पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/१११

विकिस्रोत से
यह पृष्ठ अभी शोधित नहीं है।

__वाद्ययन्त्र E सुप्राचीन असीरीय, कालदीय प्रभृति राज्ययासी भी। पांवके माघातसे तदभ्यन्तरम्य शिराओंसे एक • महानन्द महोत्सवादिमें घास बजाते थे। उस समय | सुन्दर स्वर उत्पन्न हुमा । उस समय मर्करी उसे भी देवमन्दिरों में शङ्ख, घण्टा तथा घशी प्रभृति याद्य | उठा कर बजाने लगे, उसीसे लायर (-Lyre) नामक यजाने को रोति थी। कुरानमें याच यशानेका उल्लेख प्रथम वाद्यस्वरको सृष्टि हुई । उसो लायर यन्त्रका नहीं है, ऐसा जान कर मुसलमानोंने सिरीय तथा | अनुकरण करके परिवत्तिकालमें हार्प (Harp) एवं उसके पारस्यका पुरातन संगोत नए कर साला था, किन्तु पीछे| वाद नाना प्रकारके तारयुक यन्त्रोंका आविष्कार हुआ। खलीफा हारून अल रसोदके उत्साहसे फिर गाने बजाने. सिंगा बहुत पहले से ही प्रचलित था। भैस वा गाके की प्रतिष्ठा हुई । उनको मृत्युके बाद खलीफागण जितने सोगको खोखला करके बजानेकी रीति इस समय भो ही विलासप्रिय होते जाते थे, उतनी ही गान और वाद्य | प्रायः सभी देशों में देखी जाती है। तविका बना हुआ की उन्नति होती जाती थी। . . रामसिंगा इस श्रृंगवाद्यसे स्वतन्त्र है। ' संगोतोत्साही राजाओं में भारतके मुगलसम्राट प्राचीनकाल में भारतकी तरह मिनराज्यमें भी सिंगा ___ अकवरशाहको सर्वश्रेष्ठ आसन दिया जा सकता है। ये पचं एक प्रकारके दाकका पूरा प्रचार था। मिस्रदेशीय राज्यशासनके समय युद्धविग्रह तथा व्यवस्थाप्रणयनमें | लोग इनके अलावे लाया तथा एक प्रकारको बंशी भी . निरन्तर लोन रहने पर भी संगीतके अनुशीलनमें यथेष्ट । बजाते थे। क्लिओपेट्राके समय भी मिस्र में गीत वाद्य- आग्रह प्रकाश करते थे। उनकी सभामै सुविण्यात का यथेष्ट समादर था; किन्तु जब यह देश रोमनों गायक गोपाल नायक, मियां तानसेन "भृति विद्यमान के अधिकारमें चला गया, तब राजपुरुषोंकी आहासे थे। कहते हैं, कि दीपक गानमें गला नष्ट हो जानेके याद | गीत वाद्य. धन्द कर दिये गये। एशियाके मध्यवत्ती तानसेन सहनाई तैयार करके रागरागिणियाँको मालाप | घाविलन राज्यमें तथा प्राचीन पारस्य में विलासिताको करते थे। .. बढ़तीके साथ साथ गानयादयकी विशेष उन्नति हुई। भारतवासियोंकी तरह प्राचीन यूनानियों को भी यहूदी लोग जिस समय मूसाके अधीन मिस्र राज्यसे यही धारणा श्री, कि देवगण हो संगीतविधा और वाद्यः | भ ग खड़े हुए, उस समय उन लोगों में पायादि- यन्त्रके मष्टिकर्ता हैं। इसीलिये उन लोगोंने एक एक का अभाव नहीं था। किन्तु उनके वाद्ययन्त्रों की देवताको उनके प्रिय एक एक याद्ययन्त्र देकर सजा रखा . आवाज़ उतनी अच्छी नहीं होती थी। है। शिवके हाथमें विषाण, विष्णु के हाथमें शंख, सरस्वती । ____ उस समय समाजफे शृंखलाबद्ध न होने के कारण के हाध घोणा.तथा कृष्णके हाथ वंशी एवं अन्यान्य | सर्वदा ही युद्धविग्रह उपस्थित हुआ करता था। इस हिन्दू देव-देवियों के हाथोंमें जिस तरह मिन्न भिन्न याच कारण उस समयके गानयादुप केयल संग्रामको प्रवृत्ति- .. यन्त्र परिशोभित देखे जाते हैं, उसी तरह यूनानियोंके | को उत्तेजित करनेवाले होते थे। इसीलिये ऋग्धेदके मिनर्मा, मकरो प्रभृति देवनागोंके हाथों में वाद्ययन्त्र | पष्ट मंडलक ४७ये सूत्र में दुन्दुभिको बलप्रदान करनेवाला विन्यस्त है। याय कहा गया है। उस समय पाद्धागण जिस तरह ऐसा कहा है, कि एक समय नीलनदमें बाढ़ । भयंकर वेशभूषामें सुमलिन हो कर मीपण मूर्ति धारण - मानेसे एक बार हो बहुसंख्यक मछलियां और कछुए किनार - करते थे, उनके याद्य-यन्त्र भी, उसी तरह भयानक शब्द की भूमिमें भा गये। - उनमें से एक कछुएका मांस जब करते थे। इतिहासके पढ़नेसे पता चलता है, कि फार्थ- धीरे धोरे गल गया, तब भी पृष्ठास्थि पर जोगायोर हानिदल जामाके युद्धो (स० पू० २०२ शब्द - कुछ नसे शुकरूपसे विद्यमान थीं। एक दिन यरुण में).८० हाधियोंके साथ रोमनांको पददलित करनेके देश (Jercury) नदी के किनारे भ्रमण कर रहे थे, अE- - लिये अप्रसर हुए, उस समय रोमनि इस नरद भयर . स्मात् , उसी काएकी पीठ पर उनका पाय पड़ गया। भेरीरय किया था, कि सब. हाथी भयभीत हो कर