पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/१२९

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वाधयन्त्र ११३ ___. तुरही। . घेणुयन्त घेणु अर्थात् बाँसका बना होता है। इसो. तुरहीका आकार सीधा होता है। यह पोतलको वनो लिये इसका नाम घेणु पड़ा होगा। इसको लम्बाई घंशी | होती है। यद्यपि इसके द्वारा सैन्यमोत्साहादि कोई जातीय सभी प्रकारके यन्त्रों की अपेक्षा बड़ी होती है। कार्य सम्पन्न नहीं होता, तथापि रणक्षेत्र में ही इसका इस यन्त्रमें एक तरफ छः और दूसरी तरफ एक छिद्र | व्यवहार होता है। कभी कभी यह नौबतखाने में भी होता है। इसकी वादन प्रणाली स्वतंत्र है। वादक एस | बनाई जाती है । इसका आकार रणसिंगेसे कुछ छोटा यन्त्रको किंचित् यक्रमावसे पकड़ कर एवं मुखको कुछ होता है। यह यन्त्र रणसिंगेको वादन-प्रणालीसे बजाया टेढ़ा कर, माहिस्ते आहिस्ते इंक कर कमाते हैं । फुत्कार जाता है। के तारतम्यानुसार नाना प्रकार के स्वर निकाले जा सकते हैं। यह यन्त्र बहुत आसानोसे वजाया जाता है। प्रयाण | मेरीता दूसरा नाम दुन्दुभि है . यह देखने में बहुत पादक इससे बहुत ही मधुर स्वर निकाल सकते है। कुछ दुरयाक्षणयन्त्रक समान होता है । इस यन्त्रक - सिंगा। जलके भीतर एक और नल इस कौशल से घुमाया रहता - गाय, महिप भादि लम्ये सींगवाले पशुओंके सौगसे है, कि पजाने समय हायके सञ्च लन द्वारा इससे नाना यह यन्त्र तैयार किया जाता है। पंह पाधयन्त बहुत | प्रकारफे या निकाले जा सकते हैं। यह यन्त्र प्राचीन प्राचीन है। यहाँ तक कि यह शुपिर यन्त्रका आदि यन्त्र समयमै युद्धयन्त्र में ही गिना जाता था। किन्तु इस समय यहा जा सकता है। भूत भावन भवानीपति शंकर | नौयतके बजाने के बाद यह यन्त्र बनाया जाता है। सर्वदा इस यन्त्रका व्यवहार करते थे। उक्त पशुओंके | सिंगके पतले भागमे एक छोरा सा छेद करके, उसमें : शा दूसरे यंत्रोंको ताद मनुष्यों के हाथका बनाया मुंहलगा कर इसे यजाते है।। यंत्र नहीं है। यह एक प्राकृतिक यन्त्र है। समुद्र शंख - रणसिंगा।. नामक एक प्रकारका ज्ञानबर होता है। प्रकृति ने उसके रणसिंगेका आकार बहुत बड़ा होता है। यह यन्त्र ! भाच्छादनीकोपको इस ढांचेसे तैयार कर रखा है, कि पोतलादि धातु से तैयार किया जाता है पयं मुखसे लोग उसके ऊपरी भागमें सिर्फ एक छोटा सा छिद्र फूंक कर बनाया जाता है। रणक्षेत्रके मध्य सेनिकोंके करके बाजा यना लेते है । शंस बहुत प्राचीन यात्र कोलाहलमे याद्ययन्त द्वारा जिस समय सैनिकोंको ' है। यह इस समय केवल मंगल-कार्यमें ही यजाया जाता प्रोत्साहित, माहान मथया किसी प्रकारका इशारा करने- है, किंतु प्राचीनकालमें युद्धफे समय हो इसका अधिक को सम्भावना रहती है, उसी समय यह यन्त्र व्ययहत | व्यवहार होता था | इस मंत्रके मुखमें पंक मंगुल होता है। इसको सांकेतिक ध्वनिके द्वारा सेना अपने | प्रमाण छेद करना पड़ता है। इस सबके बजाने के लिये सेनापतिका अभिप्राय आसानीसे समझ लेती है । यह उसी छेदमें पूरी ताकतसे मकना पड़ता है। पर पन्त रणक्षेत्र में बजाया जाता है, इसी लिये यह रणसिंगा यांत्र जितनी ताकतसे फूका ज्ञाता है, ध्यनि भी उतनी ही । रामसिंगा। ऊंची होती है। प्रानीन काल में मनुष्य पूरे बलवान होते . रामसिंगा भी धातुका बना हुआ एक बहुत बड़ा थे, इसलिये उस समयके लोगोंके शंखको आवाज कुण्डलाकार यन्त्र है। इसका व्यास रणसिंगेको अपेक्षा बड़ो गम्भीर होती थी। यहां तक कि उस समयके बड़ा होने के कारण इसका स्वर मो उसको अपेक्षा नहीं। पोरोंके शस्त्रको गम्भीर ध्वनिते लोगोंका कलेजा कॉप उठता था। गम्मोर होता है। यह यन्त्र रणसिंगेको यादन-प्रणालीसे दोचनाया जाता है। यह यन्त्रणवसम्प्रदायके मही. तितिरी। सपादिमें अधिक पवहन होता। . आधुनिक तुयही हो पहले तितिरीके नाममै विगयान rol, XXL 29. कहलाता है।