पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/१९४

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१७४ वायुविज्ञान माया और भी कम हो जाती है। इस गयस्थाम मक्सि-! माती जाती है, उसको समष्टि हेनिम सादगी , जगका प्रवेशलाम अमम्मय दो जाता है। कार्योन। ६ लान ८० हजार घनश्च है। मारसेरके मतसे ४ । : डा-अपसाइटका विनिमय नियमके मम्बन्धमे माज भी लाख घनाच । अमेरिकाके डाक्टर हेयर मासे पाई गच्छा सिद्धान्त नहीं हुमा है। अइसे पहले ६ लाव छियासी हजार है। किन्तु धमसे इसका परिमाण फुस्फुसीय कैथोटर द्वारा कुत्ते के फुस्फुसमे कार्यानडा- दुगुना हो सकता है। हेपर माहवका कहना भ्रम अपमाइतके परिमाणको परीक्षाफे सम्बन्धमें जो लिम्रा जोषियोंके फुस्फुसमें २४ घण्टे में १५६६८३६० घनश्च गया है, उससे गालूम हुमा है, कि कुत्ते के फुस्फुसकी पाय गातो जाती है। याय में सैकड़े ३.८ भाग कार्यानडाइ-अपसाइट विद्यः । निभ्यास-प्रश्वास। मान रहता है। फिर इधर हपिएडके दक्षिण कक्षके निश्वास प्रश्वास या भ्यासक्रिया किस तरह सम्पन अपरिष्यत (कमें भी कार्योन अफ्साका परिमाण प्रायः होतो है, यक्षप्राचीर किस तरह. पिलोड़ित होता है, सैकड़े तीन भाग है । जय तक याय फेोपका कान-डाइ- किस किस मांसपेशीके प्रमापसे यह कार्य होता है.- अपसाउके परिमाणके साथ फुस्फुसीय रक्ताधारका | इन सबका गृत्तान्त "भ्यासफिया" शब्दो पिस्तारित कार्योग-शा अपसाइसमें पूर्ण समता नहीं होती, तब तक रूपस दिया गया है। यहां जिम मियासिं घायुका संध्य रक्ताधारसे कार्योन साइ-अपसाद वाय फेोपमें प्रविष्ट हो है, यदी लिखना जाऐगा। प्रयासको अपेक्षा निवास सकती है। फलतः इस सम्बन्धमें आज भी विशुद्ध शहदकाल स्थायी है। निश्वास गौर प्रयास में जरामा सिद्धान्त स्थिर नहीं हुगा है। मध्यापक गायजी विराम है । यह यिराम बहुत पक्षण स्थायी है। फिप्ती (Arthur Gungce r. OF RS.)का अनुमान है, कि किसी व्यक्ति में आज भी या यिगम गनुभूत नहीं होता। पायुधोका प्राचीर सूक्ष्मादपि सूक्ष्मतम होने पर भी मुख यन्द रहने पर साधारण नाकसे दी यह पायु माती.. पायोग-सा भासाय क्षरण करनेमें सम्भयतः उसको जाती है। नाकफे दोनों छिद्रोंसे एक साथ दी वायु नदी यथेष्ट क्षमता यायकोपके प्राचीरकी इस जोप-शक्तिको बहती। पयग-विजय सरोदय में इस सम्बन्धी विशेष ( Tital porer ) स्वीकार न करनेसे फेयल डालटेनके मालोचना दिखाई देता है। योगशारत्र के किसी-किसी . उमायित प्राकृत नियम कार निर्भर करने पर फुस्फुमफे प्रग्यौ भा इसका उल्लेरा है। नासारन्ध्रमे जो प्रयास कामोन हार मामाको विनिमय प्यापाको विशेष घायु निकलती है, उसका विशेष नियम है। किसी भानुविधा हो सकता है। और तो पया इसके द्वारा इस निहिट समय तक शादने मौर निदिए समय तक यायें समकिपा भात मी सद्व्यापमा सस्थापन करता माफर्स प्रश्वास पायु प्रयादित होती रहती है। "सरोदय" मसम्मपदो उठता है। शब्दमें इमर सम्बन्ध विस्तारपूर्यफ मालोचना देना। या-क्रियामा प्रकार। उचित है। यक्ष प्राचीरको यायुफै मापने लिये एक फुस्फुसमें पायुमण करनेकी प्रिया-निध्यास नाम• तरह पक यन्त्रका गायिकार दुभा है. इसका माम से अभिहित गौर पुस्फुमसे घायु छोट्नेको प्रयास घोराकोपिटर ( Thoracome.te ) पाटोयोगियर (Ste. कहते हैं। माकपा मुमा.-ये दोनों दो यायुप्रक्षण मार thornetcr) यक्षप्राचीर पिलोडन (foretuent) मापन जाने पथ हैं। इनमें एफे यक जाने पर मोदुमरेम, लिये मी एक प्रकारका ५० यन्त्र निकला है। पो. घामको मिस पलती रहती है। मरीयिचय-शायि ग्राफ (stethograph) ग्यूमोपात ( Pneumograph ) पनि वैशामिक प्रणालीये. नुसार पुम्सुम सम्म करते हैं। rin या प्रसारभेद किया है। फम्पुमापपाषुको सायमापुको गया। मिस दी पर प्रकारमेद निजीस हुआ। मिधाम सम प्रति मिनट ११ में २४ बार भास .. प्रापरक लोग पुम्समें पौदीसो प्रप्टे जी पाए! यायु प्रयादित होती। पन्दन सापस . .