पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/७६३

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७६० योस-यौजनिक योस (सं० पु०) रोग या भयको हटाना या दूर करना।। शब्दको यौगिक कहते हैं । यह यौनिक तीन प्रकारका यौ-आराकानके पूर्व में रहनेवाली एक पहाड़ी जाति । है.योगरूढ़, रूढ़ और यौगिक। (अनंङ्कारको० २ किरण) पगानके पश्चिमस्थ ख्येन्दवन नदीतटसे ले कर आराकान आदितेयादि शब्द यौगिक है। 'अदितेरपत्य पुमान्'. पर्वतमाला पर्यन्त स्थानों में इस जातिका वास है। इनकी अदिति शब्दके उत्तर ढक प्रत्यय करको यह शब्द बना है भाषा बहुत कुछ ब्रह्मदेशकी भाषाले मिलती जुलती है। यहां पर प्रकृति अदिति और प्रत्य अपत्यार्थ ढका है, यौकरीय ( स० त्रि०) यूकर (भ्वादिभ्यश्छण् । पा योगजका अर्थ अदितिका अपत्य यानी पुत्र होता है। ४।२।८०) इति चतुषु अर्थेषु छण.। १-यूकरसे निवृत्त। यहां पर केवल योगार्थ मालूम होनेसे यह शब्द यौगिक २ शूकरका अदूरभव। ३ यूकरदेशका रहनेवाला। ४ यूकर देशयुक्त। ___ जहां पर योगलभ्यर्थ मात्रका बोधक होता है अर्थात् यौक्तस व (सं क्ली० ) सामभेद । प्रकृति के साथ प्रत्यय योग करके जहाँ योगलभ्य अर्थका योक्ताश्व (स क्लो० ) सामभेद । . बोध होता है, उसीको यौगिक कहते हैं। यह तीन यौक्तिक (सं० पु० ) युक्ति करोतीति युक्त-घम् । १ नम:. प्रकारका है, समास, कृत् और तद्धितान्त। समासान्त सचिव, विनोद या क्रीडाका साथी। (त्रि.) २ युक्तिः दो पदको मिला कर जहां योगार्थ लाभ होता है उसे शुक्त, जो युक्तिके अनुसार ठीक हो। समासयौगिक ; जहां प्रकृतिके साथ कृत् प्रत्यय करके योग ( स० पु०) योगदर्शन-मतावलम्बी, वह जो योग । योगार्थ बोध होता है वहां कृद्यौगिक और तद्धित प्रत्यय दर्शनके मतके अनुसार चलता हो। ' द्वारा इस प्रकार अर्थबोध होनेसे उसे तद्धित-यौगिक यौगक (स० त्रि०) योगस्यायमिति योग अण, स्वाथै कन् । ' कहते हैं। योगसम्बन्धी, योगका। नैयायिकोंके मतसे अर्थवोधक शक्तिविशिष्ट होनेसे यौगन्धर ( स० पु० । गुगन्धर ( विभाषा कुरुयुगन्धराभ्यां । उसे पद कहते हैं। यह चार प्रकारका है-यौगिक, रूढ़, पा ४२११३० ) बुञ् । युगन्धरवंशीय । योगरूढ़ और यौगिकरूढ़। . यौगन्धरक (स: पु०) यौगन्धर देखा। । जहां अवयवार्थ बोध होता है, वहां उसे यौगिक कहते यौगन्धरायण ( स० पु०) युगन्धरस्य गोलापत्यं, युग-, हैं, जैसे, पाचकादि। जो अवयवशक्ति निरपेक्ष हो कर न्धर (नडादिभ्यः फक। पा ४११६६ ) इति फक। ., सभी शक्तिमात्र द्वारा वोध होता है, वह रूढ़ है, जैसे- वह जो युगन्धरके गोलमें उत्पन्न हुआ हो। २ राजा गोघटादि जहां अवयवशक्तिविषयक सभी शक्ति विद्य- उदयनके एक मन्त्रीका नाम। मान रह कर अर्थका वोध हो वहां योगरूढ़ होता है जैसे, यौगन्धरायणीय (स.नि.) यौगन्धरायण-सम्बन्धी। ' पङ्कजादि। जहां अवयवार्थ और रूढ्यर्थ ये दोनों ही यौगन्धर (स पु०) युगन्धर ( साल्वावयवेति । पा) स्वतन्त्रभावमें मालूम हों, वहां यौगिकरूढ़ होता है, जैसे, ४१।१७३ ) इति अपत्याथें इन्। १ युगन्धरके गोतमें उद्भिदादि । ( भाषापरि० सिद्धान्तमुक्ता० ८०) . . उत्पन्न पुरुष । २ युगन्धरोंके राजा। २ अगुरु, अगर। योगपद (स क्ली०) युगपद भावमें, समकालीन । यौजनशतिक ( स त्रि०) योजन-शतं गच्छतीति योजन- योगपद्य (स' क्लो०) युजपद्भाव, समकालोन। शत (क्रोश-शतयोजनशतयोरूपसंख्यान । पा ५११७४) इत्यस्य योगवरन (स० क्ली० ) युगवरत्राणां समूहः (खण्डिकादि- वार्तिकोकया ठम्। योजनशत-गमनकर्ता, सात योजन भ्यश्च । पा ४१२२४५) इति समूहाथै अञ् । युगवरनसमूह ।। | जानेवाला। यौगिक (सं०नि०) योगाय प्रभक्तीति योग (योगाद् यच्च । यौजनिक ( स० वि० ) योजनं गच्छतीति योजन (योजन पा। ५१।१०२) इति ठञ् प्रकृति प्रत्ययादि निष्पन्न अर्थ- गच्छति । पा १/१७४ ) इति ठञ् । एक पोजन गमन- वाचक शब्द, योग अर्थात् प्रत्यय द्वारा निष्पन्न अर्थावाचक | कर्ता, एक योजन तक जानेवाला ।