वायुविज्ञान
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मानुपातिक सम्बन्ध है। एक बार भ्यासक्रियाके समय में विपद् उपस्थित करता है। यह विष देहमें घुस कर रक्तके
• चार बार हस्पन्दन होता है। श्वासघायुको गतिको हिमोग्लोविनमें मिले अक्सिजनों को चट कर जाता है।
सपना सदा स्थिर नहीं रहती । डाफर कोयेटोलेटने सुतरा अक्सिजनके ममायके कारण देहिकक्रिया के लिये
(Quetclet ) इसका एक नियम दिखलाया है। उनका विषम विपत्ति खड़ी हो जाती है। एक ओर फार्थोनिक
कहना है--
..
एसिडको वृद्धि, दूसरी ओर अफिमजन की कमी--पे दोनों
वर्ष
मिनट .. वार दैहिकक्रियामें घोरतर अनर्थ उत्पादन कर जीवनीशक्ति-
१ वर्षको उम्र में मिनट में - । . ४४ को विताड़ित कर देती हैं।
चायुमें यथेष्ट परिमाणसे नाइट्रोजन वत्तमान रहता
१५ से २० तक
२० है। इस नाइट्रोजनका अभाव होने पर यदि हाइड्रोजनसे
२० से ३०क
इस गभायकी पूर्तिको जाये और उसमें यदि अक्सिजन
३० से ५० तक
पूरी मात्रामें मौजूद हो, तो उसके द्वारा भी देदिक कार्य
(१) परिश्रमसे श्वासपायुक्रिया घन घन होती है। निर्वाहित हो सकता है। सलफरेटेप-हाइड्रोजन अहित.
(२) तापको वृद्धि होने पर भी श्वासपायुकी
'कर पदार्थ है। इससे रक्तसंशोधन-क्रिया व्याघात
क्रिया घन घन होती है।
उपस्थित होता है। नादास गफ्साइ भयङ्कर मादक
(३) पार्ट (Bert) ने प्रमाणित किया है, कि भू. विप है। मधिक भानामें कार्योन हाइ-अपमा मल.
पायुका प्रताप जितना बढ़ेगा, श्वामक्रियाका द्वतत्व
फ्यूरस और अन्यान्य पसिन वाध्य, श्यास-क्रिया-गिर्याद
उनना ही कम होगा । किन्तु हमसे निश्वासको गम्भीरता
के लिपे एकान्त अनुपयोगी है । श्वास क्रियाफे सम्बन्ध
(Depth) यढ़ जायगी।
अन्यान्य विषय श्वास किया देखो।
(४) भूख लगते ही श्यासक्रियाको कमी हो जाती
स्वास्थ्य और वायु।
है। भोजन करने समय और करने के बाद प्रायः एक स्वास्थ्यके साथ वायुका जैसा घनिष्ट सम्बन्ध है,
घण्टा तक शासकिया पद्धती है। इसके बाद यह घटती और किसी वस्तुके साथ वायुका पैसा सम्बन्ध दिवाई
रहती है । भोजन न करनेसे श्यासक्रियाको गृद्धि नहीं।
पास क्रियाको पशि नहीं नहीं देता । जीवनरक्षाफ लिये यायु कितना गावश्यकीय
होती । सासमायुको गति दहुत थोड़े, समयके |
है, इसका परिचय हम पहले दे चुके हैं। इस वायुफे
लिये स्वेच्छानुसार नाना प्रकारसे प्रवर्तित वीजा दूषित होने पर इससे जो अनुपकार होता है, उसका अनु.
सफती है। .
| भय सहज दो होता है।
सम्बरवायुके सिवा बायनीय पदाय के निष्पवणका काम।। ___वायु दूषित होनेका कारण ।
जिस पायुमै अफिसानका अभाव है, पैसो घायुफे . फई कारणों से याथु दूषित हो सकती है। यायपीय
निपेवणसे श्वासायरोध होता है। कार्यानिक पसिष्टमी उपादानों में कार्योन-डाइअक्साइड, जलीय याण, मागो.
माता पढ़ने पर यह विषय किया करता है। इससे निया, मलफरेंटेड, हारमोशन मारिफ अधिक मात्र मिले
माधारणतः मादकता-उत्पादक पियको किया प्रकाशित रहने पर वायु स्वास्थ्य के लिये एकान्त अनुप्पोगी दो
होती है। किन्तु अक्सिजनका प्रभाय न रहने पर इसके | जाती है। प्रश्यासमें हम जो घायु छोइने हैं, उसमे यायु.
द्वारा श्यामरोध हो सकता है। किन्तु कायॉनिक मत राशि गुरुतर रूपसे कार्यान-साइ-अक्साइन जारा दूषित
परमपदर थिए । कोयले गेमग यह विष प्रचुर परि- हो जाती है। सामाषिक यायुराशिमं सैकर १००००
माणसे दिगाई देता है। जिस घरमें वायु जानेका पप मागमें ४ माग मात्र कार्यानिक पमित विद्यमान रहना
'नहीं रहता, दार या कपारादि दन्द रदते हैं, ऐसे घरों है। किन्तु प्रश्यासत्यत यायुमे कार्पोनिक पसिना
रहनेवालोको फायलेके धुंपमें मिल कर यह विष भीषण परिमाण १०००० भागमें प्रायः साग सौ से चार सौ
पृष्ठ:हिन्दी विश्वकोष एकविंश भाग.djvu/१९५
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