पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/७६५

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७६२ यौधेयक-यौवनाश्वि प्रसिद्ध हैं। ब्रह्मपुराण और हरिवंशमें उशोनरके पुत्र | समाप्ति पर वृद्धावस्था आती है। इस अवस्थाके अच्छी नृगको ही यौधेयोंका आदिपुरुष बताया है। राजा नृग तरह आ चुकने पर पायः शारीरिक वाढ रुक जाती है शिविके छोटे भाई थे। . और शरीर बलवान् तथा हृष्ट-पुष्ट हो जाता है। साधा- वत्तमानकालमें यौधेयोंकी जो मुद्रा पाई गई है उनमें | रणतः यह अवस्था १६ वर्षसे ले कर ६० वर्ष तक मानी से छोटी १ली सदीमें और उनसे बड़ी ३री सदीमें ढाली जातो है। गई है। बडो मुद्रामें "जय यौधेयगणस्य" लिपि अङ्कित "भाषोड़शाद्भवेद्वालस्तरुणस्तत उच्यते । है । यौधेयराज ब्रह्मणदेवको रौप्यमुद्राके विषयकी वृद्धः स्यात् ससतेरुद्ध वर्षीयान् नवतेः परम् ॥" (स्मृति) आलोचना करनेसे उन्हें स्पष्ट ब्रह्मण्यधर्मसेवी कह नवयौवन लक्षण- सकते हैं। "दरोद्भिन्नस्तन किञ्चित् चलाक्षं मेदुरस्मितं । यौधेयक (स पु०) यौधेय जाति । ____ मनागभिस्फूरद्भाव नव्यं यौवनमुच्यते ॥" (उन्जलनीलमणि यौन (सं० क्ली० ) योनेरिदं योनि-अण् । १ योनिसम्बन्धा- ३ जोबन देखो। ४ युवतियोंका दल। धीन पाप। इस पापसे हमेशा पतित होना पड़ता है। | यौवनक ( स० क्ली० ) यौवन, जवानो। "संवत्सरेया पतति पतितेन सहाचरन् । यौवनकण्टक ( स० पु० क्लो०) यौवने कण्टकभिव दुःख. याजनाध्यापनाद् यौनात् सद्यो हि शयनाशनात् ॥" 'दत्वात्। युवगण्ड, मुंहामा। .वौधायन ) । यौवनपिड़का ( स० स्त्री० ) यौवने पिड़का । मुंहासा इसका प्रायश्चित्त द्वादशवार्षिक व्रत है। २ उत्पत्तिः जो युवावस्थामें होता है। कारण । (त्रि०)३ योनिसंम्बन्धो, योनिका । (पु०).४ यौवनप्राप्त (सं० पु. क्लो०) यौवनका शेष समय। उत्तरापथकी एक प्राचीन जातिका नाम । इसका उल्लेख यौवनमत्त ( स० त्रि०) यौवनगर्वित, जवानीका घमंड महाभारतमें है। कदाचित् ये लोग यवन जातिके थे।' करनेवाला। "उत्तरापथजन्मानः कीर्तयिष्यामि तानपि। यौवनमत्ता (सं० स्त्री०) एक प्रकारका छन्द । यह चार यौनकाम्बोजगान्धाराः किराता वर्वरः सह ॥" चरणका होता है और प्रत्येक चरणमें १६ अक्षर (भारत ११२०७४३) होते हैं । उसके १, ४, ५, ६, ७,4६, १०, ११, १२, यौप (संलि०) यूपकाष्ठ सम्बन्धी । १५, १६, वर्ण लघु और चार वर्ण गुरु होते हैं। यौप्य (सत्रि०) यूप (संकाशादिभ्यो एयः । पा ४।२।८०) यौवनलक्षण (स' क्लो०) यौवनस्य लक्षणं चिह्न। १ इति प्य। यूपकै निकट। लावण्य, नमक । २ तारुण्यचिह्न, जवानी। ३ स्तन, यौयुधानि (सं० पु० ) युयुधानके गोत्रमें उत्पन्न पुरुष । त्रियोंको छाती। यौवत (सं० क्ली०) युवतीनां समूहः युवति ( युवतीभिक्षा यौवनवत् (स० वि०) यौवनं विद्यतेऽस्य मतुप मस्य व । दिभ्योऽण । पा ४।२।३८ ) इति अण वद्भावश्च । १ यौवनविशिष्ट, जवान । युवतिसमूह, स्त्रियोंका दल । २ लास्य नृत्यका दूसरा यौवनाधिरूढ़ा ( स० वि०) युवती, जवान । भेद, वह नृत्य जिसमें वहुत-सी नटियां मिल कर नाचती यौवनाश्व (स० पु०) युवनाश्वस्यापत्यमिति युवनाश्व- हो। ३ परिमाण। अण। मान्धाता राजाका एक नाम । मान्धाता देखो। यौवतेय ( स० पु० ) युवतीका पुत्र ।' . | "यौवनाश्वोऽथ मान्धाता चक्रवर्त्यवनीप्रभुः । यौवन । सं० क्ली० ) युवन् ( हायनान्तयुवादिभ्योऽण । पा| सप्तद्वीपवतीमेकः शशासाच्युततेजसा ।" (भाग०६६ म०) ६।१।१३० ) इति अण्। १ युवा होनेका भाव, जवानी। यौवनाश्वक ( स० पु०) यौवनाश्व स्वार्थे कन् । मान्धातृ- पर्याय-तारुण्य, वयस्। २ अवस्थाका वह मध्य भाग राज । जो वाल्यावस्थाके उपरान्त आरम्भ होता है और जिसकी यौवनाश्वि ( स० पु.) युवनाश्व वंशज होनेका कारण