पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/७६१

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७५८ योनिरोग योनिमें डालनेसे योनि सङ्कीर्ण हो जाती है, और ' काढ़े से योनिसेक करना होगा! तगरपादुका, वार्ताकु, उससे जलस्राव नहीं होता । शूकशिम्बीके मूलका | कुट, सैन्धव और देवदारु इनके चूरके साथ यथाविधि काढ़ा बना कर प्रक्षालन करनेसे योनि सङ्कीर्ण हो। तैलपाक करे, पीछे उस तेलमें रूई भिगो कर योनिमें जाती है। रखे। पित्तप्रधान योनिरोगमें पित्तनाशक चिकित्सा जोरा, मंगरेला, पीपल, करेला, तुलसी, वच, अडूस, तथा घृताक्त पिचुको योनिमें प्रवेश कराना आवश्यक है। सैन्धव, यवक्षार और यमानो इनके चूरको घोमें थोड़ा श्लेष्मप्रधान योनिरोगमें रुक्ष और उष्णवीर्य औषधका भुन कर चीनोके साथ मोदक वनावे । अग्निके वलानुसार प्रयोग करे। पोपल, मिर्च, उड़द, सोयां, कुर और उपयुक्त मात्रामे उसका सेवन करनेसे योनिरोग नष्ट सैन्धव इन्हें पीस कर तर्जनी उंगलोके समान वत्तो वनो होता है, चूहेक मांसके काढ़े के साथ तिलतैलको पका योनिमें धारण करें। कर्णिका नामक योनिरोगमें कुट, कर उसमें रूई भिगो कर योनिमें धारण करनेसे योनि. पीपल, मकवनका पत्ता और सैन्धव इन्हें वकरीके मूत- रोग निश्चय ही विनष्ट होता है। में पीस कर वत्तो वनावे। पोछे उस वत्तोको योनिमें घो ४ सेर, चूरके लिये त्रिफला, नोलझिएटो, पीत- प्रवेश करनेसे रोग अवश्य आरोग्य होगा। सोयां और मिण्टो, गुलञ्च, पुनर्नवा, हरिद्रा, दारुहरिद्रा, रास्ना वेरकी पत्तीको पीस कर तिल तैलके साथ मिला प्रलेप मेद और शतमूली कुल मिला कर एक सेर, दूध १६ सेर, । देनेसे विदीर्ण योनि प्रशमित होती है। करेलेके मूलको यथाविधान इन सब द्रव्यों द्वारा घृत पाक करके अग्नि पीस कर प्रलेप देनेसे अन्तःप्रविष्ट योनि वहिर्गत होती वलानुसार उपयुक्त मात्रामें सेवन करनेसे योनिरोग बहुत है.। प्रस्र सिनो नामक योनिरोगीं चूहेको चर्वी लगाने. जल्द दूर होता है। से वह पुनः अपने स्थान पर चली आती है। योनिकी . जीववत्सा और एकवर्णा गायके दूधका घी चार! शिथिलता चूर करनेके लिये वच, नोलोत्पल, कुट, सेर, चूरके लिये मंजीठ, मुलेठी, कुट, त्रिफला, चीनी, मिर्च, असगंध और हल्दी इन्हें एक साथ मिला कर विजवंद, मेद, महामेद, क्षीरकंकोली, कंकाली, असगंध- । प्रलेप दे तथा कस्तूरी, जायफल और कपूर अथवा मदन का मूल, यमानी, हरिद्रा, दारुहरिद्रा, प्रियंगु, कटकी, फल और कपूरको मधुके साथ मिला कर योनिमें भर नीलोत्पल, कुमुद, द्राक्षा, श्वेत और रक्तचन्दन तथा / दे। यानिकी दुर्गन्ध बंद करनेके लिये माम, जामुन कैथ, लक्षणामूल, प्रत्येक वस्तु आध छटांक, शतमूलीका रस खट्टा नीबू और बेल इनके कच्चे पत्ते, मुलेठी, और १६ सेर, और दूध १६ सेर । इस घृतको यथाविधान वन मालतीफूल, इनका चूर्णके साथ यथाविधि घृतपाक गोइठेको आगमें पका कर पान करनेसे शरीर पुष्ट होता करके वह घृताक्त रुइ योनिमें धारण करे। वन्ध्यारोग है। इससे सभी प्रकारके रजोदोष और योनिदोष आदि दूर करनेके लिये असगंधके काढ़े में दूधको पका कर विनष्ट होते हैं। उसमें घृतका प्रलेप दे। पीछे ऋतुस्नान के बाद उसे योनिकन्दकी चिकित्सा-गेमिट्टी, आम्रवीज, विडङ संवन करे। पीतझिएटोको मूल, धवफूल, घटका अंकुर हरिद्रा, रसाजन और कटफल इनके चूरको मधुके साथ | और नीलोत्पल, इन्हें दूधके साथ पीस कर सेवन करने. पोनिमे भर देनेसे तथा त्रिफलाके काढ़े में इन सव | से अथवा श्वत विजवंद, चीनी, मुलेठी, रक्त विजवंदा चूर्ण और मधुको मिला कर प्रक्षालन करनेसे -वटका अंकुर और नागकेशर इन्हें मधुमें पीस कर दूध योनिकन्द नष्ट होता हैं। और घोके साथ सेवन करनेसे वन्ध्यारोग दूर होता है। . ( भावप्रकाश योनिरोगाधिकार) कन्दरोग नष्ट करने के लिये त्रिफलाके काढ़े में मधु बाल सुश्रुतमें इसकी चिकित्साका विषय इस प्रकार कर उससे योनि साफ करें। गेरूमिट्टी, आम्रकेशी, . लिखा है, वातप्रधान योनिरोगमें वायुनाशक घृतादि-विडङ्ग, हरिद्रा, रसाजन और कटफल इनके चूर्णको का सेवन करावे; गुलञ्च, त्रिफला और दन्ती इनके । मधुके साथ मिला कर कन्दमें प्रलेप दे। बहेके मांस-