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वायुविज्ञान
इसोलिये माधुनिक अरोरतत्त्वज्ञ पण्डितोंके मतसे| द्वारा गठित है। अतः यह कटिन है। गलेके ऊपरका
केयल फुस्फुससंफ्रान्त भ्यासक्रिया पकमात्र भ्यासप्रिया कुछ अश ट्रेकिया नामसे प्रसिद्ध है। इस ट्रेफियाके
काह कर गभिहित नहीं होती। देहके भीतर प्रति महत्त। अधोमागमें ही घायुनाली या प्रोडूस ( Bronchus) है।
प्रति उपादान धातुको प्रतिफणामें जो ध्यासक्रिया चल | येस ट्रेकियाकी एक शाखा है। ट्रेशियाने दो शाखामों-
रही है, देह-प्रति उस गूढ़ रहस्यको रद्धाटनके लिये मे विभक हो कर फुस्फुसमें प्रवेश किया है। वे हमारे
पाश्चात्य पण्डित मानयदे में पायुफियाफे सम्बन्धी अनेक उपशावायोमि मी विभक्त हैं। इस तरह छोटे छोटे
‘बहुत गवेषणा पर रहे हैं । यदि समूची देहमें इसी तरह उपशाखा Bronchioless नामसे अभिहित हैं। ये सब
'भ्यासकियाका उद्देश्य संसाधित न होता, तो देनिक कार्य छोटे छोटे उपशाखापे क्रमशः सूक्ष्म होते होते अवशेष
किसी तरह सुशृङ्खलिन रूपसे परिचालित होने की सम्भा नफन्डीयुलाम (Infundilonlum) नामक सूत्रतम पायु
घना न थी । देह में प्रति मुहर्त्तम इतना अधिक कार्थानिक प्रवाहिकामें परिणत हुई हैं । इसको लम्बाई एक के
एसिद सचित होता है और अक्सिजनका इतना अधिक तीस भागका फेयल एक भाग है। पेसब छोटी छोटो
प्रयोजन होता है, कि केवल फुस्फुसीय भ्यासक्रिया पर वायुप्रयाहिकायें फुस्फुसमें बहुसंख्या कोपोंमें पिभन्न
'निर्भर करने पर किसी प्रकार भो दैनिक कार्य निरापदरूप हुई हैं। पे सव कोप भालयेोली (alveoli) या घायु.
से निर्यादित नहीं होता। सुनरां ऐसा नहीं, कि श्वास कोष कहलाते हैं । इन याय कोपोंके साथ अपरिष्कृत
फिया कहनेसे फेवल शंसयन्त्रको मांसपेशीको फियाके | शोणित-कैशिका-समूह घनिष्ठ रूपसे संस्कृष्ट हैं । हत्.
प्रभावसे फुस्फुमके सङ्कोचा और प्रसारण अनित बाहरी | पिएइसे फुस्फुसीय धमनोफे माथ जो अपरिष्कृत शैरिक
चायुका प्रण और फुस्फुसीय चायुको परित्याग किया. रक्तराशि फुस्फुसके क्ष दतम निकामें सचित होती
'मात्रको समझना होगा।
है। फायनिक एसिड आदि सयुक्त उस रक्तराशिफे
श्वास क्रियाको संज्ञा आधुनिक विज्ञानमें खूब | साथ इन सय वायुकोषोंकी वायु सहज ही संस्पृष्ट
चौड़े अर्थमें प्यवाहत हो रही है, इससे पहले भी होती है। ये दोनों भोरस यायुकोषोंकी याय के साथ
उसको बालोचना की जा चुकी है। समप्र देण्यापिनो | आदान प्रदान कार्य सम्पन्न करते है।
श्यामनिया या टोशु रेसपिरेशन (Tissue Respiration) | पुस्फुसमें यायवीय पदार्थका भादान-प्रदान ।
के सम्यन्ध यथेष्ट मामास दे कर अब फुस्फुसीय श्याम- . हम इसका उल्लेख कर चुके हैं, कि लोहित या लाल
किया (Pulmonary-Respiration)के सम्बन्ध में आलो. शोणितकणा दाक्सिजन प्राप्त करने के लिये लालायित
चना को जाती है।
रहती हैं। रक्तकणिकाकी और (Haemoglobin) अपिस
श्यामक्रिया-यन्त्र।
जन आकृष्ट होता है। घायुकोषों के बीच शेरिफर तसे
मुनके भीतर पृष्ठदेशीय स्थान फेरिका (Pharynxi/ पूर्ण फेशिकास्थित रक्त में कार्यानिक पसिहका माग
नामसे प्रसिद्ध है। इसके साथ नाक धीर मुहका भी अधिकतर है।
संयोग है। सुतरां इन दोनों पोंसे दो उसमें पाय दुमरी गोर घायुकोपी सक्सिजनका भाग अधिकतर
प्रविष्ट होती रहती है। इसके निम्नमागमें दो ग्लेटिग है।घाययोय पदार्थक प्रचापके नियमानुसार शैरिकरत में
रहता है। ग्लेटिश जिहा, निम्नमागमे स्थित है। सपिसजन अधिक मालामे प्रविष्ट होता हैं। इस ममय
ग्लेरिश-फेरिस्ता हो निसांग है। यदी यादक जानेका शैरिक र फे ध्यसप्राप्त पदार्थनिदिन कार्यानिक एसिष्ट.
पए है। उमर मापने एक कपाट रहता है। उसका में परिणत होता है। रक्तके माध भी कार्यानिक-
माम-२०, 410 प्लेटिम है। यह हद परदा है। उमफे / एसिड मिला रहता है। यह कायोनिक पमित..
गोचे दो लेरिम्स (Largns) या कएठनाली है। इसके पाहिनीसे पायुकोपमें प्रेरित होता है। गरिमाम
मोने का नाम किया है। ट्रैकिया उपास्थियम् पदार्थ हिमोग्लोविनके साथ सम्मिलिन हो फर शोणित राशिका
Vot, XXI. 43
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/१८९
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