वानिक वापि
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पानिक (सं.वि.) घनसम्मन्धीय ।
| यान्तिहत् ( स० पु० ) वालि हरतीति हकिए। लौह-
ग्रानीय (सं० पु० ) कैवर्त मुस्तक, केवटो मोथा। | कण्टक वृक्ष, मैनफलका पेड़।
धानोर (स० पु०) १ चेतसवृक्ष, येत । २ याञ्जलुगृक्ष, बान्दन (सं० पु० ) यन्दनका गोलापत्य ।
'जलयेत । पर्याय-वृत्तपुष्प, शास्त्राल, जलघेतस,
( माश्व०पी० १२।११।२)
व्याधिधात, परिव्याध, नादेय, जलसम्भव । गुण-तिक्त, वान्या (स. स्त्री० ) वनानां समूह इति धन-यत्-टाप ।
. शिशिर, रक्षोध्न, प्रणशोषण, पित्तास्र और कफदोष | वनसमूह ।
'नाशक, सपाही और कपाय । (राजनि० ) ३ लक्षवृक्ष, | चाप (स.पु.) वप घम् । १ वपन, येना। २ मुण्डन ।
पाड़का पेड।
उत्पतेऽस्मिन्निति थप अधिकरणे धम्। ३क्षेत्र, खेत।
वानीरक ( सलो०) यानीर इव प्रतिकृतिः इयार्थे कन् ।
( पा ५२०४६ सूत्र-भट्ट जीदोजित )
मुझतृण, मूज।
वापफ (सं०नि०) पप-णिच् घुल । वपनकारयिता,
धानोरज (सं० लो०) १ कुष्ठौपध, कुट। (पु०) २ मुजा,
घोज योनेवाला।
मूज।
यापदण्ड (सं० पु० ) वापाय अपनाय दण्डः। वपनार्थ
'वानेय (सो .) वने जले भयं वन-ढम् । यत्त मुस्तक, दण्ड, कपड़ा पुननेकी दरकी। पर्याय-घेमा, वेमन,
पोवटी माया।
वेम, पायदएड। (भरत)
यान्त ( स०ए०) यम-णि त। यमन की स्तु. | योपन (सं० क्ली०) यप-णिय ल्युट । पोज थाना।
उल्टीसे निकली ची
पापनि ( स० पु.) गोत्रप्रवर्तक ऋपिभेद ।
चान्ताद (स'. पु० ) वान्तमत्तीति अद-अण। कुक्कुर,
(सस्कारकौमुदी)
कुत्ता।
वापस (फो० वि०) लौटा हुआ, फिरा दुआ।
घान्ताशिन् ( स० पु० ) यान्तमश्नाति अश-णिनि । चापसी (फा०वि०) १ लौटा हुआ या फेरा हुआ।
• १ वान्ताद, कुत्ता। (त्रि०) २ यमनमोगी, उल्टी खाने-1 (स्त्री०)२ लौटने की क्रिया या भाव। ३किसी दी
घाला।
हुई वस्तुको फिर लेने या ली हुई वस्तुको फिर देनेका
भोजनके लिये ब्राह्मण कभी भी अपने कुल और
काम या माघ ।
गोत्रका परिचय न हैं। जो भोजनके लिये अपने कुल |
| वापातिनामेंघ (सक्की० ) सागभेद ।
घा गोलको प्रशंसा करते हैं, पण्डिताने उन्हें 'घाताशो'।
यापि (स. स्त्री० ) उप्यते पनादिकमस्यामिति थप
( वसि यपि यजि पाजि प्रीति । उण ४।१२४ ) इति इन।
चापो, छोटा जलाशय।
. मनुने लिखा है, कि जो ब्राह्मण अपने धर्मसे भ्रष्ट होते
यापिका (सं० सी० ) वापि स्वार्थे कन्टाप् । पापो,
हैं घे वान्ताशी (घमिभोगी ) ज्वालामुख प्रेत होते हैं।
घायली ।
पान्ति ( स्त्री०) यम-क्तिन् । यमन, के।
पापित (सनि०) यप-णिच् त । १ योजामत, योया
पान्तिका (स. स्त्री० ) कटुकी, फुटको। .
यान्तियन् (स0पु0) पान्ति फराति रु-शिप् तुक्य
हुआ। २ मुण्डित, मूड़ा हुआ। (लो०) ३ धान्य.
विशेष, चोभारी धान ।
मदनयक्ष, मैनफलका पेड। (त्रि०)२ चमनकारी, पापी (स.पी.) वापिदिकारादिति हो । जला
उल्टो करनेवाला।
शविशेष । जो जलहोन देशमै जलाशय ग्युददाते हैं
यान्तिद (स. त्रि०) शान्ति ददाति दा-क । यमन- उन्हें स्वर्गलाम होता है।
कारक, उलटो करनेवाला। .
वैद्यकशास्त्र में लिखा है, कि वापीका जल गुरु, कटु,
यान्तिदा (सं० स्त्री०) कटुकी, कुटको 1 :.
क्षार (लपणात, पित्तवईफ तथा कफ और घायुनाशक
यान्तिशोधनी (स' सी०.) जोरक, जीता
होता है।
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/१४३
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