पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/१८७

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वायुविज्ञान संमिश्रण भी परिलक्षित होता है। सुनरां देखा जा रहा । उस सिद्धान्तके अनुसार फुस्फुपके मानदिन वायुका है, कि नाइट्रोजन देदमें प्रवेश करने के समय भी जिस परिमाण और परिवर्तन नहीं जाना जा सकता है। फस औसतसे प्रवेश करता है, लौटने के समय भी उसी मोसत. फुस्के अभ्यन्तरमें घायुकोपाय यायु फुस्फुस्में लाये से ही बाहर निकलता है। इसको विशेष कोई क्षति-वृद्धि शैरिक रक्तके संस्पर्श और संघर्ष किस रूपमे प्रवर्तित

नहीं होती । वायुमें इस ममय मागेन, किपटन, हिलियाम | होता है, उसके विनिर्णयके लिये आधुनिक वैज्ञानिकोंने

और जीनन प्रभृति पांच प्रकारके अभिनय मूलपदार्थ एक प्रकार फुस्फुस नल (Lung-catheter)को सृष्टि को आविष्कृत हुए हैं। ये नाइट्रोजन के अन्तर्भुत हैं। अफ्सि. है। यह नल अति नमनीय है। यह बहुत आसानीसे जन और कार्टोनिक एसिड ही परिवर्शन प्राधान्य परि पायुनलो में प्रवेश करा दिया जा सकता है। इसके साय लक्षित होता है। प्रध्यास वायुमै मक्सिजन ५ भाग कम | पहुत पतली रवडकी नली जुटो रहती है। फूकने पर होता और कार्यानिक एसिड ४ भाग यढ़ता है। प्रध्याम यह फूल जाती है। यह छोटो वायु नलीमे प्रविष्ट करा यायुमें किञ्चित् एमोनिया, यफिञ्चित हाइडोजम और कर इस यन्त्रके साहाय्यसे फुस्फुसकं निभृत प्रदेशस्य यहत सामान्य कारयारेटेड हाइड्रोजन मो दिखाई देता। वायुकापको वायुकी भी इसके द्वारा वाहर ला इमे पृषक है। निश्याम, प्रश्वास और कार्यानिक पसिरके इस कर परीक्षा की जा सकती है । इमो तरह केयोटर प्रविष्ट पार्थपय विचारसे समझमें आता है, कि प्रध्यासके साथ कराने में ध्यासक्रिया में कोई प्याघात उपस्थित नहीं जिस मोसतसे कार्यानिक एसिड निकलता है, निश्वास होता । सुविण्यात जर्मन अध्यापक गामजीने एक कुत्ते के उसको अपेक्षा अधिकतर अक्सिजन ग्रहण करता फुस्फुसको यायका विश्लेषण किया था। उमसे मालूम रहता है। हुआ था, कि इसमें कार्यानिक डाइ-अपमापरिमाण पुस्कुमके भीतरो वापकीय पदार्थका परिमाण। था-सैकड़े ३.८। किन्तु प्रश्वासको वायां तक इसी वैधानिक अनुसन्धान श्मफे सम्बन्धी यथेष्ठ | समय कार्यान दाइ अपसाइएका परिमाण ना-सैकडे विचार किया है. कि हम निश्वासके साथ नामिका और २८ मागमात्र । अक्सिजनके परिमाणके सम्बन्ध में यह मुम्न घायु द्वारा ध्यास नलीफे पथसे जो वायु फुस्फुस्के । सिद्धान्त हुमा है, फि प्रयासको घायुमें मेकडे १६ कोपमे प्रक्षण करते हैं, उस वायवीय पदामि किस । भाग गपिसजन रहनेसे फुस्फुस्के अभ्यन्तरस्य अमि. प्रकार परिवर्तन होता है। उनका कहना है कि घायुका जनका परिमाण हे।गा-सैकड़े १० भागमाद । म्वभाव यह है, कि यद जय किमी पावधिशेष भावद्ध पाश्चात्य शरोर-विचय गास्त्र के आधुनिक पण्डितोंने होता है तब उक्त पात्र में वायुका प्रचाप पडता । इस बात पर पूर्ण रूपमे विचार किया है, किम्युमेटिकम, पारद सान्वित यन्नविशेषके साहाय्यसे यह प्रचाप (Pnuematics) और दासोप्टेटिकस (ilydrostatics) नापा जा सकता है। फुस्फुस्फे भीतर जव यायु समा विधानफे नियमावलम्बसे जोवदेह के शोणितसंहार्श गौर जानी है, तब फुस्फुमोय यााोपने म्धिन तरल रतफे शाणित संघर्षसे वाययोय अघिमजन और कार्योन हाई साथ उम यायुका अक्सिजन और कार्योन-साइ-अपसा. पसाइका परिवर्तन होता है। परिहतप्रया हमलोने का संघात उपस्थित होता है। अपने फिजीमोलजी नामक. प्रथमे इमफे मन्वन्धमें - दमारे प्रश्वास समय फम्पुसमे यायानिविलकुल छ आमास दिया। किन्तु इस समय भी इन मय बाहर नहीं निकल जाती। घायुपमे यथेष्ट वायु सचिन विषयोंका मुसिद्धान्त नहीं हो सका है। .. रहना है। इस वायुको पाश्नात्व विधान Residual रको मक्सिजन । . air नाम रखा गया है। (इसके सम्बन्ध मोर मो उन्मुक्त यायुमंडल में अपिमाना जो प्रचाप है. फुस. कर पाते हैं, ये इसके बाद दिखाई दंगो।) प्रभ्यासके। फस्फे घायुकोपस्थित अक्सिजनका प्रचाप उसको मपेक्षा पाययोय पदाका जो परिमाण निर्णय किया गया है। कम है। किन्तु शैरिफ रकम मपिसजनका जो प्राप