पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/१५४

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१४० वामनस्यत्ती-चामाचार वामनस्थली-यम्बईप्रदेशके काठियावाड़ दिमागके अति- याममाली (सं० पु० ) सघानियर्णित राजभेद। ..... र्गत एक प्राचीन जनपद । -इसका वर्तमान नाम वायलि । . (समा० ३१६३०) था वनस्थली है। जूनागढ़से यह ८ मोल दूर पड़ता है। वामरथ (सं० पु०) पक गोतकार ऋपिका नाम । इनके पहांफे लोग आज भी एक स्थानको वामनराजका प्रासाद| गोतवाले वामरध्य कहलाते थे। पतलाते हैं। उक्त वामनराजको राजधानो अधया वामना. घामरप्य (सं० पु० ) यामरथ गोलापत्य। . पतारके पवित्र तीर्थक्षेत्रसे इस स्थानको प्रसिद्धि स्वीकार ... ( 4 8 ). की जा सकती है। एक समय यहां राजा प्रादरिपुको यामलूर (सं० पु०) यामं यथा तथा लुनातोति लु वाइल राजधानो यो। स्कन्दपुराणान्तर्गत प्रभासम्बएड में भी कात् रक । यलमोक, दोमकका भीटा। इस प्राचीन देशको समृद्धिका परिमय मिलता है। | वामलोचन (सं० लो०) यामनेत्र, पोई भाख । यामन स्वामिन् ( सं० पु.) एक प्राचीन कवि। . यामलोचना (सं० स्रो० ) पामे चारणों लोचने यस्पा । चामना (सं० स्त्री० ) एक अप्सराका नाम । स्रोमेर, खूबसूरत औरत। . पामनाचार्य (सं० पु. ) मानार्यभेद, पफ विख्यात टोका. वामशिव (सं० पु० ) कथासरित्सागरयर्णित व्यक्तिभेद । कार। पामयेधशुधि (सं० स्त्री०). पामे प्रतिकूले यो येस्ताद घामनानन्द-कोकिलारहस्य और श्यामला-मन्त्रसाधन । पये शुद्धिगिशोधन, या घामेन विपरीतेन धेन शुदिः। के प्रणेता। ज्योतिपोक्त चन्द्रशुद्धिधिशेष। इस घामयेध शुनिका यामनिका (सं० स्त्री०) १ प्रकारा स्रो, बोनी स्त्रों। विषय ज्योतिपम इस प्रकार लिखा है-जिसको जो राशि २सकन्दानुवरमातृभेद, स्कन्दको अनुबरी एक मातृकाका है उस राशिसे द्वादश, चतुर्थ और नयम.गृहस्पित घग्द्र- नाम । के विरुद्ध होने पर भी यदि शुक्र, शनि, मङ्गल, पृहस्पति धामनी (सं० ख०) १ खर्या स्त्री, पानी औरत २ घोटको, थोर रवियुक्त गृहस सप्तम गृहमें दो, तो यामयेधशुद्धि घोही। ३ एक प्रकारका योनिरोग। होती है। इसमें बिगद चन्द्र भी शुभफलदाता होते हैं। यामनोयन (सं० लि. ) मर्दन द्वारा सोचित, जो मल फिर ये विरुद्ध चन्द्र, शुफ, शनि, कुम, रहस्पति भोर कर छोरा किया गया हो। रयियुक्तसे दशम, पंचम और अष्टम गृहमें यास करते यामनोति (सं० पु. ) धनका नेता । ( भृक ६। ४७) तथा बानी राशिम यथाफम भटम, पञ्चम और द्वितीय यामनीय (सं० लि०) वक्र, टेढ़ा। | गृहगत दो कर भी शुमफलदाता होते हैं। .. पामनेत्र (सं० लो० ) वर्णन्यासे याग ने स्पृश्य पेन । घामा (सं० स्रो०) यमति सौन्दर्य इति यम सलावित्या. १दीर्घ कार । २ यामलोचन, पाई भनि। दण, राप, पहा पंगति प्रतिफूलमेघा कथयति या याम वामनेत्रा (सं० सी०) मुन्दरो स्रो, खूबसूरत औरत । कामोऽस्त्यस्या इति अर्श मादित्याद । १ सामान्या नो, यामनेन्द्र स्यामो (सं० पु. ) आनायमेद । ये तसयोधिनी स्रोमात्र । २ दुर्गा। ३ दश भक्षरोके एक वृसका नाम । के प्रणेता ज्ञानेन्द्र सरस्वतीके गुरा स के प्रत्येक चरणमे तगण, यगण और भगण तथा पामनोपपुराण-उपपुराणभेद । मन्ती पंक गुरु होता है। याममोज (सं० लि.) या भजते भज-विधन प्रामाज्ञि (सै० म०) याममशि ", पामया, या भागो। . . . . . शादीकार " : " " पामभृत् (सं० मो.) एकामेद, याकुण्ड बनाने की एक यामाक्षी (सरली. ) यामे मनोहरे गक्षिणी पप्पा, पर प्रकारको । (पासपपत्रा० ४२६३५) · ममासातः डोप। १ पामलोचगा, सुग्घर खो। २यो । याममार्ग (सं० पु०) घामः मार्गः । यामामार, चदपिक्षित कार। . .. : .. . ... , दक्षिग मार्गक प्रतिफल सान्निा मत जिसमें मप, सांस यामाचार 1 सं० पु. ) ग्रामो विपरोसो घेपिग्दो पा गिनार भादि-निपिद बातोंका विधान रहता है!... माचारः। तम्लोक आचारपिशेप ।।