पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/१५

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- वसंकुल वनापंदारक छाता। यत्रस्य कुटिम क्षुद्रगृहं । २ वरप्रनिर्मित गृह, वस्त्रयुगल ( स० क्लो० ) परिच्छदद्वय, जोड़ा कपड़ा। · सोमा। वनयुगिन् ( स० वि० ) युगलवस्त्रधारी, दो कपड़ा पह- वस्त्रकुल-शिलालिपि-यर्णित राजभेद । . ननेवाला। वस्त्रगृह ( स० को०) वस्त्रनिर्मितं . गृहं । वस्त्रनिर्मित वस्त्रयुग्म (सं.को. ) वस्त्रस्य युग्मं । पत्रद्वय, जोड़ा शाला, खेमा। पर्याय--पटवास, पटमय, दृष्य, स्थल। कपड़ा। परमप्रन्थि ( स० पु०) वस्त्रमा प्रन्यिः। नायो, नाड़ा, वस्त्रयोनि ( स० स्त्री०) वस्त्रसा योनिरुत्पत्तिकारणं । इज़ारवंन्द। यसनोत्पत्तिकारण, सूत आदि जिससे कपड़ा धोना वस्त्रघर्घरी (स. स्त्री०) वस्त्रनिर्मिता घरीव 1, याद्य.. जाता है। यन्त्रविशेष, एक प्रकारका पाजा। .. वस्त्ररङ्गा (स' स्त्री०) कैवर्तकी। घस्त्रच्छन्न ( स० त्रि०) परिधृत यास, वस्त्रावृतः। वनरक्षम (संपु०) कुसुम्भ वृक्ष । वस्त्रद (स'० वि०) वस्त्रदानकारी, कपड़ा देनेवाला। वस्त्ररञ्जन (स पु०) राजयतीति राज-णिय-व्युट , वस्त्रानां वस्त्रदा (स. स्त्री०) कपड़ा देनेवाली।' .. रञ्जनः। कुसुम्भ वृक्ष। घनदानकथा (संक्ली०) वासदान, कपड़ा देना। यह वस्त्ररञ्जिनी ( स० सी० ) मञ्जिष्ठा, मजीठ । .बड़ा पुण्यजनक है। सूर्य और चन्द्रग्रहण में अन्न और | वस्त्ररागत् ( स० पु० ) नील होराकसीस । चल दान करनेसे धैकुण्ठ लाभ होता है। . . यस्त्रवत् ( स० त्रि०) वस्त्र अस्त्यर्थे मतुप् मत्य व । घननिणे जिक ( स० पु० ) पलधौतकारी, धोबी। वस्त्रविशिष्ट। परमप (स'० पु०) १ एक जानिका नाम । (भारत ५।५१।१५)| यस्त्रविलाम ( स० पु०) वस्त्रेण विलासः । कपड़ा द्वारा २ एक तीर्थ । इसका नाम पुराणों में बिनापथ क्षेत्र विलास, उत्तम वस्त्र पहन कर गर्व करना। मिलता है। यह माज कलका गिरनार है जो गुजरातमें | वस्त्रवेश (स'० पु०) वखग्रह, खेमा । है। ३ रेशम, अन तथा सब प्रकारके यस्तोंको पहचानने वस्रवेश्मन् ( स०पी० ) यत्रस्य पेश्म । कपड़े का घर, और उनके भाव मादिका पता रखनेवाला राजकर्मचारी।। पत्रपम्जुल ( स० पु०) कोलकन्द।। वनवेष्टित (स' त्रि०) वस्त्रेण वेष्टित । वस्त्र द्वारा पत्रपरिधान (स० क्लो०) १ वेशसजा। २ कपड़ा पह- आच्छादित।' ' ' .. नना। ... . . पत्रागार (स० पु०) १ वस्त्रगृह, खेमा। २ कपड़े की पस्नपुत्रिका (स० स्रो०) वननिर्मिता पुत्रिका पुत्तलिका। दूकान । पस्त्रनिर्मित पुत्तलिका, कपड़े का पुतला। . वस्त्राञ्चल (सक्को०) कपडे का एक छोर । घरखपूत ( स० वि०) यस्त्र द्वारा परिष्कृत, कपड़े से छाना वस्त्रान्त (सपु०) कपड़े का चारों कोना। • था। वखान्तर (स'० क्लो० ) अन्यन् वस्त्र । अपर वस्त्र, दूसरा पत्रपेशी ( स० स्रो० . पस्त्र द्वारा पेशित।.. . कपड़ा। पत्रवन्ध ( स० पु०) नोवी। । . . वस्त्रापथक्षेत्र (सको०) पफ प्राचीन और पवित्र तीर्थ- घनभयन ( स० पु०) कपड़े का बना हुआ घर, खेमा।। स्थान । महाभारत में यह स्थान 'यत्रप' कह कर उक्त है। वनभूपण (सपु०) १ पटयास । २रकाशन ।३ साफ-/ इसका वर्तमान नाम गिरनार है। यहां भय और भवानी. पएड वृक्ष। . . . . . . को मूर्ति विराजित हैं। (१० नील २४ ) स्कान्दकै नागर पलभूपणा ( स० स्रो० ) यासा भूपणं रागो यसा और प्रभासपण्ड में इस क्षेत्रका माहात्य वर्णित है। माजिष्ठा, मजीट। . . . . । उज्जयन्त देखा। पलमपि (सं० पु० ) तस्कर, चोर। . . .: . । यस्तापहारक (स० पु. ) कपड़ा बुननेवाला।। ... Vol. XXI. *