। .. वहन-वहिरङ्ग ..
वहन (सं० क्लो०) उद्यतेऽनेमेति वह-करणे ल्युट । १ छोड़, । २ असभ्य । ३ जो पालत न हो, जो आदमियों में रहना न
तरेंदा, वेड़ा। २ खींच कर मधवा सिर या फंधे पर जानता हो । ४ भड़कनेवाला।
लाद कर एक जगहसे दूसरी जगह ले जाना। ३ ऊपर यहाँ (हि० मव्य० ) उस जगद, उस स्थान पर। जैसे-
लेना, उठाना। ४ कंधे या सिर पर लेगा।५ खम्भेके यहाँ का प्रयोग पासके स्थानके लिये होता है, वैसे ही
नौ भागोंसे सबसे नीचेका भाग। (नि.) ६ वाहक, इस शब्दका प्रयोग दूरके स्थानके लिये होता है।
• ढोनेवाला। ।,' ... - ... यहा ( स० स्त्रो०) वहतीति यह मच् टाप । नदी ।
वहनभङ्ग ( स० पु०) १ हटो हुई नाव । २ वहननिवृत्ति। पहावो (अ० पु.) मुसलमानोंका एक सम्प्रदाय जो
पहनीय (सनिक) वंह-गनीयर १ उठा या खोंच फर। अदुल बहाव नजदीका चलाया हुआ है। अब्दुल बहाव
ले जाने योग्य । २ ऊपर लेने याग्य ।
भरवके नजद नामक स्थानमें पैदा हुआ था। वह
यहन्त (सपु०) यदति चातीति वह ( तमूवहिवसीति । उण, मुहम्मद साहयके सर्वोचपदको अखीकार करता था। इस
३।१२८) इति अच् । १ वायु । उह्यते इति कर्मणि ऋच ।। मतके अनुयायी किसी व्यक्ति या स्थानविशेषकी प्रतिष्ठा
२वालक।
नहीं करते । अग्दुल वहायने अनेक मसजिदों और पवित्र
वहम (अं० पु०) १ विना संकल्पके चित्तका किसो वात | स्थानोंको तोड-फोड़ डाला और मुहम्मद साइवको कन.
पर जामा, मिथ्या धारणा, झूठा खयाल । २ भ्रम।३ को भी खोद कर फेक देना चाहा था। इस मतके अनु-
• ध्यर्थको शंका, मिथ्या संदेह, फजूल शक। . यायी अरव और फारसमें अधिक है।
चहमी (३० वि०) १ वृथा संदेह द्वारा उत्पन्न, म जन्य । वहिः ( स० अव्य०) जो दर न हो, बाहर। हिन्दीमें
२ वहम करनेवाला, जो अर्थ सदेह में पड़े, किसी बात- इस शब्दको प्रयोग अफेले नहीं होता, समस्तरूपमें होता
को सम्बन्धमें जो व्यथं भला बुरा सोचे। ३ झूठे खयाल है। जैसे-वहिर्गत, वहिष्कार, वहिरङ्ग इत्यादि ।
में पड़ा रहनेवाला।
| यहिःकुटीयर (स.पु०) वहिः कुट्यां चरतोनि चर-ट।
पहल (स० पु०) उद्यतेऽनेनेति वहु वाहुलकात् अलच 1 कुलोर, केकड़ा ।
'१ नौका, नाय । (त्रि०) २ हृद, मजयूत।
पहिःशीत (सं० पु०) वाहका शीतलता।
वदलगन्ध (
सली०) बहला मधुरो गन्धो यस्य । शम्बर यदिश्री (सं० अव्य०) १ वाह्यतः । २ यहिरभिमुख ।
. चन्दन । '
घहिसस्थ ( स० वि०) वाहरमें अवस्थित ।
चहलचक्षस (सपु०) बहलानि प्रचुराणि वा पोव वदिस्थ (सं० नि०) पहिरस्थ, पाहरको गोर।
'पुष्पाण्यस्य । मेपरङ्गी, मेढ़ासोंगी। ..
वहित (स.नि.) बहोपतेऽस्पेति अप धा-क्त, आय.
पहलत्वच (सपु०) वहला गुढ़ात्वचा वल्कलं यस्य। स्यातो लोपः। १ अवस्थित । २ स्यात, प्रसिद्ध ।
श्वेत लोध्र, सफेद लोध।
३ प्राप्त । ४ कृतवहन ।
चहला (स. स्त्री०) यहलानि प्रचुराणि पुष्पाणि सन्त्यस्या | पहिल (स० लो०) वहति द्रव्याणीति वह ( भशिवादिभ्य
इति, पर्श आदित्यादच । १ शतपुष्पा । २ स्थूलैला, प्रोत्री । उग्ण_४|१७२॥ इति इत्र । नौजा, नाय ।
बड़ी इलायचो । ३ दीपक रागको पक रागिनीका नाम 1 वहिनक ( स० क्लो० ) वहित स्वार्थे कन् । जलयान, नाव,
पहशत ( अ० स्त्री०) १जगलीपन, असभ्यता, वर्नरता।।
२ पागलपन, पावलापन । ३ उजइपन ! '४ विकलता, | पहिलभङ्ग ( स० पु०) टूटो हुई नाप । '
मराहट । ५ डरावनापन । ६ चित्तको चंचलता. पहिन ( स० वि०) यहनशील। .
अधीरता । ७ बहल पहल या रॉनक न होना, सम्राटापन, वहिनी (सं० स्रो०) नौका, नाय।
उदासी।
. .. .. . . वहिरङ्ग (स० पु०)१ शरीरका बाहरीमाग, देहका बाहरी
यहशो (अ० वि० १ जगलमें रहनेवाला, जंगलो।। हिस्सा । २ दम्पती। ३ आगन्तुक व्यक्ति, कहीं बाहर-
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/१७
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