पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/१५८

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वापसी-वायु १ काकनामा, सफेद लाल धुनो। २ फाकमाचो, । "तस्मादेनम्मादात्मनः भाकाश सम्भूत: Maiii: मकोय। द्वायुः यायोरग्निरम्न पः अदुभ्यः पृथियो धोत्पयते" । यायप्ती (सरनी० ) वायसानामियमिति तस्मियत्वात्, (श्रुति ) वायु पञ्चभूतमें दुमरी है और माफाश PM यायस-गण-डो। १ काफोडग्यरिका, छोटो मकोय । दुई है, इसी कारण इसके दो गुण हैं-शब्द मोरा जिसमें गुच्छमि गोलमिफि समान लाल फल लगते हैं। प्राण, पान, समान, उदान गौर ध्यान ये पशवायु २ महाज्योतिष्मती लता। २ काकतुण्डी, कौमाठोंठो।। हैं। उर्ध्वगमनमोल नासाग्रस्थानमें अवस्थित पायुग ४ श्वेत गुना, सफेद घुघुचो। ५ काका , मांसी। नाम प्राण, अधोगमनगोल पायु मादि स्पन स्पिं ६ महाकरख, बड़ा फंजा। पायसावली (स० स्त्री० ) करबलली, लताकरञ्ज। पायुका नाम अपान, समो नाड़ियों में गमनमोल समस्त शरोरस्थायी वायुका नाम प्यान, अर्ध्वगमनशील कंगठ- .. पायसोशाक (स छो०) शाकविशेष, काकमानीका स्थायी उत्करणशील पायुका नाम उदान, पीत गो. साग। जलादिके समीकरणकारी यायुका नाम ममान है।' . पायसेतु ( स० पु० ) पायसानामिक्षु रिय प्रियत्वात् । समीकरणका अर्थ परिपाक अर्थात् रस, धिर, शुकपुरी- काश, कांस नामको घास । पायमालिका (सं० स्त्री०) पायसाली स्याथै कन, राप । पादि करना है। हम लोग जो सब वस्तु खाते हैं, एकमात घायु हो उन्हें परिपाक करती है। १ शाकाली, मालकंगगो। २ मधूली, अलमें उत्पन्न होनेवाली मुलेठी । ३ महाज्योतिभती लता। ४ पत्र- ___ सांण्यामार्यगण नाग, फर्म, शकर, प्रयत्न गोर शाकनिशेष। धनञ्जय नामक और भी पांच प्रकारकी यायु स्योकार पायसोलो (. स्त्री०) वायसान् भोरएडपतीति करते हैं। उद्विरणकारो पायुका नाम नाग, धातु उग्मी मोलड़ि-उत्ोपे 'अन्य प्यपि दृश्यते' इति शम्ध्यादि. लगकारो घायुका नाम फर्म, सधाजनक घायुका नाम रयात् माप लोपः। फाफोलो, मालफंगनी। कृकर, जम्मनकारो वायुका नाम देवदत्त और पोषणकारी घायु (२० पु०) याताति या गतिगन्धगयोः (हवापानिमिस्य यायुका नाम धनअप है । पैदान्तिक माघार्यो ने प्राणादि दिसाध्यशूभ्य उग्ण । उपा० १४१) इति उण ( भातोयुक् चिय पांच वायु म्योकार को है सही, पर नागादि पान यायु. क पा ७३३३) इति यक पशभत के अन्तर्गन भूयिशेष उक्त प्राणादि गांन यायुमै अस्थिन है, इस कारण पं. हया, पयन। पर्याग-ध्यप्सन, स्पर्शन, मातरिश्या, सदा 'घायु म्यीकार करने होसे इन सय यायुषी सिदिन है। गति, पृषदभ्य, गन्ययात, गवाह, गनिल, साशुग, समोर यह माणादि पञ्च यायु आकाशादि पचभून के रा मायत, मयस्, जगत्प्राण, समोरण, नमम्मान, पात, पवन, शिसे उत्पन्न है। प्राणादि पञ्चायु पश्चभ्मेन्द्रिय पयमान, प्रभामा (भमर) मागत्माण, सयाम, याह. फे माय मिन्ट कर प्राणमय कोष कहलाती है। गमगा. धूलिध्यज, फणिपि, याति, ममःमाण, भोगिकाम्त, गमगादि क्रियागमाय होने के कारण इस पञ्चायुगे स्वाम्पन, अक्षति, कम्पलक्ष्मा, शसीनि, मायक, हरि । रज-मका कार्य कहते हैं। भाषापरिदमें लिग्ना है. (मदरस्नायनी) यास, सुश्राम, मृगयाइन, सार, चश्चल, कि भार और मनुष्य भीनमर्श घायुका धर्म है। विदग, प्राम्यन, नमस्सर, निभ्यासक, सनून, परता. यह तिप्यं ग गमनमोल तथा स्पादिलित in पतिः । (अटापर) F द्वारा इसे जाना जाता है। शादर्श, ति मौर घेदानके मतानुमार भागसे धायुको उत्पत्ति कम्प द्वारा पायुका अनुमान किया जाता हैमर्यान् विशाल अप भगवानने परायर गम्की एि करमेशी इच्छा को सहि करनेशी इटा। तीय पर्ण, विलक्षण सम्द गणादियो कृति गौर शादि. प्रण्ट को, तर पहले भारमा मागको, पाशमसे फेक हाराही यायुका शान होता है।। यायुको, या गनिको, मणिसे अनकी भोर मलमे मिस पस्नुम रूप नहीं, स्पर्श, उसका नाम यापु . पप्पोको उत्पनि । है। पृथियो, जल गौर से यम का माशादि