घायुप्रस्त-वायुविज्ञान
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वायप्रत ( सं० वि० ) वाय ना प्रस्तः । वाय रोगा- घायुमय (संवि) घाय स्वरूपे मपट् । बाय स्वरूप
क्रान्ता । 1
| वायुमरलिपि (स'० खो०) ललितविस्तरफे अनुसार
पापुजा(सं० वि०) याय-जन-ड । चाय से उत्पन्न। एक लिपिका नाम
पायुंज्याल (सं० १०.) सप्तर्पिमसे एक।
वायुरुजा (सं० स्त्रो०) १ वाय जन्य पीड़ा। २ घाय:
पायुत्य (सं.क्लो) पायो वा त्व । वाय का माव या ] जन्य
| जन्य चक्ष पोड़ा।
पोसा
धर्म, वाय का गुण'। वायु देखो। .
घायुरोपा (स' स्रो०) रात्रि, रात ।
पायुदारू ( स० पु०) चाय ना दीयंते इति द्व-उण् । मेघ, वायुलोक ( स० पु० ११ वायवीय लोक, पाय सम्बन्धीय
वादल। .:.: ..
लोक। २ माकाश।
पायदिश (सं० सी० ).वाय कोण, पश्चिमोत्तर दिशा।
वायुयमन् (स क्लो०) यायोर्वत्म। आकाश ।
वायुघोप्त.(सत्रि०) घायुकुपित । . .
| वायुवाइ (सं० पु०) वाय ना उह्यते इति यह-घम् । धूम,
पायुदेव (स-लि०) घायुदेवता-सम्यस्यीय. .
धूभाग
वायदैवत (सं० लि.) वायुदेवता अस्य अण् । वायुदेवताक,
पायुयाहिनी ( स० स्त्रो०) पाय, वहतोति यह-लिनि,
जिसका अधिष्ठालो. देवता यायु हो।
ङो । याय सञ्चारिणी शिरों, घे शिराए जिनसे हया
पायुदेवत्य (.,स: नि०) वाय देवता-प्यम् । पाय दैवत । |
सञ्चारित होती है।
घायुधारण (स. क्ली) पाय का घेग रोकना।
वायुविज्ञान-इस नद-नदी-नगर-मरण्यादि समाकीर्ण भूत
पायुनिघ्न-(.स. नि०) याय ना.निघ्नः। वाय प्रस्त।
धरिनो धारणा परस चन्द्रसूर्य-प्रह-नक्षत्रादि-वचित
घायुपप (.स० पु...) चाय नां पाया यच समासान्तः ।।
अनन्त आकाशमें हम जो एक महाशून्य देखते है क्या यह
थायुगमनागमनका पथ, हवा आने जानेका रास्ता ।
वास्तवमें महाशून्य है ? हमारा मोटो पाखें चाहा
पायुपुत्र ( स० पु..) १ हनुमान् । २ भोम। ..
कहें, किन्तु सूक्ष्म विज्ञानपिसे देखने पर यह मालूम
पायुपुर ( स० को०) वायोः पुरं। वाय लोक।
होता है, कि इस जगत्में शून्य नामका काई पदार्थ नदों
पायुपुराण (स० लो०). अठारह पुराणोमेसं एक।
है। प्रकृतिने संसारमै कहों भी शून्य नहीं छोड़ा है,
पुराण शब्द देखा।
प्रकृति वास्तवमै शून्यका चिर शन्न है । जिसे हम
पायुफल ( स० झो० ) घाय ना फलति प्रतिफलतीति
मोटो दृष्टिस शन्य कहते है, यह मा शून्य नहा', वायु
फल अच् । १ इन्द्रधनुष । वायो फलमिय । २ करका,
पूर्ण हैं... एक कांवको नलिका देखने शून्य दिखाई
मोला।
वायुमक्षं (सनि०) चाय भक्षोऽस्यं । चाय भक्षक,
देतो है, किन्तु यह मा शून्य नहा । पयोकि जब इसमें
जल भर दिया जाता है, तव इससे घाय. बाहर निकल
जो चाय पान करते हों।
जाती है यह हम आँखांस देखते हैं। हमारी जहां तक
पायुभक्ष्य ( स० पु० ) वाय भैश्श्योऽस्पेति । १ सपं,
दूष्टि दोड़ सकता है, उससे बहुत दूर तक माकारा.
सांप। (सि०) २ यातभक्षक. या बानेवाला।
मएडल पाय मण्डलसे भरा हुआ है। यह चाय मण्डल
पायुभूति (स. पु०) पंक गणधर । (जैनहरिवंश ३१)
दो भागोम विमक १ । ऊपर स्थिर यार है,
पायुभाजन (स.पु.) पाय भोजनोऽस्य । १ पाय भक्षय,
उत्तापाधिषयकी कमीवेशीसे इस अंशका कुछ मा परि
सर्प। (त्रि०)२ याय भश, पाय भोजनकारी।
(माग. २३)
वरांन नहों दाता | नाचे उत्तापके परिवत्तंन साथ
वायुमण्डल (स'• पु०) माकाश जहाँ याय, प्रवाहित होतो साथ याय मण्डलके बहुतेरे परिवर्तन नगर भाते ।।
है। वायुविशान देखो।
इस चाय मण्डलफ पारयत्नशील अंशको अपेक्षा
पायुमत् ( स. नि०) पाप अस्प मतुंम् । पाप-
अपारवत्त नशाल मशका परिमाण बहुत माधक है।
विशिष्ट, पायं यत।
इस विशाल वाप.मएलके बाद मा शन्य नामको
J
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/१६५
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