पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष अष्टादश भाग.djvu/९४

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मुनि-मुनिखजूरिका वेदपुराणादिमें जिन सव ऋषियों के नाम लिखे हैं . मुनियों के नाम देखनमें आते हैं। विस्तार हो जाने के उनमें कितने विशेष विशेष मुनि सबसे पहले ब्रह्माके भयसे उनके नाम यहां पर नहीं दिये गये। नाना अगोसे उत्पन्न हुए थे। ब्रह्मवैवर्तपुराणके ब्रह्म- मरीचि, नारद, कदम, अत्रि, दक्ष, वशिष्ट आदि खण्डमें लिखा है, ब्रह्माके दाहिने कानसे पुरस्त्य, मुनियोंको नामनिरुक्ति ब्रह्मवैवर्तपुराणके ब्रह्मखएडके वायें कानसे पुलह, दाहिनो आंम्बसे अत्रि, वाई से क्रनु, वीसवें अध्यायमें सविस्तार लिखी है। नाकसे अरणि और अङ्गिरा, मुखसे रुचि, वाम पार्श्वसे किसी काव्य वा नाटकादिमें मुनियोंका आमं भृगु, दक्षिण पार्श्वसे दक्ष, छायासे कई म, नाभिसे वर्णन करते समय वहाँको अतिथिसेवा, हरिणविश्वास, पश्चशिस्त्र, वक्षसे बोढू, कण्ठसे नारद, स्कन्धसे मरोधि, हिस्रजन्तुओंका प्रशान्त भाव, यज्ञधूम, मुनिवालक, द्रुम- गलेसे आपस्तम्ब, जीभसे वशिष्ठ, ओठसे प्रचेता. घाम-' सेक, वल्कल और वृक्ष अादिका वर्णन करना होता है। कुक्षिसे हस तथा दक्षिण कुक्षिसे यति मुनि उत्पन्न (फविकल्पलता ) हुए । ह्माने अपने अगसे इन सब पुत्रोंको उत्पादन कर २ जिन । ३ प्रियालवृक्ष, पयारका पेड़। ४ पीछे उनके हाथ प्रजा सृष्टिका भार सौंपा। पलाशवृक्ष, ढाकका पेड़। ५ दमनक, दौना । ६ सात- घायुपुराणमें लिखा है,--ब्रह्मा जब गयासुरशिरमें की संख्या । ७ अष्टवसुके अन्तर्गत आप नामक वसुंके यज्ञानुष्ठान करते थे, तब उन्होंने यज्ञनिर्वाहार्थ अपने , एक पुत्रका नाम । मानससे कुछ मुनियों की सृष्टि की थी। उन सव मानस 'आपस्य पुत्रो वैतण्ड्यः श्रमशान्तो मुनिस्तथा ॥" सूट मुनियोंके नाम ये हैं, अग्निशर्मा, अमृत, शौनक, (हरिवंश भवि० ३४०) जाजलि, मृदु, कुमुख, वेदकौण्डिन्य, हारीत, कश्यप, ८ क्रौञ्च द्वीगके एक देशका नाम । रुप, गर्ग, कौशिक, वाशिष्ट, भार्गव, वृद्धपराशर, कण्व, (मत्स्यपु० १२१८३-८५) माएडध्य, श्रुतिकेवल, श्वे, सुनाल, दमन, सुहोत्र, ६ द्युतिमानके सबसे बड़े पुत्रका नाम । . (मार्कण्डेयपु० ५३२२) कक्ष, लोगाशि, जैगोषव्य, दधि, पञ्चमुख, ऋषभ, कर्क, कामायन, गोभिल, उन, जटामाली, चाटुहास; दारुण, १० कुरुके एक पुत्रका नाम। 'अविक्षितमभिष्वस्त तथा चैत्ररथं मुनिम्॥" आत्रेय, अङ्गिरस, औपमन्यु, गोकर्ण, गुहाबास, शिखंडी, (महाभा० १४६४४६) सुपालक, गौतम और वेदशिरा। ११ एक आभिधानिक । शोरखामो अमरकोषको इसके अतिरिक्त वेदपुराणादिमें और भी कितने | टोकामें कात्यायनका इसी नामसे लिखा है । १२ भारतका एक नाम ।

  • 'पुलस्त्यो दक्षकर्णाञ्च पुलहो वामकर्णतः ।

(स्रो० ) १३ दक्षकी कन्या जो कश्यपको सबसे बड़ी दक्षनेत्रात्तथात्रिश्च वामनेत्रात् ऋतुः स्वयं ॥ स्त्री थी। अरगिण सिकारन्ध्रात् अङ्गिराश्च मुखाद्रुचिः । "अदितिदितिर्दनुः काला दनायुः सिंहिका तथा। . भृगुष यामपार्थाच्च दक्षो दक्षिणपार्श्वतः ।। क्रॉधा प्राधा च विश्वा च दिनता कपिला मुनिः।" छायायाः कर्दमो जातो नाभः पञ्चशिखस्तथा। ___(महाभारत १॥६५॥१२) वक्षसश्चैव वोदक्ष कराठदेशाच्च नारदः॥ मुनिकर्ष-सह्याद्रिवर्णित राजभेद । मरीचिः स्कन्धदेशाच्च आपस्तम्बस्तथा गलात् । मुनिका (सं० स्त्री० ) ब्राह्मीका क्षप। वशिष्ठो रसनादेशात् प्रचेता अधरोष्ठतः । मुनिकेश (सं० त्रि.) मुनिकी तरह जया कलापधारी । हंसर वामकुक्षेश्च इनकुतेर्यतिः स्वयम् । मुनिखज्जू रिका ( सं० स्त्री०) मुनिमिया खजू रिका इति दृष्टिं विधातुश्च विधिश्वकाराशा सुतानपि ॥" . मध्यपदलोपिकमधा । स्त्रज्जरांविशेष, एक प्रकारको (ब्रह्मवै० ब्रह्मख० ८ १०) । खजर। - -