पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/१६३

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. .. वायु १४ पण्डितप्रयरहर्यट-स्पेन्सरने अपने First Principle :जो गति ताल तालमें नृत्य करती है, यही छन्दः है। नामक ग्रन्थ में लिखा है-- घही छन्द विश्व-विवर्तनका कारण है । स्पेन्सरने इसीको • "An entire history of any thing must - ncludel Rhythm of motion कहा है। यह पायका हो परि. itsappearence out of the Imperceptible and its चायक है। तिने फिर कहा है- disappearence into the Inperceptible.". ____वायुना वे गौतमसूत्रेणाऽयञ्च लोकः पररच लोकः सर्वाणि यह भयाक्त पदार्थ नियत परिणामो पता कर चेदान्त | | च भूतानि सम्बन्धानि भवन्ति ।" मतमें माया नामसे अभिहित है। फिर इसका परि- अर्थात् हे गौतम ! यह घायु सूत्रस्वरूप है । मणि णाम प्रघाड निरय होनेसे सांख्य, मतमे यह सत्नामसे | जिस प्रकार सूत्र में प्रथित रहती हैं, उसी प्रकार समस्त अभिहित हुमा है । मतपय यह कहा जा नहीं सकता, भूत वायुसूत्र में प्रथित है। कि वायु अन्य पदार्थ है। जहां क्रियाशालिनी शक्ति है, कठच तिने भी यह स्वीकार किया है, कि जैसे- , यहां हो गति है। शक्ति जैसे अनरत है. गति भी वैसे हो अनन्त है। अनादिकालसे, कम्पनका कभी भी विराम "यदिन किञ्च जगत्मय पाण एजति निःसृतम् । महो। अव्यक्त प्रकृति में जो निहित अवस्थासे सुप्तशक्ति महद्भय वमुद्यत' यएतदिदुर मतास्ते भवन्ति ।" (६ पाली) (Potential energy ) रूपमें अवस्थित था, क्रियाके | अर्थात् यह समस्त जगत् प्राणस्वरूर ब्रह्मसे निाएन लेकी dिi (Potential energe) प्रका | और कम्पित होता है। यह ब्रह्म उद्यतयनका तरह भया. शित हुआ। ... . . . . नक है। उसी प्रकार उन्हें जो जानते हैं, ये अमृत इस अवस्था गति या कम्पन या स्पर्शकी उत्पत्ति होते हैं। .. हुई। अनन्त आकाशमें (Atmosphere ) अनन्त यहां पर 'पजति' शब्दको अर्थ कम्पित है। घेदान्त- ...रहते हुए इस गतिका अवस्थान और प्रवाह-विद्यमान दर्शनके मतसे घायुविज्ञानका यह कापनात्मक (vibra- है. • पाश्चात्य विज्ञानविद् पएिडतों का कहना है, कि tory ) ब्रह्म बहुत भयानक है । जगत्के समस्त पदार्थ चन्द्रसूर्य प्रस्नक्षत्रादिके भिन्न भिन्न जगत्में भी इस कम्पनमें (Vibration) अवस्थित है। कहते हैं, कि इस प्रकारका कोई पदार्थ अयश्य विद्यमान है 1,-प्रति-प्रवाह-1 कम्पनसे कम्पनफे सात्मस्वरूप प्रत्यको उपलब्धि होती है, में, प्रति कम्पन, तानका प्रभाव ( Rhythum ) अवश्य . महर्षि पारायणने इसका सूत किया है- स्वीकार करना पड़ेगा। -तान-मममें हो मानो इस . "फम्पनात्" (वेदान्तदर्शन १।३३४) . । फम्पनका चिरप्रयाह पर्समान है। इसी लिये श्रुतिने स यायु या कंपन या गति-शक्तिसे ही समो जीप परिपामको प्राप्त होते हैं। हार्यट स्पेनसारने भो यह बात ..... "छन्दांसि धे, विश्वरूपाणि।" (शतपथना०). स्वीकार को है। जैसे- . ... यह.समी विश्व छन्द है। यही छन्द भूलोक, मन्त- Aisolate rest and permanance do not exist. .. रोक्ष लोक तथा स्वर्गलोक है। । । ' .. ... | Every object. no less than the aggregate of all ...": "मान्छन्दः प्रमान्छन्दः । प्रतिमान्छन्दः।". | object undergoes front instant to tnstant some ... . : . . . . . . . . ( शुरक्षयजुदसहिता) alteration of state. Gradualis or quickly it is ... परिदृश्यमान भूलोक मितच्छन्दः, अन्तरीक्षलोक ! receiring motion or losing motion.. . • प्रतिमच्छन्दः सपा घलोक प्रतिमितच्छन्दः है. यह विश्वविसारी घायु या करपन हो (vibration) .:."बन्दाम्प एप.प्रथममेतद्विश्व' म्यवर्तत '-वाक्यपदीय।। सृष्टि ( Evolution ) पा यस्तु लय (Iurolution )का

मर्यात् यह विश्य पहले छन्द होसे वियनित हुमा का कारण है । यह जगत् भागिर्माय घोर तिरोभायको

नित्य प्रतिमा है। यह प्राधिर्माय और तिरोमाय जिस . Vol. xxi.'36