पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/९२

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मुद्रालिपि-मुधोल सम्बन्ध में फिर कभी भी कोई कानून नहीं निकला। मुधा (सं० मध्य०) मुह्यतीति मुह बाहुलकात् का, पृषो- लार्ड लैन्सडानके शासनकाल में कोन्सेएटविल और दरादित्वात् हस्य ध। १ घ्यर्थ, वेफायदा। पर्याय- मणिपुर-युद्ध संक्रान्त घटनापरम्पराको आलोचना कर व्यर्थक, वृथा, निष्फल, निरर्थक। देशो सवाद पत्नोंने भारत गवर्मे एटके प्रति दोपारोपण "मुधाज्ञानं मुधावृत्त मुधासेवा मुधाश्रमः। किया। इस कारण मुद्रायन्त्रको स्वाधीनताको लुप्त कर __एवं यो युक्तधर्मः स्यात् सोऽमुत्रात्यन्तरनुते ॥" Sedition Act नामक नया कानून निकाला गया । (महाभारत १४३३७.४ ) तमोसे सघादपत्रों की भाषा और भावविकाशमें बहुत (त्रि०) २ व्यर्थका, निष्प्रयोजन ! ३ असत्, मिथ्या। कुछ चैलक्षण्य देखा जाता है। मुधोल-१ वम्बई प्रेसिडेन्सोके महाराष्ट्र प्रदेशके अन्तर्गत मुद्रालिपि (सं० पु.) मुद्रया लिपिः। पांच प्रकारको एक देशी सामन्तराज्य । यह अक्षा० १६७ से १६ लिपियोंमेंसे एक लिपि । २७ उ० तथा देशा० ७५ से ७५ ३२ पू०के मध्य 'मुद्रालिपिः शिल्पलिपिलि पिलेखनिसम्भवा। अवस्थित है। भूपरिमाण ३६८ वर्गमोल और जन- गुपिडकाधूण सम्भूता लिपयः पञ्चधा स्मृताः। संख्या ६० हजारसे ऊपर है। इसके उत्तरमें जमखएडी- एताभिलिपिभिव्यप्तिा धरित्री शुभदा हर ॥" (बाराहीतन्त्र) राज्य, पूर्वमें वागलकोट तालुक, दक्षिण में बेलगाम, वीजा- मुद्रालिपि, शिल्पलिपि, लेखनिलिपि, गुण्डिकालिपि पुर जिला और कोल्हापुर राज्य तथा पश्चिममें बेलगाम और घूणलिपि ये पांच प्रकारकी लिपियां हैं। इनमेंसे जिलेका गोकाक तालुक है। इस राज्यमें ३ शहर और मुद्रालिपि-पाठ्य और धार्य है अर्थात् इसे पाठ तथा धारण ८१ ग्राम लगते हैं। करनेमें कोई दोष नहीं होता। समूचा राज्य समतल है। कहीं कहीं नीचा ऊँचा "लेखन्या लिखितं विप्रै मुद्राभिरक्षितञ्च यत् । पहाड़ी भूभाग और गण्डशैलमाला नजर आती है। शिल्पादिनिर्मितं यच्च पाठ्य धार्यश्च सर्वदा ॥" समतलक्षेत्रको मिट्टी कालो और उपजाऊ है। पहाड़ी (मुण्डमालातन्त्र) भूभाग लोहितवर्ण प्रस्तरमय बालुकणसे परिपूर्ण २हरफ। है। इस स्थानको 'माल' कहते हैं। इस भागमें अनाज मुद्राविज्ञान (सं.पु०) मुद्रातत्व देखो। खूब लगता है। मुद्राशङ्ख (सं० क्लो० ) खनामख्यात खनिज पदार्थ, मुद्रा एकमात्र घाटप्रभा नदी ही इस राज्य हो कर शंख । बहती है। वर्षाऋतुमें जव नदो जलसे परिपूर्ण हो जाती मुदाशास्त्र (सं० पु० ) मुद्रातत्त्व देखो। है, तव आस पासके स्थानों में खेनीवारी शुरू होती है। मुद्रिक ( सं० स्त्री० ) मुद्रिका देखो। दूसरे समय सभी स्थानों में विस्तीर्ण मरुभूमि-सा मालूम मुद्रिका (सं० स्त्री०) मुद्रा स्वार्थे कन, स्त्रियां टाप । १ स्वर्ण देता है। स्थानविशेषमें कृपक कूप वा तड़ागसे जल रौप्यादि-निर्मित मुद्रा, सिका, रुपया। निकाल कर खेतीवारीका काम करते हैं। चैत्र वैशाखमें "सौवर्णी राजतीं ताम्रीमायसीं वा सुशोभिताम् । यहां भीषण गर्मी पड़ती है। सलिलेन सकृद्धीतां प्रक्षिपेत् तत्र मुद्रिकाम् ॥" (मिताक्षरा) ___ यहाके सरदार 'घोरपड़े' उपाधिसे भूपित होने पर २ अंगूठी । ३ कुशकी वनो हुई अंगूठो जो पितृ-| भी महाराष्ट्रकेशरी शिवाजीके पूर्वपुरुषसे अपनी वंश- कार्यमें अनामिकामे पहनी जाती है, पविली। लताकी कल्पना कर अपनेको भोंसले-वंशसम्भूत और मुद्रित (सं० त्रि०) मुद्रा मुद्रणमस्य जातेति मुद्रा इतन् । क्षत्रिय वतलाते है। प्रबाद है, कि इस वंशके आदि- १ अप्रफुल्ल, मुंदा हुआ। पर्याय-संकुचित, निद्राण, | पुरुषने "घोरपड़े” (बहुरूपी ) नामक सरीसृपके शरीर- मिलित ।२ मुद्राङ्कित, मुद्रण किया हुआ, छपा हुआ। ३ | में सूता वांध कर एक दुर्भेद्य दुर्गको जीता था, इसीसे परित्यक्त, छोड़ा हुआ। | उस वंशको 'घोरपड़े' उपाधि हुई है। Vol, XVIII. 23