पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/१०१

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

वातोम-वाद पतिमी (स० स्त्री ) ग्यारह अक्षरों का एक वर्ण। इसमौ । यह सर्वसम्मत नहीं है। अधिश लोग दाम्पत्य रतिफे गंगण, भंगण, तगण और अन्तमें दो गुरु होते हैं। सिवा और प्रकारके रति भाषको 'भाव' ही मानते हैं। यातोल्वन ( स०नि०.) यानेन उल्यगः । १ वाताधिक, | वात्सशाल (सं० पु० ) वरस शालासम्बन्धीय । घायुप्रधान । (पु.) एक प्रकारका सन्निपातज्वर। वारिस (सं० पु० ) वत्सिके गोनापत्य । इसमे रोगीको ध्यास, खांसी, भ्रम और मूर्छा होती है । (ऐतरेपना० ६.२४) तथा वह प्रलाप करता है। उसकी पमलियों में पोड़ा | वात्सी (सं० सी० ) पात्स्य-शाखासे उत्पन्न स्त्री। होती है, वह भाई अधिक लेता है और उसके मुंहका वात्सीपुत्र (सं० पु०) १ आचार्यभेद । (शतपथना० स्वाद कसैला रहता है। यह यातोल्वन ज्यर बहुत भया. १६३१) २ नापित, नाई। न होता है। विशेष विवरया ज्वरं शब्दमें देखा। यात्सीपुवीय (सं० पु०) वात्सीपुत्रके शाखाध्यायी व्यक्ति- वाश्य ( स० लि.)१ घायु सम्बन्धीय । २ वायुभव || मान। . .:: . . . . (शुक्लयजुः १६३६) वात्सीमाण्डवीपुत (संपु०) आचार्यभेद । यात्यों ( स्त्री) पातानां समूहः । यात (पाशादिभ्यो यः ।। (शतपयमा० १४।६।३० ) ___पा ४२२YE ) इति य स्त्रियां राप्। वातसमूह । वात्सीय (सं० पु०) पैदिक शाखाभेद । चौरस (सं० पु.) यरस प्रण। ऋषिमेद, गोत्र-प्रव- वात्सोद्धरण (सं०नि०) वत्सोद्धरण सम्बन्धीय । तंक ऋषि । (क्लो०)२ सामभेदं । (पा ४१३१६३) पारसक (सं० लो०) वत्सानां समूहा पत्स (गोत्रोक्षोप्ट्रोति । वारस्य (सं० पु०) यत्स्यगोलापत्यं घरस (गर्गादिभ्या यम् । पा ४२२३६) इति युन् । १ यत्म-समूह । ( अमर ) वत्सक- पा ४११।१०५) इति यम् । १ मुनिविशेष, यत्सका स्वेदमिति पत्सक-ए। २ फूटजसम्बन्धी, इन्द्रयय. गोलापत्य । पारस्पगोतके ५ प्रवर है-और्व, च्यवन, सम्बन्धी । भार्गव, जामदग्न्य और आप्नुवत् । फात्यायन-धीनसूत्र वात्सप्रे (सं० पु०) यसप्री ऋषिका गोलापत्य । यह एक और अथप्रातिशाख्यमें इसका उल्लेख है। २एक 'प्रसिद्ध धैयाकरण और गाचार्य थे। (तैत्ति० प्रति० १०१२३)। ज्योतिर्विद् । हेमादिने इनका उल्लेख किया है। "ऋक् १०४५ सूक्त और शुक्लयजुः १२।२८ मन्त्रमें उनका | यात्स्यगुल्मक (सं० पु.) जातिविशेष । उल्लेख है। .. वात्स्यायन (स० पु.) वत्स्यगोत्रापत्यं युवा, यस प्य, पात्सप्रीय (० लि०) यात्सपो सम्यन्धोय । ततो युनि फक्। १ मुनिविशेष। पर्याय-मटनाग, (शतपथना० ६७१४५१५) । पक्षिलखामी । २ कामसूत्र के रचयिता। वात्सरिक (सं० पु० ) ज्योतिषो। .. न्याय शब्द और कामशास्त्र शब्द देखा। पारसबन्ध (सं० पु०) यत्स्यवन्गकाष्ठ, बछड़ा बांधनेका वात्स्यायनीय ( सं० ति०) वात्स्यायन कृत कामसूल । 'खूटा। . वाद (सं० पु० ) पद घम् । १ यथार्थबोधेच्छु यापय, यात्सल्प (सं० पु०) घरसल पय स्वाणे व्य। १रस- यह बात-चीत जो किसो तत्यफे निर्णय लिये हो। विशेष, यह स्नेह जो पिता या माताके हृदयमें संततिके / 'याद' न्यायके सोलह पदार्थो में दशा पदार्थ माना गया प्रति होता है। वत्सलस्य माषा वत्सल पम् । (को०)। है। जब किसी बातफे सम्बन्ध में एक कहता है, कि यह इस २स्नेह, प्रेम। प्रकार है और दूसरा कहता है, कि नहीं, इस प्रकार है 1. साहित्यमें जिस तरह नायक-नायिकाके रतिमायके मोर दोनों अपने अपने पक्षको युक्तियोंको सामने रखते वर्णन द्वारा रङ्गार रस माना जाता है, उसी तरह कुछ हुए कथोपकथनमें प्रवृत्त होते हैं, तब वह कथोपकथन लोग माता-पिता रसिमायके यिभाष, अनुभाव और 'वाद' कहलाता है। . 'संचारो सहित वर्णनको पारसल्य रस मानते हैं। परन्तु| तत्त्वनिर्णय या विजयभीत् दूसरेको पराजय के उद्देशसे Vol. AXI, 23