निश्चय गर्भ रहेगा। कर योनिमें प्रयोग करनेसे योनिका श्लेष्मविकार नष्ट पोतम्झिएटोका मूल, धाइफल, चटका कुर और नोलो- होता है। कणिनी योनिरोग निम्वपत्रादि शोधनद्रव्य- 'त्पल इन्हें दूधके साथ तथा गजपीपल, जीरा, श्वेतपुष्पा को वनी हुई वत्ती देनी होती है। गुलञ्च, त्रिफला और और शरपुडा इन्हें समान भागमें पीस कर जलके साथ दन्तोका काढ़ा यना कर धारापातमें प्रक्षालन करनेसे पीनेसे गर्भ जरूर रहता है। एक पलाशपत्रको दूधौ | योनिगत कण्डू जाता रहता है। खैरकी लकड़ी, हरें, पीस कर पान करनेसे वीर्यवान् पुत्र जन्म लेता है। जायफल, नीम और सुपारी इनके चूरको मूगके जूसके शूकशिम्बीका मूल, कपित्थमजा और लिङ्गिनो वीज इन-1 साथ मिला कर कपड़े से छान ले, पीछे उस जसको Vol, XVIII, 190